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मोदी सरकार ने किसानों के पैरों में पड़ी मंडी की बेड़ी से दिलाई आजादी

मोदी सरकार ने किसानों के पैरों में पड़ी मंडी की बेड़ी से दिलाई आजादी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने कृषि क्षेत्र में सुधार के तीन कदम उठाए हैं। सबले पहले कृषि उत्पाद विपणन समिति अधिनियम में सुधार करके किसानों के पैरों में पड़ी मंडी की बेड़ी से आजादी दिलाई है। दूसरा कांट्रक्ट फार्मिंग यानि अनुबंध खेती के लिये रास्ता तैयार कर दिया है। तीसरा सुधार आवश्यक वस्तु अधिनियम को लेकर है। मोदी सरकार के ये तीनों सुधार किसानों की हालत सुधारने की दिशा में कारगर कदम साबित होने वाले हैं।

पहले सुधार का सीधा आशय है कि किसानों के पैरों में पड़ी मंडी की बेड़ी को खोलना। पहले सुधार में चार बड़े कदम उठाये गये हैं। अब तक कृषि उत्पाद को केवल स्थानीय अधिसूचित मंडी में ही बेचने की अनुमति थी। इसका सीधा मतलब यह था कि किसान बिचौलिये यानि कि आढ़तियों के जरिए ही अपनी फसल बेच सकते थे। आढ़तिया एक ऐसा व्यापारी है जिसके पास कृषि उपज के व्यापार के लिये लाइसेंस होता है। जबकि अब किसान किसी भी मंडी, बाजार, संग्रह केन्द्र, गोदाम, कोल्ड स्टोरेज और कारखाने आदि में अपना उत्पाद बेचने लिए आजाद है।

अब यहां समझना होगा कि जो बिचौलिए किसान से उसका उत्पाद खरीदते थे, उसे भी आगे चलकर बड़ी कंपनियां ही खरीदती थीं। मान लीजिए पारले, ब्रिटानिया और पतंजलि को गेहूं खरीदना है, तो उसे बिचौलियों के जरिए ही खरीदना होता था। अब कंपनियां सीधे किसान से खरीदने के लिए स्वतंत्र होंगी। इससे किसानों का मंडियों और बिचौलियों के जरिए होने वाला शोषण खत्म हो जाएगा।

इसके साथ ही जब कंपनियां सीधे खेत से फसल लेंगी तो किसानों को फायदा तो होगा ही, फसलों की गुणवत्ता में भी सुधार होगा। अभी किसानों को उपज बढ़ाने के लिए रासायनिक खाद का बहुत उपयोग करना पड़ता है। यदि कंपनियां भाव बढ़ा कर देंगी तो रासायनिक खाद का उपयोग भी किसान कम करेगा। क्योंकि उपभोक्ता गुणवत्ता युक्त सामान की चाहत रखता है। जैसे हिमाचल या मणिपुर के किसान को उपज का ज्यादा दाम मिलता है, वैसे ही हरियाणा के किसान को भी ऊंचा दाम मिलेगा।

इसे एक साधारण उदाहरण से समझ सकते हैं। गेहूं की पैदावार बढ़ाने के लिए किसान 2967 और 3086 वैरायटी के बीजों का उपयोग करते हैं। एक एकड़ में 40 किलोग्राम बीज लगता है। एक बैग डीएपी, चार बैग यूरिया, जिंक, सल्फर और पोटाश डालना पड़ता है। इसके बाद प्रति एकड़ 22 से 28 क्विंटल तक पैदावार होती है। दूसरी तरफ गेहूं की देसी 306 किस्म की गुणवत्ता बहुत अच्छी है। इसकी बुवाई करते हैं तो प्रति एकड़ केवल आठ क्विंटल तक ही पैदावार होती है। अगर इसकी मांग बढ़ेगी तो किसानों के साथ उपभोक्ताओं को भी फायदा होगा। क्योंकि हर उपभोक्ता गुणवत्ता युक्त सामान चाहता है।

यही हाल फलों का भी है। इलाहबाद के अमरूद, लखनऊ के मलिहाबाद के आम या फिर प्रतापगढ़ के आंवले का ही उदाहरण लें। बड़ी कंपनियों को मंडी माफियाओं के सामने मजबूर होकर बिचौलियों से फल लेना पड़ता है। मंडी माफियाओं की दादागीरी में कई किसान नेताओं का भी हिस्सा होता है। अगर मंडियों की हालत देखनी हो तो आप किसी भी मंडी में चले जाइए। ज्यादा दूर नहीं जाना चाहते हैं तो आजादपुर मंडी में ही चले जाइये। उसके बाद वहां किसानों की हालत देखकर आपको साफ समझ में आ जाएगा कि किसानों की वहां पर क्या हालात है?

