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Jagannath Rath Yatra 2021: आज निकाली जाएगी जगन्नाथ रथ यात्रा, लगाया जाएगा खिचड़ी का भोग, जानें इसके पीछे की वजह

photo courtesy Google

भगवान जगन्नाथ की पुरी रथ यात्रा आज निकाली जाएगी। उड़ीसा का जगन्नाथ पुरी धाम भारत में ही नहीं, बल्कि विश्वभर में प्रसिद्ध है। हर साल करोड़ों की संख्या में श्रद्धालु दूर-दूर से भगवान जगन्नाथ के दर्शन करने व उनकी इस लोकप्रिय रथयात्रा का हिस्सा बनने आते है। इस रथ यात्रा में जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा जी अलग-अलग रथ में सवार होकर पुरी की यात्रा करते हैं। तीनों लोगों के रथ के रंग, आकार और सजावट में काफी भिन्नता है। लेकिन कोरोना संक्रमण के कारण, इस बार ये यात्रा सूक्ष्म रूप से निकाली जाएगी।

शुभ मुहूर्त

द्वितीया तिथि प्रारम्भ – जुलाई 11, 2021 को 07:47 ए एम बजे

द्वितीया तिथि समाप्त – जुलाई 12, 2021 को 08:19 ए एम बजे

हिन्दू पंचांग के अनुसार, हर वर्ष आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को ही भव्य उत्साह के साथ जगन्नाथ रथ यात्रा निकाले जाने का विधान है। भगवान जगन्नाथ की ये यात्रा लगभग दस दिनों तक चलती है, जिसमें प्रथम दिन भगवान जगन्नाथ को गुंडिचा माता के मंदिर लेकर जाया जाता है। जगन्नाथ मंदिर से रथ यात्रा शुरू होकर 3 कि.मी. दूर गुंडीचा मंदिर पहुंचती है। इस स्थान को भगवान की मौसी का घर भी माना जाता है। मान्यता के अनुसार यहीं पर विश्वकर्मा ने इन तीनों प्रतिमाओं का निर्माण किया था। अतः ये स्थान जगन्नाथ जी की जन्म स्थली भी है। यहां तीनों देव सात दिनों के लिए विश्राम करते है।

भगवान जगन्नाथ को हर सुबह खिचड़ी का भोग लगाया जाता है। पौराणिक कथा के अनुसार भगवान विष्णु की परम भक्त कर्माबाई पुरी में रहती थीं। वे भगवान से अपने पुत्र की तरह प्यार करती थीं। कर्माबाई ठाकुरजी की बाल स्वरूप में पूजा करती थीं। एक दिन कर्माबाई का मन भगवान को फल-मेवे की जगह अपने हाथों से बनाकर कुछ खिलाने की इच्छा हुई। उन्होंने भगवान को अपनी इच्छा के बारे में बताया। भगवान अपने भक्तों के लिए हमेशा रहते हैं। उन्होंने कहा- मां जो भी बनाया है वो खिला दो, बहुत भूख लगी है।

कर्मा बाई ने खिचड़ी बनाई थी और वहीं खाने को दे दी। प्रभु ने प्रेम से खिचड़ी खाई और माता दुलारा करते हुए पंखा झुलाने लगीं ताकि उनका मुंह न जल जाए। प्रभु ने कहा- मुझे खिचड़ी बहुत अच्छी लगी और आप मेरे लिए रोज खिचड़ी ही पकाया करें। मैं यहीं खाऊंगा। भगवान रोज बाल स्वरूप में खिचड़ी खाने के लिए आया करते थे। एक दिन साधु मेहमान बनकर आए और उन्होंने देखा कि कर्माबाई बिना स्नान के खिचड़ी बनाकर ठाकुरजी को भोग लगाती है। उन्होंने कर्माबाई से ऐसा करने से मना कर दिया और भोग लगाने के कुछ नियमों के बारे में बताया।

अगले दिन कर्माबाई ने नियमानुसार भोग लगाया जिसकी वजह से उन्हें देर हो गई। वो मन ही मन सोच कर दुखी होती हैं कि मेरा ठाकुर इतने देर तक भूखा रह गया। ठाकुरजी खिचड़ी खाने आए तभी मंदिर में दोपहर के भोग का समय हो गया और वो झूठे मुंह ही मंदिर पहुंच गए। पड़ितों ने देखा ठाकुरजी के मुंह में खिचड़ी लगी है। इसके बाद प्रभु ने पुजारियों को सभी बात बतायी। जब ये बात साधु को पता चाली तो वह बहुत पछताएं और कर्माबाई से क्षमा याचना मांगी और कहा कि आप पहले की तरह बिना स्नान के भोग अर्पित करें। इसलिए आज भी जगन्नाथ मंदिर में सुबह के समय में खिचड़ी का भोग लगाया जाता है।