गुजरात दंगा भला कौन भूल सकता है। बात 27 फरवरी 2002 की है जब गुजरात के गोधरा में एक ट्रेन को दंगाईयों ने आग के हवाले कर दिया। ये ट्रेन थी साबरमती एक्सप्रेस जो गोधरा स्टेशन से जैसे ही चली वैसे ही उसके कोच एस-6को आग के हवाले कर दिया गया। इस बोगी में सवार 59लोगों की जलने से जान चली गई और इसमें से ज्यादातर लोग आयोध्या से लौट रहे कारसेवक थे। इसी घटना के बाद गुजरात में दंगा भड़क उठा जो इतिहास के पन्नों में हमेशा के लिए दर्ज हो गया।
इसके पीछे विपक्ष ने जिम्मेदार ठहराया तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को। विपक्ष को पता था कि अगर नरेंद्र मोदी को सत्ता से नहीं हटाया गया तो गुजरात से कांग्रेस का पतन तय है और हुआ भी यही। गुजरात दंगा में नरेंद्र मोदी को दोषी ठहराने के लिए विपक्ष ने अपनी पूरी ताकत लगा दी लेकिन, अतं में जीत सच की ही होती है और आज सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में SIT की ओर से नरेंद्र मोदी की दी गई क्लीन चिट बरकरार रखी है। कोर्ट ने SIT के काम की तारीफ करते हुए कहा है कि, राज्य प्रशासन के कुछ अधिकारियों की लापरवाही का मतलब यह नहीं कि राज्य प्रशासन की साजिश थी।
क्या था पूरा मामला
आगे बढ़ने से पहले इस पूरे घटना के बारे में जान लेते हैं। दरअसल, 27फरवरी 2002को गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस के एक डिब्बे में आग लगा दी गई जिसमें 59लोग मारे गए थे। इसके एक दिन बाद यानी 28फरवरी, 2002को अहमदाबाद की गुलबर्ग सोसाइटी में भी दंगा भड़का और इसमें 68लोग मारे गए जिसमें कांग्रेस के पूर्व सांसद एहसान जाफरी (जाकिया के पति) भी शामिल थे। इसी के बाद गुजरात में बड़े पैमाने पर दंगा भड़क गया और इसमें 1,044लोगों की जान गई।
इसके बाद जकिया जाफरी ने SIT द्वारा मामले में नरेंद्र मोदी सहित 64लोगों की दी गई क्लीन चीन को चुनौती दी थी। उच्च न्यायालय ने मामले को बंद करने संबंधी 2012में सौंपी गई SIT की रिपोर्ट स्वीकर करने और उसके खिलाफ दाखिल जाकिया की याचिका को खारिज करने के विशेष मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट के आदेश को बरकरार रखा। जाकिया ने हाई कोर्ट के 5अक्टूबर, 2017के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें अदालत ने SIT की रिपोर्ट के खिलाफ उनकी याचिका को खारिज कर दिया था। गुजरात दंगों में नरेंद्र मोदी सरकार की भूमिका पर लगातार सवाल उठ रहे थे। यहां तक अदालत से क्लीन चिट के बाद भी नरेंद्र मोदी निशाने पर बने रहे। अब सुप्रीन कोर्ट ने पूरे तथ्यों के देखते हुए ये माना है कि, नरेंद्र मोदी के खिलाफ बड़ी साजिश रची गई थी। आईए जानते हैं देश की उच्च न्यायालय ने क्या कहा है…
झूठी गवाही देने वालों को सुप्रीम कोर्टी की फटकार
सर्वोच्च न्यायालय ने पीएम मोदी और अन्य को फंसाने के लिए झूठी गवाही देने वाले आईपीएस अधिकारियों- आरबी श्रीकुमार और संजीव भट्ट को फटकार लगई है। पूर्व कांग्रेस सांसद जकिया जाफरी की याचिका खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि, उन आरोपों को साबित करने के लिए कोई सबूत नहीं हैं कि गोधरा कांड और उसके बाद ही हिंसा सुनियोजित साजिश का नतीजा थी। पूर्व कांग्रेस सांसद जकिया जाफरी की याचिका खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्पणी की। जस्टिस एएम खानविलकर, दिनेश माहेश्वरी और सीटी रविकुमार की बेंच ने 452पन्नों में फैसला सुनाया है। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि जो छानबीन हुई, उसमें ऐसा कोई तथ्य नहीं है, जो बताए कि अल्पसंख्यक समुदाय के खिलाफ हिंसा के लिए हाई लेवल पर साजिश रची गई।
