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तबाहियों के बीच UNESCO विश्व धरोहर शिमला-कालका रेलवे लाइन भी बेहाल

भूस्खलन के बाद हवा में लटका हुआ 114 साल पुरानी कालका-शिमला रेलवे लाइन का हेरिटेज ट्रैक

आशुतोष कुमार  

UNESCO World Heritage Destroyed: शिमला: 1898 में निर्मित शिमला-कालका रेलवे लाइन UNESCO की विश्व धरोहर स्थल है।यह समर हिल के पास क्षतिग्रस्त हो गयी है और 50 मीटर का ट्रैक मंगलवार से हवा में लटका हुआ देखा गया है,ऐसा इसलिए हुआ है, क्योंकि क्षेत्र में अभूतपूर्व बारिश हुई है।

शिमला से लगभग 6 किमी दूर यह हेरिटेज ट्रैक हिमाचल प्रदेश में लगातार बारिश के कारण हुए भूस्खलन और बाढ़ के कारण हुई व्यापक मौत और विनाश का हिस्सा है, जिसे जलवायु परिवर्तन के परिणाम के रूप में देखा जा रहा है।

वास्तव में यह ट्रैक पांच या छह अन्य स्थानों पर भी क्षतिग्रस्त हो गया है और शिमला और शोघी के बीच सबसे अधिक प्रभावित सेक्शन स्टेशन मास्टर जोगिंदर सिंह पुष्टि करते हुए कहते हैं, “बारिश की तीव्रता के आधार पर ट्रैक की मरम्मत में कम से कम दो सप्ताह लग सकते हैं।”

इससे पहले भी 10 जुलाई को शिमला-कालका रेलवे ट्रैक पर सभी ट्रेनें निलंबित कर दी गयी थीं, क्योंकि लगातार भारी बारिश के कारण कई स्थानों पर भूस्खलन और पेड़ गिरने से ट्रैक बाधित हो गया था।

हालांकि, रेलवे अधिकारियों द्वारा मार्ग को उपयुक्त घोषित किए जाने के बाद 20 जुलाई को रेलवे ट्रैक के शिमला-सोलन खंड पर एक विशेष ट्रेन शुरू की गयी थी।

96 किलोमीटर लंबा शिमला-कालका रेलवे ट्रैक अंग्रेज़ों द्वारा कठिन पहाड़ी इलाक़ों में 103 सुरंगों, 800 पुलों, 919 मोड़ों के साथ-साथ ढलान वाले ढलानों के साथ बिछाया गया था।

46वीं सुरंग के ढहने के बाद ट्रैक में अब 102 सुरंगें हैं, जो लगभग 1,590 मीटर की ऊंचाई हासिल करता है और इसे इंजीनियरिंग का चमत्कार माना जाता है।

इस बीच पिछले चार दिनों में बारिश से संबंधित विभिन्न घटनाओं में 71 लोगों की मौत हो गयी है। शिमला के शिव मंदिर भूस्खलन स्थल पर 72 घंटे की लंबी खोज और बचाव अभियान के बाद अब तक 13 शव बरामद किए गए हैं और कांगड़ा क्षेत्र में विनाशकारी बाढ़ में 1300 लोग फंसे हुए हैं, यह प्रकृति के प्रकोप के उस पैमाने का को दिखाता है, जिसने हिमाचल को प्रभावित किया है।

80 वर्ष से अधिक उम्र के कई लोगों ने अपने जीवन में कभी भी यह याद नहीं किया होगा कि देवभूमि हिमाचल प्रदेश में प्रकृति इतनी उग्र रही थी। लगातार बारिश, भूस्खलन, बाढ़ और बादल फटने के कारण मरने वालों की कुल संख्या पहले ही 328 हो चुकी है, जबकि 38 लोग लापता बताये जा रहे हैं।

7500 करोड़ रुपये की संपत्ति के नुक़सान का अनुमान है।

मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने आज सुबह इंडिया नैरेटिव को बताया, “यह एक अत्यंत अभूतपूर्व स्थिति है। मैं पिछले कुछ दिनों से कुछ हृदय-विदारक क्षणों से गुज़र रहा हूं। मेरी आंखों से आंसू नहीं गिरे हैं, मैं त्रासदी के हर एक स्थल का दौरा कर रहा हूं।”

