अयोध्या की राम जन्मभूमि के बाद अब काशी विश्वनाथ मंदिर के बारे में कोर्ट ने बड़ा आदेश दिया है। सनातन धर्म के सबसे प्रमुख स्थानों में से एक वाराणसी के काशी विश्वनाथ और ज्ञानवापी मस्जिद विवाद को हल करने के लिए कोर्ट ने एएसआई (आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया) से खुदाई करने और रिसर्च रिपोर्ट कोर्ट में जमा करने के निर्देश दिए हैं। कोर्ट ने कहा है कि एएसआई की पांच सदस्यों की टीम इस कार्य में लगाई जाए।
कोर्ट ने काशी विश्वनाथ मंदिर पक्ष के लोगों में फैसला सुनाया है। पुरातात्विक सर्वेक्षण मामले पर वादी मंदिर पक्ष के प्रार्थना पत्र पर सिविल जज सीनियर डिविजन फास्ट ट्रैक कोर्ट ने 2अप्रैल को फैसला सुरक्षित कर लिया था।मुकदमे के वादी काशी विश्वनाथ मंदिर की ओर से 1991में एक मुकदमा दायर किया गया था। इस मामले में दिसंबर 2019को पुरातात्विक सर्वे की मांग के लिए अनुरोध किया गया था। इसी मांग पर पिछली दो अप्रैल को सुरक्षित रखे गए फैसले को कोर्ट ने आज सुनाया।
खास बात यह है कि पिछले दिनों संबंधित सिविल जज सीनियर डिवीजन फास्ट ट्रैक कोर्ट आशुतोष तिवारी के ट्रांसफर ऑर्डर वाराणसी से शाहजहांपुर का आ चुका है। जज आशुतोष तिवारी को 9अप्रैल को अपना चार्ज हैंड ओवर करना है। हैंडओवर देने से पहले उन्होंने इस मामले पर अपना फैसला सुना दिया है।
काशी विश्वनाथ मंदिर के पक्षकार और वादमित्र विजय शंकर रस्तोगी के मुताबिक औरंगजेब ने अपने शासनकाल के दौरान काशी विश्वनाथ मंदिर को तोड़ने का फरमान जारी किया था, लेकिन उस फरमान में वहां मस्जिद कायम करने का फरमान नहीं दिया गया था। फिर भी यह विवादित ढांचा वहां बना दिया गया।
हालांकि प्रतिवादी पक्ष अंजुमन इंतजामियां मसाजिद कमेटी और सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड की ओर से दाखिल प्रतिवाद पत्र में दावा किया गया कि यहां विश्वनाथ मंदिर कभी था ही नहीं और औरंगजेब बादशाह ने उसे कभी तोड़ा ही नहीं। जबकि मस्जिद अनंत काल से कायम है। उन्होंने अपने परिवाद पत्र में यह भी माना कि कम से कम 1669से यह ढांचा कायम चला आ रहा है