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Fixed Deposit: FD में पैसा लगाने से पहले इन पर करें फोकस, कम निवेश पर मिलेगा ज्यादा रिटर्न

FD में पैसा लगाते वक्त इन बातों का रखें ध्यान, कम निवेश पर मिलेगा ज्यादा रिटर्न

आज के समय में सुरक्षित निवेश का सबसे अच्छा विकल्प फिक्स्ड डिपोजिट (FD) है, क्योंकि एफडी में जमा धन पर अस्थिर बाजार ट्रेंड्स का कोई असर नहीं पड़ा। इतना नहीं, यह मेहनत से कमाए धन को निवेश कर उस पर अधिक रिटर्न हासिल करने का एक सबसे भरोसेमंद विकल्प भी है। लोग रियाटरमेंट को ध्यान में रखते हुए भी बैंकों में वित्तीय संस्थानों में एफडी खोलते हैं। ऐसे में अगर कई चीजों पर ध्यान दें तो आपको कम निवेश कर ज्यादा रिटर्न मिल सकता है।

एफडी लेते वक्त बैंकों और एनबीएफसी के अलग-अलग ब्याज दर का मिलान कर लें। इससे आपको पता चल जाएगा कि किस बैंक में कितना रिटर्न मिलने की संभावना है। आईए जानते हैं कि, आप अपनी जमा राशि पर अच्छा-खासा रिटर्न कैसे पा सकते हैं।

कई फैक्टर पर निर्भर है ब्याज

FD पर ब्याज दर कई फैक्टर पर निर्भर करता है, जैसे कि बैंक, जमा की अवधि और निवेशक किस तरह के हैं, यह सब बातें ब्याज दर पर असर डालती हैं। एफडी के साथ जो अलग-अलग फायदे हैं, उनमें एक खास है इमरजेंसी में पैसे निकालना। अगर किसी को अचानक पैसे की जरूरत पड़ जाए तो वह कुछ जुर्माना भर कर पैसा निकाल सकता है।

बैंक ब्याज में नहीं कर सकते बदलाव

फिक्स्ड डिपोजिट में एक बार जो पैसा जमा हो गया, बैंक ने जिस ब्याज दर का करार कर किया है उसे उसी ब्याज के मुताबिक रिटर्न लौटाना होगा। यह रेट बाजार के उतार-चढ़ाव से प्रभावित नहीं होती। ऐसा नहीं है कि बैंक भविष्य में इसमें कोई बदलाव कर दे।

अलग-अलग टर्म की एफडी

बताते चलें कि, फिक्स्ड डिपोजिट का टर्म सात दिन से 10 साल तक हो सकता है। इसमें भी तीन कैटगरी होती है, शॉर्ट टर्म जिसमें 1 साल से कम अवधि के लिए, मिड टर्म में 1 साल से 3 साल के बीच तक और लॉन्ग टर्म में यह अवधि 3 साल से ज्यादा की होती है। अब निवेश करने वाले व्यक्ति को देखना होगा कि अपने पैसे के साथ वह कितना जोखिम ले सकते हैं, वे अपने पैसे को कितने साल तक ब्लॉक कर सकने की क्षमता रखते हैं या आगे चलकर उनकी जरूरतें कैसी हैं। जब इन बातों पर ध्यान लगा लें तो बैंक और गैर-बैंकिंग वित्तीय संस्थानों (NBFC) के बीच तुलना कर फैसला करें कि कहां एफडी करानी है।

FD करने से पहले चेंक करें बैंक DICGC से रजिस्टर्ड है या नहीं

DICGC के निर्देश के मुताबिक, बैंकों में जमा 5 लाख रुपये तक की राशि सुरक्षित है और अगर किसी कारण वश बैंक डूब जाती है तो इतना पैसा मिलने की पूरी गारंटी है। एफडी कराने से पहले यह जरूर पता लगाए कि, वह बैंक DICGC के अंतर्गत रजिस्टर्ड है या नहीं। इसके लिए बैंकों को रिजर्व बैंक से रजिस्ट होना पड़ता है जिसके लिए बैंकों को कुछ राशि चुकानी होती है। जरूरी नहीं कि सभी बैंक या एनबीएफसी इस इंश्योरेंस पॉलिसी के तरत रजिस्टर्ड हों।

रेंटिग पर ध्यान देना जरूरी

बता दें कि, बैंक और एनबीएफसी के डिफॉल्टर होने की रेटिंग होती है, अगर कोई बैंक एएए या एए रेटिंग में है, तो इसका ये बिल्कुल मतलब नहीं है कि, वह डिफॉल्ट है नहीं हो सकता। माना जाता है कि AAA- रैंकिंग सबसे कम डिफॉल्ट की ओर से इशारा करते हैं। अपना पैसा लगाने से पहले इसे ध्यान में रखते हुए लगाए कि, अपना पैसा किसी बैंक या एनबीएफसी में एफडी खोल सकते हैं, ध्यान रखें कि कंपनी की एफडी DICGC से इंश्योर्ड नहीं होती है।

NBFC और बैंक में करें तुलना

FD का टर्म कितना है और किस टाइप की एफडी है, उसका ब्याज दर इसी पर निर्भर करता है, इसे देखते हुए बैंकों और एनबीएफसी के बीच टर्म और ब्याज दर को लेकर जरूर तुलना कर लें। एफडी के मैच्योर होने पर उसे फिर से जमा कर सकते हैं, इससे रिटर्न की मात्रा और बढ़ेगी। इमरजेंसी में चाहें तो एफडी पर लोन भी ले सकते हैं।

अगर आपको पैसे की जरूरत पड़ती है और ऐसे में आप एफडी तोड़ने की सोचते हैं तो इससे अच्छा विकल्प यह होगा की आप एफडी पर लोन उठा लें और धीरे-धीरे उसका पैसा चुका दें। जितने दिन की एफडी होती है, उतने दिन में आप आराम से लोन चुका सकते हैं। एफडी पर मिलने वाला लोन सुरक्षित लोन माना जाता है। एफडी की 90-95 प्रतिशत राशि तक आप लोन के रूप में उठा सकते हैं। एफडी की मैच्योरिटी तारीख से पहले इस लोन को चुकाने का नियम है।