आज अजा एकादशी हैं। भाद्रपद महीने की कृष्ण पक्ष की एकादशी को 'अजा एकादशी' के नाम से जाना जाता है। 'अजा' का अर्थ है जिसका जन्म न हो। इस एकादशी को जया एकादशी भी कहा जाता हैं। है। ये श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के दो दिन बाद पड़ती है। इस दिन भगवान विष्णु के श्रीहरि रूप की पूजा की जाती हैं और व्रत रखा जाता हैं। मान्यता हैं कि इस व्रत को रखने से सभी पापों से मुक्ति मिलती है। भगवान कृष्ण ने ब्रह्मवैवर्त पुराण में इस एकादशी की महिमा का वर्णन युधिष्ठिर से किया था। इस व्रत को करने से जन्म-मरण के दुष्चक्र से मुक्ति मिल जाती है। चलिए आपको बताते हैं अजा एकादशी का शुभ मूहर्त, पूजा विधि समेत तमाम चीजें
अजा एकादशी व्रत का समय
आज सुबह 6:22 के बाद शुरू होकर 3 सितंबर के दिन सुबह 7:45 तक।
ऐसे करें अजा एकादशी का व्रत
इस दिन जल्दी उठकर घर की साफ-सफाई करें।
झाड़ू और पोंछा लगाने के बाद पूरे घर में गौमूत्र का छिड़काव करें।
उसके बाद शरीर पर तिल और मिट्टी का लेप लगा कर कुशा से स्नान करें।
नहाने के पानी में गंगाजल जरूर मिलाएं।
नहाने के बाद भगवान विष्णु जी की पूजा करें।
दिनभर भगवान विष्णु का स्मरण करते रहे।
अजा एकादशी की इस तरह करें पूजा
घर में पूजा के स्थान पर या पूर्व दिशा में किसी साफ जगह पर गौमूत्र छिड़ककर वहां गेहूं रखें।
फिर उस पर तांबे का लोटा यानी कलश रखें। लोटे को जल से भरें और उसपर अशोक के पत्ते या डंठल वाले पान रखें।
कलश पर नारियल रख दें। इस तरह कलश स्थापना करें। फिर विष्णु भगवान की पूजा करें और दीपक लगाएं।
इसके बाद पूरे दिन व्रत रखें और अगले दिन तक कलश की स्थापना हटा लें।
फिर उस कलश का पानी पूरे घर में छिड़क दें और बचा हुआ पानी तुलसी में डाल दें।
अजा एकादशी की कथा
कथा के अनुसार, अपनी सत्यनिष्ठा व करुणा के लिए प्रसिद्ध राजा हरिश्चंद्र को जब एक स्वप्न के कारण अपना राज्य छोड़ना पड़ा, तब वह आजीविका के लिए श्मशान में काम करने लगे। एक दिन ऋषि गौतम ने जब उन्हें इतनी दारुण अवस्था में देखा, तो उन्होंने राजा को इस एकादशी पर व्रत रखने को कहा। राजा ने वैसा ही किया। परिणामस्वरूप राजा हरिश्चंद्र को न सिर्फ उनका राज्य वापस मिल गया, बल्कि उनका मृत पुत्र भी पुन: जीवित हो गया। इस दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की विधि-विधान से पूजा करके व्रत कथा का पाठ करें और चरणामृत बना कर सबको बांटें।