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गोवा में है मां दुर्गा का वो रूप, जिन्होंने युद्ध में दाएं हाथ में भगवान विष्णु को और बायें हाथ से भगवान शिव को उठाया था

photo courtesy Google

देश में देवी मां के अनेकों मंदिर है, जिनमें मां दुर्गा और उनके कई रूपों की पूजा की जाती है। मां दुर्गा के कई रुपों में से एक है 'मां शांता दुर्गा' का रुप.. कहा जाता है कि देवी शांता दुर्गा ने दाएं हाथ में भगवान विष्णु को और बायें हाथ से भगवान शिव को उठाया था। इन देवी का प्रमुख मंदिर गोवा की राजधानी पणजी से लगभग 30 किलोमीटर की दूरी पर कवलम नामक गांव में स्थित हैं। मंदिर में शांतादुर्गा के अलावा भगवान शिव शंकर और भगवान विष्णु की प्रतिमा भी स्थापित हैं। स्थानीय लोग शांतादुर्गा देवी को 'शांतेरी' भी कहते है।

श्री शांतादुर्गा मंदिर और इसके देवी-देवताओं के बारे में एक कहानी प्रचलित है। कहा जाता है कि एक समय भगवान शिव और भगवान विष्णु के बीच एक भयंकर युद्ध छिड गया था। लेकिन जब परम पिता ब्रम्हा जी को ये युद्ध समाप्त होते हुए नही दिखा तो उन्होंने माता पार्वती से युद्ध में हस्तक्षेप करने को कहा। पार्वती जी ने शांतादुर्गा के रूप में भगवान विष्णु को अपने दाहिने हाथ पर और भगवान शिव को अपने बाएं हाथ पर उठा लिया। इसके बाद दोनों देवताओं के बीच चल रहा ये युद्ध समाप्त हो गया।

माता पार्वती का यह अवतार जो भगवान भोले नाथ और भगवान विष्णु के बीच छिडे इस युद्ध को शांत करने के लिए हुआ था, इसलिए इन्हें शांतेरी या शांतादुर्गा कहा जाता है। ये सारस्वत, कर्हाडे ब्राह्मणों और भंडारी लोगों की कुल देवी हैं। मां शांतादुर्गा भगवान शिव की पत्नी और अनन्य भक्त दोनों हैं, इसलिए मंदिर में उनके साथ भगवान शंकर की भी पूजा की जाती है। मां की प्रतिमा के पास ही एक शिवलिंग भी है। मंदिर की देवी शांतादुर्गा अपने दोनों हाथों में एक-एक सांप को पकडे हुए हैं जो भगवान विष्णु और भगवान शिव का नेतृत्व करते हैं।

बताया जाता है कि शांतादुर्गा मंदिर शुरुआती समय में कैवेलोसिम में स्थित था, लेकिन पुर्तगालियों के द्वारा मंदिरों को नष्ट किया जा रहा था। तो इस मंदिर को कवलम नामक गांव में लेटराइट मिटटी से एक छोटे मंदिर के रूप में स्थापित कर दिया गया। बाद में इस मंदिर का पुनिर्माण सतारा के मराठा शासक साहू राजे ने अपने मंत्री नरो राम के अनुरोध पर करवाया था। मंदिर का निर्माण कार्य सन 1738 में पूरा हो गया था। यह सुबह पांच बजे से रात के 10 बजे तक खुला रहता है। मंदिर की सबसे खास पूजा नवचंडी जप और हवन हैं। इस पूजा के लिए आप ऑनलाइन बुकिंग नही कर सकते हैं बल्कि मंदिर पहुंच कर आपको पूजा में शामिल होने के लिए टिकट लेनी पढ़ती हैं।