Hindi News

indianarrative

Gangaur Vrat:अगर चाहिए मनचाहा जीवनसाथी तो कुंवारी लड़कियां जरुर करें गणगौर पूजन, ये है पूजा का शुभ मुहूर्त

photo courtesy patkira

राजस्थान और सीमावर्ती प्रदेश का खास त्यौहार गणगौर 15 अप्रैल को मनाया जाएगा। गणगौर चैत्र महीने की शुक्ल पक्ष की तीज को आता है। इस दिन कुवांरी लड़कियां और विवाहित महिलाएं शिव और पार्वती की पूजा करती है। इस दिन पूजन के समय रेणुका की गौर बनाकर उस पर महावर, सिंदूर और चूड़ी आदि का श्रृगांर चढ़ाया जाता है। चंदन, अक्षत, धूपबत्ती, दीप, नैवेद्य से पूजन करके भोग लगाया जाता है। मान्यता है कि इस दिन अगर कुंवारी लड़कियां पूजा करें तो उन्हें मनचाहा जीवनसाथी मिलता है। इस साल गणगौर पूजा 15 अप्रैल को है। 
 
गणगौर पूजा करने का शुभ समय दोपहर 3 बजकर 27 मिनट पर है। चलिए अब आपको बताते है कि कैसे करें गणगौर की पूजा। भगवान शिव और पार्वती को सुंदर वस्त्र पहनाएं और मां पार्वती का श्रृंगार करें। एक बड़ी थाली में चांदी का छल्ला और सुपारी रखकर उसमें जल, दूध-दही, हल्दी, कुमकुम घोलकर सुहागजल तैयार करें। दोनों हाथों में दूब लेकर इस जल से पहले गणगौर को छींटे लगाकर फिर अपने ऊपर सुहाग के प्रतीक के तौर पर इस जल को छिड़के। आखिर में चूरमे का भोग लगाएं और गणगौर माता की कहानी सुने। 
 
गणगौर व्रत कथा-
 
एक समय की बात है, भगवान शंकर, माता पार्वती एवं नारद जी के साथ भ्रमण हेतु चल दिए। वो चलते-चलते चैत्र शुक्ल तृतीया को एक गांव में पहुंचे। उनका आना सुनकर ग्राम कि निर्धन स्त्रियां उनके स्वागत के लिए थालियों में हल्दी और अक्षत लेकर पूजन हेतु तुरंत पहुंच गई। पार्वती जी ने उनके पूजा भाव को समझकर सारा सुहाग रस उन पर छिड़क दिया। वे अटल सुहाग प्राप्त कर लौटी। थोड़ी देर बाद धनी वर्ग की स्त्रियां अनेक प्रकार के पकवान सोने चांदी के थालो में सजाकर सोलह श्रृंगार करके शिव और पार्वती के सामने पहुंची। 
 
इन स्त्रियों को देखकर भगवान शंकर ने पार्वती से कहा तुमने सारा सुहाग रस तो निर्धन वर्ग की स्त्रियों को ही दे दिया। अब इन्हें क्या दोगी? पार्वती जी बोली प्राणनाथ! उन स्त्रियों को ऊपरी पदार्थों से निर्मित रस दिया गया है। इसलिए उनका सुहाग धोती से रहेगा लेकिन मैं इन धनी वर्ग की स्त्रियों को अपनी अंगुली चीरकर रक्त का सुहाग रख दूंगी, इससे वो मेरे सामान सौभाग्यवती हो जाएंगी। जब इन स्त्रियों ने शिव पार्वती पूजन समाप्त कर लिया तब पार्वती जी ने अपनी अंगुली चीर कर उसके रक्त को उनके ऊपर छिड़क दिया जिस पर जैसे छींटे पड़े उसने वैसा ही सुहाग पा लिया। 
 
पार्वती जी ने कहा तुम सब वस्त्र आभूषणों का परित्याग कर, माया मोह से रहित होओ और तन, मन, धन से पति की सेवा करो। तुम्हें अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होगी. इसके बाद पार्वती जी भगवान शंकर से आज्ञा लेकर नदी में स्नान करने चली गई। स्नान करने के पश्चात बालू की शिव जी की मूर्ति बनाकर उन्होंने पूजन किया। भोग लगाया तथा प्रदक्षिणा करके दो कणों का प्रसाद ग्रहण कर मस्तक पर टीका लगाया। उसी समय उस पार्थिव लिंग से शिवजी प्रकट हुए और पार्वती को वरदान दिया आज के दिन जो स्त्री मेरा पूजन और तुम्हारा व्रत करेगी उसका पति चिरंजीवी रहेगा तथा मोक्ष को प्राप्त होगा। 
 
भगवान शिव यह वरदान देकर अंतर्धान हो गए। इतना सब करते-करते पार्वती जी को काफी समय लग गया। पार्वती जी नदी के तट से चलकर उस स्थान पर आई जहां पर भगवान शंकर व नारद जी को छोड़कर गई थी। शिवजी ने विलंब से आने का कारण पूछा तो इस पर पार्वती जी बोली मेरे भाई भावज नदी किनारे मिल गए थे। उन्होंने मुझसे दूध भात खाने तथा ठहरने का आग्रह किया।