ऐसा भी नहीं है कि इस सुधार में मंडियां समाप्त हो जाएंगी। इसके बजाय किसानों को सरकार ने विकल्प मुहैया करा दिया है। मंडियां अगर किसानों को सुविधा के साथ उनके उत्पाद का अच्छा भाव दिलाएंगी तो उनका वजूद रहेगा, नहीं तो समय के साथ मंडियां इतिहास में गुम हो जाएंगी। क्योंकि किसानों के लिए अब पूरा देश एक बाजार है।

इन सुधारों से एक और बड़ा परिवर्तन हुआ है। अभी तक मंडियों में केवल लाइसेंस धारक व्यापारियों के माध्यम से ही किसान अपनी फसल बेच सकते थे। अब मंडियों का भी लोकतंत्रीकरण हुआ है। अब मंडी व्यवस्था के बाहर के व्यापारियों को भी फसलों को खरीदने की अनुमति होगी। इससे भी मंडी के आढ़तियों और बिचौलियों का समूह बनाकर किसानों का सामान मनमाने दाम उत्पाद खरीदने की प्रवृत्ति पर अंकुश लगेगा।

तीसरी महत्वपूर्ण बात ये है कि मंडी के बाहर फसलों का व्यापार वैध होने के कारण मंडी सिस्टम के बाहर भी फसलों के व्यापार और भंडारण संबंधी आधारभूत संरचना में निवेश बढ़ेगा। चौथी बात ये कि दूसरे राज्यों में उपज की मांग, आपूर्ति और कीमतों का आर्थिक लाभ किसान स्वयं या किसान उत्पादक संगठन बनाकर उठा सकते हैं। क्योंकि किसानों को स्थानीय स्तर पर अपने खेत से ही व्यापारी को फसल बेचने का अधिकार होगा। इससे किसान को मंडी तक फसल ढोने का भाड़ा भी बचेगा।

अब कांट्रैक्ट फार्मिंग मतलब अनुबंध खेती के पहलू पर विचार करते हैं। मोदी सरकार का यह सुधार किसानों को कई जोखिमों से बचाएगा। किसानो की सबसे बड़ी समस्या क्या थी? समस्या यह थी की जब वह कोई फसल बोता है तो उसकी कीमत ज्यादा होती है। लेकिन जब वह फसल तैयार होती है और मंडी में पहुंचती है तो कीमत गिर जाती है। ऐसे में किसान ठगा महसूस करता है। यह अक्सर होता है। अनुबंध खेती के सरकार के कदम से बुआई से पहले ही किसान को अपनी फसल को तय मानकों और तय कीमत के अनुसार बेचने का अनुबंध करने की सुविधा मिल जाती है।

इससे एक तो किसान फसल तैयार होने पर मूल्य गिरने के जोखिम से बच जाएंगे, दूसरे उन्हें खरीदार खोजने के लिए कहीं जाना नहीं होगा। इससे किसान निर्यातकों और प्रसंस्करण उद्योगों आदि के साथ उनकी आवश्यकताओं और गुणवत्ता के अनुसार फसल उगाने के लिये अनुबंध कर सकते हैं। यही नहीं इसमें किसानों की जमीन के मालिकाना अधिकार सुरक्षित रहेंगे। किसानों की मर्जी के खिलाफ फसल उगाने की कोई बाध्यता भी नहीं होगी। साथ ही फसल के खराब होने के जोखिम से भी किसान का बचाव होगा। जिससे अधिक जोखिम वाली फसलों की भी खेती किसान कर सकेगा।

तीसरा सुधार आवश्यक वस्तु अधिनियम को लेकर है। इस सुधार से अनाज, खाद्य तेल, तिलहन, दलहन, आलू और प्याज सहित सभी कृषि उत्पाद राष्ट्रीय आपदा और अकाल जैसी स्थिति को छोड़कर अब नियंत्रण से मुक्त होंगे। इसे लेकर लोगों के मन में कुछ संदेह है। लेकिन यह संदेह बेबुनियाद है। क्योंकि किसान की पैदावार बढ़ जाती है तो उसकी कीमत घट जाती है। कंपनियों से लेकर व्यापारी तक उपज नही खरीदता था, क्योंकि यह कानून उन्हे रोकता था।

जब उत्पादन कम होता था तो कीमत बढ़ जाती थी। किसान अपने उत्पाद को लेकर हमेशा डरा रहता था। होता यह भी है कि किसानों ने आलू तो कभी दलहन या तिलहन ज्यादा उगा लिया। ऐसा वह कीमत के आधार पर तय करता है। लेकिन यह फसल तैयार होने के समय पर पता चलता था कि बाजार या मंडी में इसकी कीमत कम हो गई और किसी फसल की ज्यादा हो गई। वह अधिक उत्पादन की वजह से होता है।

जैसे गेहूं अगर इस समय ज्यादा पैदा हो गया व्यापारी या कंपनियां एक तय सीमा से ज्यादा स्टॉक नही कर सकती थीं। जबकि उन्हें अगले सीजन में भी उसकी जरूरत पड़ेगी। अब इस सुधार के बाद वह ज्यादा स्टॉक कर सकेंगे, जिससे किसानों को उनकी फसल का भाव ठीक मिलेगा। हो सकता है अगली बार उस फसल की पैदावार कम हो और किसी दूसरी फसल की ज्यादा हो। इसलिए मोदी सरकार के ये तीन कानून किसानों के हित में क्रांतिकारी साबित होने वाले हैं।.