अमित शाह ने कहा- 19सालों तक दर्द सहा है, अब सोने की तरह सच चमक रहा है
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले पर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा है कि, सच बाहर आया है और 'सोने की तरह चमक रहा है।' उन्होंने कहा कि नरेंद्र मोदी ने बगैर कोई शब्द कहे बीते 19सालों तक दर्द सहा है और भगवान शिव की तरह जहर पिया और अपने गले में रखा। इसके साथ ही उन्होंने तत्कालीन मुख्यमंत्री पर आरोप लगाने वालों से माफी की मांग की है। शाह ने कहा, 'यह दंगा होने का मूल कारण गोधरा की ट्रेन के जला देना था। 60लोगों को 16दिन की बच्ची को मां की गोद में बैठे हुए जिंदा जलते मैंने देखा है। मेरे हाथ से अग्नि संस्कार किया है मैंने। इसके कारण दंगे हुए थे। इसके आगे जो दंगे हुए थे वे राजनीति से प्रेरित होकर हुए थे। रिजर्वेशन का आंदोलन हुआ उसे दंगों में बदल दिया गया।'
कोर्ट ने कहा- मुसलमानों को निशाना बनाने की साजिश के कोई सबूत नहीं
कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि, जांच के दौरान जो भी सबूत मिले, उनसे मुसलमानों के खिलाफ सामूहिक हिंसा भड़काने के लिए सर्वोच्च स्तर पर आपराधिक षड्यंत्र रचने संबंधी कोई संदेह उत्पन्न नहीं होता है। इसका आगे उच्च न्यायालय ने कहा कि, अल्पसंख्यक समुदाय को निशाना बनाकर के राज्य भर में सामूहिक हिंसा का कारण बनने के लिए आपराधिक साजिश रचने में नामित व्यक्तियों की संलिप्तता को लेकर स्पष्ट और प्रत्यक्ष सामग्री का अभाव है।
कोर्ट ने कहा- न तो सबूत हैं और न ही तथ्य
उच्च न्यायालय ने कहा कि, अपीलकर्ता की दलील कि 27फरवरी, 2002की गोधरा घटना और इसके बाद की घटनाएं, राज्य में उच्चतम स्तर पर रची गई आपराधिक साजिश के तहत पूर्व नियोजित थीं, का समर्थन करने के लिए तथ्य उपलब्ध नहीं हैं। इन दलीलों के समर्थन में कोई वास्तविक सामग्री भी नहीं है।
कोर्ट ने कहा- अपील में कोई दम नहीं
कोर्ट ने कहा कि, हमें अपील में कोई दम नजर नहीं आता और हम इसे खारिज करते हैं। राज्य प्रशासन के एक वर्ग के कुछ अधिकारियों की निष्क्रियता या विफलता, राज्य सरकार के अधिकारियों द्वारा पूर्व नियोजित आपराधिक साजिश का अनुमान लगाने या इसे अल्पसंख्यक समुदाय के खिलाफ राज्य द्वारा प्रायोजित अपराध के रूप में घोषित करने का आधार नहीं हो सकता है। इसके साथ ही कोर्ट ने कहा कि, हमें ऐसा लगता है कि गुजरात सरकार के असंतुष्ट अधिकारियों के साथ-साथ अन्य लोगों का एक साझा प्रयास (इस तरह के) खुलासे करके सनसनी पैदा करना था, जबकि उनकी जानकारी झूठ पर आधारित थी।
अदालत का दुरुपयोग करने वालों पर हो कानूनी कार्रवाई
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि, इस मामले में 2006 से कार्यवाही चल रही है। इसमें शामिल हर पदाधिकारी की ईमानदारी पर सवाल खड़े करने की हिमाकत हुई ताकि गुप्त उद्देश्य के लिए मामले को गरमाये रखा जा सके। कोर्ट ने कहा कि, जो प्रक्रिया का इस तरह से गलत इस्तेमाल करते हैं, उन्हें कठघरे में खड़ा करके उनके खिलाफ कानून के दायरे में कार्रवाई की जानी चाहिए। इसके साथ SIT की तारीफ करते हुए कोर्ट ने कहा कि, उन्होंने बेहतरीन काम किया है। SIT की जांच में कोई दोष नहीं पाया जा सकता और मामले को बंद करने से संबंधित उनकी आठ फरवरी 2012 की रिपोर्ट पूरी तरह से तथ्यों पर आधारित है।