Hindi News

indianarrative

देसी नस्ल के कुत्तों पर शोध के लिए अलग संस्थान खोलने पर विचार कर रहा आईसीएआर

मोदी सरकार के 'आत्मनिर्भर भारत अभियान' के तहत देसी वस्तुओं के साथ-साथ देसी नस्ल के पशुओं की उपयोगिता को भी तवज्जो दिया जा रहा है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के महानिदेशक डॉ. त्रिलोचन महापात्रा के निर्देशन में आईसीएआर के संस्थानों और अन्य विश्वविद्यालयों में देसी नस्ल के कुत्तों पर शोध चल रहा है और इसके लिए एक अलग रिसर्च इंस्टीट्यूट खोलने पर विचार किया जा रहा है।

आईसीएआर के वैज्ञानिकों ने देश के चर्चित डॉग के ब्रीड की पहचान की है और उनकी क्षमता का किस प्रकार इस्तेमाल किया जा सकता है, इस पर शोध चल रहा है। आईसीएआर के उप-महानिदेशक (पशुविज्ञान) डॉ. बी.एन. त्रिपाठी ने कहा कि डॉग के दो ब्रीड का कॉटेराइजेशन किया गया है। ये दोनों ब्रीड हैं-राजापलायम और चिप्पीपराई। उन्होंने कहा कि अब और भी ब्रीडों का कॉटेराइजेशन किया जाएगा।

डॉ. त्रिपाठी ने आईएएनएस से कहा कि देश में कुत्तों की अनेक चर्चित ब्रीड है, जिसकी क्षमता का इस्तेमाल किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि मुधोल हाउंड, हिमाचली हाउंड, राजापलायम, कन्नी, चिप्पीपराई और कोम्बाई कुत्तों की चर्चित नस्लें हैं, जिनका जिक्र प्रधानमंत्री ने भी किया है। इसके अलावा रामपुर ग्रेहाउंड भी कुत्ते की एक अच्छी देसी नस्ल है।

प्रधानमंत्री ने लोगों से देसी नस्ल के कुत्ते पालने की अपील करते हुए कहा कि इनको पालने में खर्च भी काफी कम आता है, क्योंकि ये भारतीय माहौल में ढले होते हैं।

देसी नस्ल के कुत्ते पालने में कम खर्च होने को लेकर पूछे गए सवाल पर डॉ. त्रिपाठी ने कहा, "जाहिर है कि देसी नस्ल के जो पशु हैं, वे वातावरण के अनुकूल होते हैं, इसलिए उनमें बीमारी का भी खतरा कम रहता है। जहां तक कुत्तों के स्वास्थ्य का सवाल है तो इस दिशा में काफी प्रगति हो चुकी है और कुत्तों का भी अल्ट्रासाउंड होता है और इनकी सर्जरी की तकनीक भी काफी विकसित हो चुकी है।"

डॉ. त्रिपाठी ने बताया कि ब्रीड पर रिसर्च का कार्य राष्ट्रीय पशु आनुवंशिक संसाधन ब्यूरो (एनबीएजीआर) कर रहा है, लेकिन स्वास्थ्य संबंधी रिसर्च आईसीएआर के पशु विज्ञान विभाग के संस्थानों में चल रहा है।.