आज बुध प्रदोष व्रत है। बुधवार को पड़ने वाले प्रदोष व्रत को बुध प्रदोष व्रत कहा जाता है। जुलाई महीने का ये पहला बुधवार है, जिस दिन प्रदोष व्रत है। प्रदोष व्रत दिन के आधार पर बदलता रहता है। प्रदोष व्रत भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित है। इस व्रत को शास्त्रों में बहुत कल्याणकारी व्रत बताया गया है। एकादशी की तरह ये व्रत भी महीने में दो बार रखा जाता है। ये व्रत महीने में कृष्ण और शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि पर रखा जाता है। इस दिन भगवान शिव की उपासना प्रदोष काल में की जाती है।
शुभ मुहूर्त-
ब्रह्म मुहूर्त- 03:41 ए एम से 04:22 ए एम तक।
विजय मुहूर्त- 02:09 पी एम से 03:04 पी एम तक।
गोधूलि मुहूर्त- 06:28 पी एम से 06:52 पी एम तक।
अमृत काल- 02:43 पी एम से 04:31 पी एम तक।
निशिता मुहूर्त- 11:32 पी एम से 12:14 ए एम, जुलाई 08 तक।
सर्वार्थ सिद्धि योग- पूरे दिन
पूजा विधि- व्रत के दिन सुबह स्नानादि करके भगवान शिव के सामने व्रत क संकल्प लें। उसके बाद पूजा चौकी पर भगवान शिव और माता पार्वती की मूर्ति स्थापित कर पूजन करें। भगवान शिव का जलाभिषेक करके चंदन, रोली, धूप, दीप, अक्षत्, पुष्प, फल, मिठाई आदि चढ़ाएं। माता पार्वती जी को सिंदूर और श्रृंगार का सामान चढ़ाएं। वहीं भगवान शिव को बेलपत्र, मदार पुष्प, भांग, धतुरा, गाय का दूध अलग से अर्पित करें। अब शिव और पार्वती आरती कर प्रणाम करें।
व्रत कथा– एक पुरुष की नई-नई शादी हुई। वह गौने के बाद दूसरी बार पत्नी को लेने ससुराल पहुंचा और उसने सास से कहा कि बुधवार के दिन पत्नी को लेकर अपने नगर जाएगा। परिवार के सभी सदस्यों ने उसे बुधवार को ले जाने के लिए मना किया, लेकिन वो नहीं माना। आखिरकार सास-ससुर ने जमाता और पुत्री को भारी मन के साथ विदा कर दिया। दोनों पति और पत्नी बैलगाड़ी से घर के लिए चल पड़े। जैसे ही वे नगर के बाहर पहुंचे पत्नी को जोर से प्यास लगी और उसने पति से पानी पीने के लिए कहा।
पति पानी का लोटा लेकर गया, लेकिन जब वो वापस लौटा तो देखा कि उसकी पत्नी किसी पराये पुरुष के साथ खड़ी होकर लोटे से पानी पी रही है और हंस कर बात कर रही है। देखने में वो पुरुष हूबहू उसके जैसा है। ये देखकर महिला का पति पहले तो आश्चर्यचकित हो गया, फिर उस व्यक्ति के पास जाकर झगड़ा करने लगा। धीरे-धीरे वहां काफी भीड़ इकट्ठा हो गई. इतने में एक सिपाही भी आ गया। सिपाही ने स्त्री से पूछा कि बताओं दोनों में से तुम्हारा पति कौन सा है।
स्त्री संशय में थी क्योंकि दोनों हमशक्ल थे, इसलिए वो चुप रही. बीच राह में पत्नी को इस तरह चुप देखकर उसका पति मन ही मन शंकर भगवान की प्रार्थना करने लगा कि हे भगवान मुझे और मेरी पत्नी को इस मुसीबत से बचा लो। मैंने बुधवार के दिन अपनी पत्नी को विदा कराकर जो अपराध किया है उसके लिये मुझे क्षमा करो। दोबारा कभी ऐसी भूल नहीं करूंगा। उसकी प्रार्थना सुनकर भगवान को तरस आ गया और उसी क्षण दूसरा पुरुष कहीं अंर्तध्यान हो गया। इसके बाद वो पुरुष अपनी पत्नी के साथ सकुशल अपने नगर को पहुंच गया और उसने व उसकी पत्नी ने नियम पूर्वक प्रदोष का व्रत रखना शुरू कर दिया।