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Chaitra Navratri: ग्वालियर का शीतला देवी मंदिर, जहां चंबल के डाकू भी झुकाते थे सिर

photo courtesy patkira

चैत्र नवरात्रि शुरू हो चुके है। नवरात्रि के दिन देवी दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है। मान्यता है कि जो भी भक्त माता रानी का श्रद्धाभाव में व्रत करता है। मां उसके सारे कष्ट हर लेती है और जीवन में खुशहाली भर देती है। नवरात्र में शक्तिपीठ मंदिरों के दर्शन का खास महत्व होता है। तो चलिए ऐसे में हम आपको एक ऐसी मंदिर के बारे में बताएंगे, जहां जाने मात्र ही भाग्य खुल जाते है। ये मंदिर मध्य प्रदेश के ग्वालियर में स्थित है। इस मंदिर का नाम 'मां शीतला देवी' मंदिर है। इस मंदिर को लेकर कई पौराणिक कथा काफी प्रचलित है।
 
ग्वालियर के 'शीतला देवी मंदिर' में मां देवी विराजमान है। ये मंदिर घने जंगलों में स्थित है। बताया जाता है कि घने जंगल के कारण यहां बहुत शेर रहा करते थे। इसके बावजूद मां के भक्तगण रोज उनकी पूजा अर्चना करने आते थे। वहां के लोगों कहना है कि एक समय पूरे चंबल इलाके में डकैतों का बोलबाला था लेकिन डकैतों ने इस इलाके में कभी लूटपाट नहीं की और ना ही कभी श्रद्धालुओं की तरफ देखा। लोगों का कहना है कि डकैत भी मां के दरबार में अपनी प्रार्थना लेकर आते थे। भक्त गजाधर को लेकर भी मां की कृपा का बखान किया जाता है। बताया जाता है कि भक्त गजाधर पास बसे गांव सांतऊ में रहते थे। 

वो खरौआ में एक प्राचीन देवी मंदिर में रोजाना गाय के दूध से माता का अभिषेक करते थे। एक दिन उनकी भक्ति से खुश होकर देवी मां ने कन्या रूप में उन्हें दर्शन दिए और उनसे अपने साथ ले चलने को कहा। गजाधर ने माता से कहा कि  उनके पास कोई साधन नहीं है वो उन्हें अपने साथ कैसे ले जाएं। तब माता ने भक्त को वचन दिया और कहा कि वो जब भी उनका ध्यान करेंगे वो प्रकट हो जाएंगी। गजाधर ने घर पहुंचकर माता का आवाहन किया तो मां देवी प्रकट हो गईं और गजाधर से मंदिर बनवाने के लिए कहा। 
 
गजाधर ने माता से कहा कि वो जहां विराज जाएंगी वहीं मंदिर बना दिया जाएगा। माता सांतऊं गांव से बाहर निकल कर जंगलों में  पहाड़ी पर विराजमान हो गईं। तब से महंत गजाधर के वंशज इस मंदिर में पूजा-अर्चना करते है। महंत नाथूराम पांचवीं पीढ़ी के है। मां शीतला मंदिर में जो भी आता है, वो झोली भरकर जाता है। नवरात्रि के दिनों में यहां भक्त नंगे पांव उनके दर्शन के लिए आते है। यहां आने से  निसंतान दंपति को संतान की प्राप्त होती है और कोढ़ी को काया मिल जाते है। वहीं दुखियों के सारे दुख हर लिए जाते है।