नवरात्रों में मां के नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है। लोग बड़े ही श्रद्धा-भाव के साथ मां दुर्गा की आरती करते है। नवरात्र में दुर्गा जी के चौथे स्वरुप कूष्माण्डा की पूजा की जाती है। लोग निश्छल मन से कूष्माण्डा देवी को ध्यान में रखकर पूजा-उपासना करते है। हिंदु कथा के अनुसार, जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था। चारों ओर अंधकार ही अंधकार था। तब कूष्माणडा देवी ने अपने 'ईषत' हास्य से ब्रह्माण्ड की रचना की थी।अतः ये सृष्टि की आदि शक्ति हैं। इनका निवास सूर्य मंडल के भीतर के लोक में स्थित है। सूर्य लोक में निवास कर सकने की क्षमता और शक्ति केवल इन्हीं में है। मां कूष्मांडा को खुश करने और सभी कामों में सफलता हासिल करने के लिए मां के इस मंत्र का 108 बार जप करने से मनोवांछित काम पूरे होते हैं। मंत्र इस प्रकार है-
सुरासंपूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च।
दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे।।
मां कूष्मांडा के तेज की तुलना कोई भी देवी-देवता नहीं कर सकते। इन्हीं के तेज और प्रकाश से दसों दिशाएं प्रकाशित होती है। इनकी आठ भुजाएं हैं। इसलिए इन्हें अष्टभुजादेवी के नाम से भी जाना जाता है। इनके सात हाथों में कमण्डल, धनुष, बाण, कमलपुष्प, अमृतपूर्ण कलश ,चक्र और गदा है। आठवें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जपमाला है। इनका वाहन सिंह है। मां की उपासना करने से भक्त की सारी मनोकामना पूरी हो जाती है। इस दिन जो भी सच्ची श्रद्धा से मां का व्रत रखता है, वो रोग और विनाश से मुक्त हो जाता है।
मां कूष्माण्डा उस भक्त को आयु, यश, बल और बुद्धि प्रदान करती हैं। चलिए अब आपको बताते है कि मां की पूजा कैसे करें। सबसे पहले कलश की पूजा कर माता कूष्मांडा को प्रणाम करें। देवी को पूरी श्रद्धा से फल, फूल, धूप, गंध, भोग चढ़ाएं। पूजा के दौरान मंत्र 'सुरासम्पूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च। दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे॥' का जाप करते रहे। इसके बाद मां कुष्मांडा को भोग लगाए और फिर सभी में प्रसाद बांट दे। मां को मालपुए काफी लोकप्रिय है। पूजा के बाद अपने से बड़ों को प्रणाम करें। इससे माता की कृपा भक्तों पर बरसती है।