कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को कालाष्टमी का व्रत किया जाता है। ये तिथि भगवान काल भैरव को समर्पित होती है। कालाष्टमी को भैरवाष्टमी के नाम से भी जाना जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, काल भैरव भगवान शिव के पांचवे आवतार है। काल भैरव के दो रूप है- पहला बटुक भैरव जो भक्तों को अभय देने वाले सौम्य रूप में प्रसिद्ध है, तो वहीं काल भैरव अपराधिक प्रवृतियों पर नियंत्रण करने वाले भयंकर दंडनायक है। धार्मिक मान्यता है कि जो भी भगवान भैरव के भक्तों का अहित करता है उसे तीनों लोक में कही भी शरण प्राप्त नहीं होती है।
कालाष्टमी की पूजा का शुभ मुहूर्त-
कृष्ण पक्ष अष्टमी आरंभ- 01 जुलाई 02:01 पी एम
आषाढ़ कृष्ण पक्ष अष्टमी समाप्त – 02 जुलाई 03:28 पी एम
ऐसे करें पूजा- इस दिन सुबह उठकर स्नान करें और साफ कपड़े पहनें। इसेक बाद घर के मंदिर में कालभैरव की मूर्ति की स्थापना करें और चारों तरफ गंगाजल का छिड़काव करें। इसके बाद फूल, अक्षत, पान, इमरती, नारियल आदि चढ़ाएं। मूर्ति के चारों तरफ चौमुखी दीप जलाएं और धूप- दीप करें। फिर भगवान कालभैरव का पाठ करें और आरती के बाद पूजा संपन्न करे। याद रहें इस दिन आप 108 बार काल भैरव के मंत्रों का जाप करें।
काल भैरव का मंत्र:
धर्मध्वजं शङ्कररूपमेकं शरण्यमित्थं भुवनेषु सिद्धम्।
द्विजेन्द्र पूज्यं विमलं त्रिनेत्रं श्री भैरवं तं शरणं प्रपद्ये।।
मान्यताओं के अनुसार, भगवान काल भैरव का वाहन कुत्ता है। इस दिन कुत्ते को रोटी खिलाना बहुत शुभ माना जाता है। इस दिन रात्रि के समय में भगवान कालभैरव को सरसों का तेल, उड़द की दाल से बने पकवान, काला तिल चढ़ाना से आपकी सभी मनोकामानाएं पूर्ण हो जाती है। श्रद्धापूर्वक व्रत रखने से भगवान शिव की विशेष कृपा होती है। इस दिन व्रत रखने से कुंडली में राहु दोष से मुक्ति मिलती है। साथ ही शनि ग्रह के बुरे प्रभाव से भी बचा जा सकता है। कालाष्टमी के दिन भक्तों को भगवान भैरव के बटुक रूप की पूजा करनी चाहिए, क्योंकि वो उनका सौम्य रूप है।