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Bakrid 2021: जानिए बकरीद को क्यों कहा जाता है कुर्बानी की ईद, क्या हैं मान्यता और कुर्बानी के नियम?

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आज बकरीद यानी कुर्बानी की ईद है। इसे ईद-उल-अजहा भी कहते है। बकरा ईद पर सबसे पहले मस्जिदों में नमाज अदा की जाती है। इसके बाद बकरे या दुंबे-भेड़ की कुर्बानी दी जाती है। कुर्बानी के इस गोश्त को तीन हिस्सों में बांटा जाता है। इसमें से एक हिस्सा गरीबों को जबकि दूसरा हिस्सा दोस्तों और अपने सगे संबंधियों को दिया जाता है। वहीं तीसरे हिस्से की अगर बात करें तो यह अपने परिवार वालों के लिए रखा जाता है। चलिए आपको बताते है कि बकरीद के महत्व, मान्यता, और कुर्बानी के नियम-

बकरीद का महत्व

ईद-उल-फितर के लगभग 70 दिन बाद ईद-उल-अजहा यानी बकरा ईद का आगमन होता है। इस्लाम धर्म में बकरीद लोगों को सच्चाई की राह में अपना सब कुछ कुर्बान कर देने का संदेश देती है। इस त्योहार को मनाने का कारण हजरत इब्राहिम की कुर्बानी है, जिन्हे याद करते हुए इस पर्व को मनाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि हजरत इब्राहिम अल्लाह के हुकुम पर अपनी वफादारी दिखाने के लिए अपने बेटे इस्माइल की कुर्बानी देने को तैयार हो गए थे।

जब हजरत इब्राहिम अपने बेटे को कुर्बान करने के लिए आगे बढ़े तो अल्लाह ने उनकी निष्ठा को देखते हुए इस्माइल की जगह दुंबे को रख दिया जिससे कुर्बानी इस्माइल की नहीं बल्कि दुंबे की हुई। तब से ही यह प्रथा चालू हो गई और इस दौरान कुर्बानी के रूप में बकरा या फिर दुंबे की कुर्बानी दी जाने लगी।

 

बकरीद की मान्यता

 बकरीद को कुर्बानी का दिन कहा जाता है। कहा जाता है कि हजरत इब्राहिम अलैय सलाम की कोई संतान नहीं थी। काफी मन्नतें मांगने के बाद उन्हें एक पुत्र इस्माइल प्राप्त हुआ जो उन्हें बहुत प्रिय था। इस्माइल को ही आगे चलकर पैगंबर नाम से जाना जाने लगा। एक दिन इब्राहिम को अल्लाह ने स्वप्न में कहा कि उन्हें उनकी सबसे प्रिय चीज की कुर्बानी चाहिए। इब्राहिम समझ गए कि अल्लाह उनसे उनके पुत्र की कुर्बानी मांग रहे हैं। अल्लाह के हुक्म के आगे वे अपने जान से प्यारे पुत्र की बलि देने को भी तैयार हो गए।

कुर्बानी देते समय इब्राहिम ने आंखों पर पट्टी बांध ली ताकि उनकी ममता न जागे। जैसे ही उन्होंने छुरी उठाई, वैसे ही फरिश्तों के सरदार जिब्रील अमीन ने बिजली की तेजी से इस्माइल अलैय सलाम को छुरी के नीचे से हटाकर एक मेमने को रख दिया, जब इब्राहिम ने अपनी पट्टी हटाई तो देखा कि इस्माइल खेल रहा हैं और मेमने का सिर कटा हुआ है. तभी से इस पर्व पर जानवर की कुर्बानी का सिलसिला शुरू हो गया।

 

कुर्बानी के नियम

बकरीद पर कुर्बानी के लिए भी कुछ नियम हैं। इस दिन बकरे के अलावा ऊंट या भेड़ की भी कुर्बानी दी जा सकती है। उस पशु को कुर्बान नहीं किया जा सकता जिसको कोई शारीरिक बीमारी या भैंगापन हो, जिसके शरीर का कोई हिस्सा टूटा हो। शारीरिक रूप से दुर्बल जानवर की भी कुर्बानी नहीं दी जा सकती, इसीलिए बकरीद से पहले ही जानवर को खिला पिलाकर हष्ट पुष्ट किया जाता है। कम-से-कम जानवर की उम्र एक साल होनी चाहिए।