उनका कहना है कि जो बुनियादी ढांचा मूसलाधार बारिश और बाढ़ में बह गया या भूस्खलन से क्षतिग्रस्त हो गया, उसे दोबारा विकसित करने में कम से कम एक साल लगेगा।

मुख्यमंत्री ने कहा, ”हमारे सामने पहाड़ जैसी चुनौती है।”

शिमला का पहाड़ी शहर – तीन लाख की बड़ी आबादी वाला शहर है, जहां हर मौसम में लाखों पर्यटक आते हैं, परिवारों को ख़त्म करने वाली त्रासदियों का यह नया केंद्र बन गया है। मंगलवार को शिमला के डाउनहिल कृष्णा नगर इलाक़े में हुए एक ताज़ा भूस्खलन ने इमारतों को ज़मींदोज़ कर दिया है। जो वीडियो वायरल हुए हैं, वो बेहद डरावने हैं।

प्राचीन शिव मंदिर वर्षों तक लोगों की आस्था का गवाह रहा है, अब मलबे में तब्दील हो गया है, क्योंकि भूस्खलन के बाद मंदिर के टुकड़े-टुकड़े हो गए थे। जिंदा दफ्न हुए लोगों में एक ही परिवार के सात सदस्य, तीन बच्चे और सात महीने की गर्भवती विश्वविद्यालय की प्रोफेसर अपने पति के साथ शामिल हैं।

अब तक केवल 13 शव बरामद किये गये हैं,जबकि प्रत्यक्षदर्शियों को 22-25 लोगों के मारे जाने की आशंका है।

शिमला की इमारतें जिस तरह क्यों गिर रही हैं, इससे भीड़भाड़ वाले इलाक़ों में रहने वाले स्थानीय मूल निवासियों में दहशत फैल गयी है। पहाड़ी ढलानों से जंगल ख़त्म हो गये हैं और मिट्टी का स्तर बहुत ढीला हो गया है।

शिमला के पूर्व डिप्टी मेयो टिकेंदर सिंह पंवर बताते हैं कि हिमालय में यह शहरी परिदृश्य, कई बस्तियां और घर, जल धाराओं और जल निकायों के होते जा रहे हैं। यह सोचकर कि शक्तिशाली आरसीसी (प्रबलित सीमेंट कंक्रीट) संरचनायें लचीलापन प्रदान करने के लिए पर्याप्त शक्तिशाली हैं और यह बात अब ग़लत साबित हो रही है।

वह कहते हैं,“शहर में कई इमारतें- कृष्णा नगर और फागली में से एक ढह गई हैं, क्योंकि ये या तो जल निकायों, बाउरी, झरनों, या अवरुद्ध पुलियों पर बनायी गयी थीं। सोलन में शामती, शिमला में कृष्णानगर, सेंट एडवर्ड्स के पास कुछ घर इसके कुछ उदाहरण हैं।”

पंवर का सुझाव है कि यह भूमि उपयोग पैटर्न पर एक बड़े बदलाव का सही समय है, क्योंकि शिमला ने अपनी वहन क्षमता खो दी है और शहर में उन जल निकासी प्रणाली और नालों को अवरुद्ध कर दिया है, जिन्हें कभी सीपेज के संरक्षक माना जाता था, अब वे ख़तरे में हैं। विकास योजनाओं को भूवैज्ञानिक आधारित क्षेत्रीय और उप-क्षेत्रीय योजनाओं पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।

राज्य सरकार द्वारा शहर की अच्छी तरह से संरक्षित ग्रीन-बेल्ट को निर्माण के लिए खोलने और अटारियों (शीर्ष स्थान) को रहने योग्य क्षेत्रों में परिवर्तित करने की अनुमति देने पर भी सवाल उठाये जा रहे हैं।

अब दिल्ली में रह रहीं और शिमला की एक पुरानी मूल निवासी और सेवानिवृत्त पर्यावरणविद् वैज्ञानिक नीरा मेहता का कहना है,“शिमला के भाग्य पर मुहर लगाने के लिए पहाड़ी शहर में बेतरतीब निर्माणों से आंखें बंद करने के अलावा ये दोनों क़दम हैं।”