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जैविक खेती का रकबा बढ़ाकर खुलेगा कृषि क्षेत्र में नई संभावनाओं का मार्ग  

जैविक खेती का रकबा बढ़ाकर खुलेगा कृषि क्षेत्र में नई संभावनाओं का मार्ग  

भारत जैविक किसानों की कुल संख्या के मामले में दुनिया भर में सबसे आगे है  लेकिन जैविक खेती के तहत कुल रकबे की दृष्टि से नौवें स्‍थान पर है। सिक्किम पूरी तरह से जैविक बनने वाला दुनिया का पहला राज्य है। यही नहीं, त्रिपुरा एवं उत्तराखंड सहित अन्य राज्यों ने भी ठीक इसी तरह के लक्ष्य तय किए हैं।

भारत से जैविक निर्यात मुख्‍यत: अलसी के बीज, तिल, सोयाबीन, चाय, औषधीय पौधों, चावल और दालों का होता रहा है जो वर्ष 2018-19 में हुए 5151 करोड़ रुपये के कुल जैविक निर्यात में लगभग 50% की उल्‍लेखनीय वृद्धि करने में काफी मददगार साबित हुए थे। असम, मिजोरम, मणिपुर एवं नगालैंड से ब्रिटेन, अमेरिका, स्वाजीलैंड और इटली को निर्यात करने की जो सामान्‍य शुरुआत हुई है उसने कुल मात्रा को बढ़ाकर और नए गंतव्यों तक विस्तार करके अपनी क्षमता बखूबी साबित कर दी है।

जैविक खेती अपनाने में किसानों की सहायता करने और प्रीमियम मूल्‍यों की बदौलत पारिश्रमिक बढ़़ाने के उद्देश्‍य से दो विशेष कार्यक्रम यथा पूर्वोत्‍तर क्षेत्र के लिए मिशन जैविक मूल्य श्रृंखला विकास (एमओवीसीडी) और परम्परागत कृषि विकास योजना (पीकेवीवाई) का शुभारंभ वर्ष 2015 में किया गया था। ताकि रसायन मुक्त खेती को प्रोत्साहित किया जा सके। इसके साथ ही कृषि-निर्यात नीति 2018 के तहत दिए गए विशेष जोर के बलबूते भारत वैश्विक जैविक बाजारों में एक प्रमुख देश के रूप में उभर कर सामने आ सकता है।

पीकेवीवाई और एमओवीसीडी दोनों ही सहभागितापूर्ण गारंटी प्रणाली (पीजीएस) और जैविक उत्पादन के लिए राष्ट्रीय कार्यक्रम (एनपीओपी) के तहत प्रमाणीकरण को बढ़ावा दे रहे हैं जो क्रमशः घरेलू एवं निर्यात बाजारों को लक्षित कर रहे हैं।  ‘जैविक’ बनने जा रहे रसायन मुक्त उत्पाद को पीजीएस ग्रीन दिया जाता है जिसमें 3 साल लगते हैं। ‘पीकेवीवाई’ के तहत लगभग 40,000 क्‍लस्‍टरों की सहायता की जा रही है जिनके तहत लगभग 7 लाख हेक्टेयर क्षेत्र को कवर किया जा रहा है। ‘एमओवीसीडी’ने लगभग 80,000 हेक्टेयर में खेती करने वाले 160 एफपीओ को अपने दायरे में लाया है।

जैविक खेती की सर्वाधिक क्षमता वाली जिंसों या वस्तुओं में अदरक, हल्दी, काले चावल, मसाले, पोषक तत्व वाले अनाज, अनानास, औषधीय पौधे, कूटू (एक प्रकार का अनाज), बांस के अंकुर, इत्‍यादि शामिल हैं। मेघालय से मदर डेयरी के लिए, मणिपुर से रेवंत फूड्स और बिग बास्केट सहित पूर्वोत्‍तर क्षेत्र से आपूर्ति शुरू हो गई है। किसानों को खुदरा और थोक खरीदारों से सीधे जोड़ने के लिए जैविक ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म <a href="http://www.jaivikkheti.in/">www.jaivikkheti.in</a> को मजबूत किया जा रहा है।

भारत में ‘प्राकृतिक खेती’ कोई नई अवधारणा नहीं है, जिस पर अमल करते हुए किसान पुरातन समय से ही रसायनों का उपयोग किए बिना ही मुख्‍यत: जैविक अवशेषों, गाय के गोबर, खाद, इत्‍यादि पर निर्भर रहते हुए अपनी जमीन पर खेती करते रहे हैं।

मिट्टी, पानी, सूक्ष्म जीवाणुओं एवं ‘अपशिष्ट’ उत्पादों, वानिकी और कृषि जैसे तत्वों के एकीकरण वाली जैविक खेती में अंतर्निहित अवधारणा दरअसल प्राकृतिक संसाधनों के सतत उपयोग के लिए सही नुस्खा है, जिन पर भोजन और कृषि आधारित उद्योग के लिए कच्चे माल की लगातार बढ़ती आवश्यकता के कारण दबाव बढ़ता जा रहा है।

यह ‘सतत विकास लक्ष्य 2’ के अनुरूप भी है जिसमें ‘भूखमरी समाप्‍त करने, खाद्य सुरक्षा हासिल करने एवं पोषण में सुधार करने और सतत कृषि को बढ़ावा देने’ के लक्ष्‍य रखे गए हैं। अत: अधिक जागरूकता और अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुपालन के लिए उत्पादकों के आवश्‍यक क्षमता निर्माण के साथ भारतीय जैविक किसान शीघ्र ही वैश्विक कृषि व्यापार में अपने सही एवं यथोचित स्थान को मजबूत कर सकेंगे।.