आज कालाष्टमी है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार, हर माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मासिक कालाष्टमी कहा जाता है। कालाष्टमी पर भगवान भोलेनाथ के रौद्र रूप भगवान भैरव की पूजा की जाती है। जिससे भगवान भैरव से असीम शक्ति प्राप्त की जाती है। कालाष्टमी का व्रत करने से व्यक्ति को हर प्रकार के डर से मुक्ति मिलती है। साथ ही भगवान की कृपा से रोग-दोष दूर होते हैं। भगवान काल भैरव अपने भक्तों की संकट से रक्षा करते हैं। मान्यता है कि काल भैरव की पूजा करने से नकारात्मक शक्तियां दूर रहती हैं और तंत्र-मंत्र का असर नहीं होता।
शुभ मुहूर्त
द्विपुष्कर योग सुबह 7 बजकर 13 मिनट से 7 बजकर 48 मिनट तक रहेगा। इसके अलावा रवि योग प्रात: 7 बजकर 13 मिनट से 10 बजकर 55 मिनट तक रहेगा। इसके साथ ही शुभ मुहूर्त दोपहर 12 बजकर 12 मिनट से 12 बजकर 55 मिनट तक रहेगा।
पूजन-विधि
कालाष्टमी के दिन पूजा स्थान को गंगा जल से शुद्ध कर वहां लकड़ी की चौकी पर भगवान शिव और माता पार्वती के साथ कालभैरव की मूर्ति या तस्वीर को रखकर जल चढ़ाएं और पुष्प, चंदन, रोली अर्पित करें। साथ ही नारियल, इमरती, पान, मदिरा, गेरु आदि चीजें अर्पित कर चौमुखा दीपक जलाएं और धूप-दीप कर आरती करें। इसके बाद शिव चालीसा और भैरव चालीसा या बटुक भैरव पंजर कवच का भी पाठ कर सकते हैं। रात्रि के समय काल भैरव की सरसों के तेल, उड़द, दीपक, काले तिल आदि से पूजा-अर्चना करें और रात्रि में जागरण करें।
पौराणिक कथा के अनुसार
एक बार की बात है देवताओं ने ब्रह्म देव और भगवान विष्णु से पूछा कि ब्रह्मांड में सबसे श्रेष्ठ कौन है? यह सवाल सुनने के बाद ब्रह्मा, विष्णु अपने आप को श्रेष्ठ सिद्ध करने की होड़ करने लगे। इसके बाद सभी देवता गण, ब्रह्मा और विष्णु कैलाश पर्वत पहुंचे और वहां पहुंच कर उन्होंने भगवान भोलेनाथ से यही सवाल पूछा कि ब्रह्मांड में सबसे श्रेष्ठ कौन है। यह सवाल सुनते ही भगवान भोलेनाथ के शरीर से एक ज्योति रूप में प्रकाश निकला जो आकाश और पाताल की तरफ बढ़ गया।
भगवान भोलेनाथ ने ब्रह्म देव और भगवान विष्णु से कहा कि जो भी इस ज्योति के अंतिम छोर तक सबसे पहले पहुंचेगा वही इस ब्रह्मांड में सर्वश्रेष्ठ माना जाएगा। भगवान भोलेनाथ की यह बात सुनकर ब्रह्मा, विष्णु अनंत ज्योति के छोर तक पहुंचने के लिए निकल पड़े। कुछ समय बाद दोनों के वापस लौटने पर भोलेनाथ ने पूछा कि आप में से किसे अंतिम छोर प्राप्त हुआ। इसका जवाब देते हुए भगवान विष्णु बोले कि यह ज्योति अनंत है इसका कोई छोर नहीं है। वहीं ब्रह्म देव ने झूठ बोल दिया। उन्होंने कहा कि मैं इस ज्योति के अंतिम छोर तक पहुंच गया था।
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यह बात सुनने के बाद भगवान शिव ने भगवान विष्णु को श्रेष्ठ घोषित कर दिया। इस बात से ब्रह्म देव क्रोधित हो उठे और उन्होंने गुस्से में आकर भगवान शिव को अपशब्द कह दिए। अपने लिए अपशब्द सुनने के बाद भगवान शिव क्रोध में आ गए और उन्होंने काल भैरव की उत्पत्ति की। काल भैरव ने क्रोध में आकर ब्रह्मदेव के 5 5में से एक मुख को धड़ से अलग कर दिया। इस घटना के बाद ब्रह्म देव को अपनी गलती का एहसास हुआ और उन्होंने भगवान शिव से इसके लिए माफी मांगी। वहीं ब्रह्मा का कटा सिर भैरव की बाईं हथेली पर लग गया। भैरव बाबा को यह पाप भुगतने के लिए भिखारी के रूप में ब्रह्म देव की खोपड़ी के साथ नग्न अवस्था में यहां वहां भटकना पड़ा। भटकते हुए वह शिव नगरी वाराणसी पहुंचे, तब जाकर उनके पापों का अंत हुआ। इसी कारण से उन्हें काशी का कोतवाल माना जाता है। उनके दर्शन के बिना कोई काशी वास नहीं कर सकता।