भारतीय सेना ने लद्दाख से लगी चीन सीमा पर बड़े परिवहन विमानों 'ग्लोबमास्टर' से लेकर खच्चरों तक को तैनात करके अपने पूरे लॉजिस्टिक नेटवर्क को सक्रिय कर दिया है। जिससे चीन के साथ चल रहे कटु सीमा विवाद के दौरान हिमालय की सीमा पर कठोर सर्दियों के लिए हजारों सैनिकों के लिये जरूरी सामानों की आपूर्ति को पूरा किया जा सके।
सेना के अधिकारियों ने बताया कि हाल के महीनों में भारत के सबसे बड़े सैन्य अभियान में से एक को चलाकर लद्दाख में भारी मात्रा में गोला-बारूद, उपकरण, ईंधन, सर्दियों की विशेष आपूर्ति और भोजन लाया गया है। बर्फीले रेगिस्तान लद्दाख में मई में चीन के साथ सीमा गतिरोध बढ़ने के कारण इस कदम की शुरुआत हुई और जून में यह और तेज हो गया।
दोनों देश टकराव को हल करने के लिए भले ही बातचीत कर रहे हैं, लेकिन कोई भी पक्ष एक-दूसरे पर भरोसा करने को तैयार नहीं है। भारतीय सेना अब सर्दियों के दौरान भी खतरनाक ऊंचाई वाली सीमा पर तैनात सैनिकों को रखने के लिए तैयार है। पूर्वी लद्दाख में जहां पर सीमा विवाद भड़का है, आमतौर पर 20,000-30,000 सैनिकों की तैनाती रहती है। लेकिन एक सूत्र ने कहा कि सैनिकों की तैनाती की संख्या दोगुनी से अधिक हो गई है।
सैनिक अधिकारियों ने चीनी सैनिकों की संख्या में वृद्धि को देखा है और उसी के हिसाब से भारतीय सेना को अच्छी तरह से तैनात किया गया है। सर्दियों के दौरान लद्दाख में तापमान ठंड में शून्य से नीचे गिर जाता है और सैनिकों को अक्सर 15,000 फीट की ऊंचाई पर तैनात किया जाता है।
चूंकि हर साल सर्दियों में कम से कम चार महीने लद्दाख में बर्फ के पहाड़ जमे रहते हैं, इसलिए भारतीय सैन्य रणनीतिकारों ने 150,000 टन से अधिक सामग्री पहले ही जमा कर ली है। भारतीय सेना ने जितनी भी आपूर्ति की आवश्यकता है, उन्हें पहले ही जमा कर लिया है। ग्लोबमास्टर जैसे भारतीय वायु सेना के बड़े परिवहन विमान लद्दाख में सीमावर्ती इलाकों में हवाई पट्टियों पर जरूरी सामान को उतार रहे हैं। लद्दाख के मुख्य शहर लेह के पास एक ईंधन और तेल डिपो में काफी सामान जमा करके रखा गया है।
पास के ही एक आपूर्ति डिपो में राशन के बोरे रखे हैं-जिसमें पिस्ता, इंस्टेंट नूडल्स और भारतीय करी शामिल हैं। लेह के पास एक अन्य अड्डे पर, टेंट, हीटर, सर्दियों के कपड़े और उच्च ऊंचाई वाले उपकरण रखे गए हैं। इन डिपो से सामग्रियों को ट्रकों, हेलीकाप्टरों द्वारा रसद की जरूरत वाले इलाकों में भेज दिया जाता है। कुछ विशेष रूप से कठिन इलाकों में इसके लिये खच्चरों का सहारा लिया जा रहा है।.