पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव बाद सियासी हिंसा के सबसे बड़ा शिकार बंगाल के दलितों को बनाया गया है। 2 मई के बाद से लगभग एक दर्जन बलात्कार हुए हैं। लगभग दर्जन हत्याएं हुई हैं, और डेढ़ हजार से ज्यादा हिंसा की वारदातें हुई हैं। दलितों पर अत्याचार के ये आंकड़े आजादी के समय हुए अत्याचार के आंकड़ों को भी लजा देते हैं।
ये सारे तथ्य किसी और ने नहीं राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग (एनसीएससी) के चेयरमैन विजय सांपला ने दिए हैं। उन्होंने कहा है कि 1947के बाद पहली बार बलात्कार, हत्याएँ बिना किसी राज्य संरक्षण के हो रही हैं। इसमें सबसे ज्यादा प्रभावित अनुसूचित जाति के लोग हुए हैं। बंगाल में जिन लोगों को भी शिकार बनाया गया उनका कसूर यह था कि उन्होंने बीजेपी को वोट दिया।
विजय सांपला के मुताबिक नबाग्राम पुलिस पर तथ्यों को भटकाने और भ्रमित करने की कोशिश की हालाँकि, छानबीन में खुलासा हुआ है कि हिंसा में अन्य कैटेगरी के लोग भी शामिल थे। एक दलित व्यक्ति जब पुलिस के पास शिकायत दर्ज कराने पहुँचा तो उस पर दिनदहाड़े हमला किया गया और जो (एससी से) पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कराने गए थे, उन पर हमला किया गया, उनके घरों को लूट लिया गया।
ध्यान रहे इस महीने की शुरुआत में भाजपा ने आरोप लगाया कि चुनाव के बाद हुई हिंसा में उसकी पार्टी के नौ कार्यकर्ता मारे गए हैं। हालाँकि, तृणमूल कॉन्ग्रेस (टीएमसी) इन आरोपों का खंडन करती रही है। 7मई को गृह मंत्रालय द्वारा प्रतिनियुक्त चार सदस्यीय टीम ने जमीनी स्थिति का आकलन करने के लिए पश्चिम बंगाल के दक्षिण 24परगना जिले के डायमंड हार्बर इलाके का दौरा किया था।बंगाल में हुई हिंसा को लेकर विश्व हिंदू परिषद (विहिप) ने राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद को पत्र लिखकर उनसे इस मामले में हस्तक्षेप करने की गुहार लगाई। उन्होंने पत्र में पश्चिम बंगाल में टीएमसी कार्यकर्ताओं और जिहादियों द्वारा चुनाव के बाद की गई हिंसा को तत्काल रोकने के लिए प्रभावी कदम उठाने की माँग की थी।