आज मासिक शिवरात्रि है। हिंदू पंचांग के अनुसार, मासिक शिवरात्रि हर महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाई जाती है। इस दिन भक्त भगवान भोलेनाथ और माता पार्वती की पूजा करते है। इस दिन व्रत कर भगवान शंकर को प्रसन्न कर सकते है। मान्यता है कि विधि-विधान से पूजा करने से सारी मनोकामना पूरी होकी है। गृहस्थ जीवन में आने वाली सभी समस्याएं भी दूर होती है। ये व्रत बेहद शुभ और फलदायी माना जाता है। इस दिन भगवान शिव की आराधना करने से महावरदान की प्राप्ति होती है और कष्ट दूर होते है। चलिए आपको बताते है मासिक शिवरात्रि का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और कथा-
मासिक शिवरात्रि का शुभ मुहूर्त-
ब्रह्म मुहूर्त- 03:41 ए एम से 04:23 ए एम तक
अभिजित मुहूर्त- 11:26 ए एम से 12:20 पी एम तक
विजय मुहूर्त- 02:09 पी एम से 03:04 पी एम तक
गोधूलि मुहूर्त- 06:28 पी एम से 06:52 पी एम तक
अमृत काल- 11:12 ए एम से 12:59 पी एम तक
निशिता मुहूर्त- 11:32 पी एम से 12:14 ए एम, जुलाई 09 तक
मासिक शिवरात्रि पर दो शुभ योग- मासिक शिवरात्रि के दिन वृद्धि और ध्रुव योग बन रहे हैं। हिंदू पंचांग के अनुसार, वृद्धि योग शाम 04बजकर 20मिनट तक रहेगा। इसके बाद ध्रुव योग लग जाएगा। ज्योतिष शास्त्र में इन दोनों योगों को बेहद शुभ माना जाता है। मान्यता है कि इन योग में किये गए कार्य सफल होते है। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक़, शिवरात्रि के दिन माता पार्वती और भगवान शिव का विवाह हुआ था। तभी से इस तिथि को मासिक शिवरात्रि मनाई जाती है।
पूजा विधि– श्रद्धालुओं को शिवरात्रि की रात को जाग कर शिव जी की पूजा करनी चाहिए। मासिक शिवरात्रि वाले दिन आप सूर्योदय से पहले उठकर स्नान आदि के बाद किसी मंदिर में जा कर भगवान शिव और पार्वती, गणेश, कार्तिक, नंदी की पूजा करें। पूजा के दौरान शिवलिंग का रुद्राभिषेक जल, शुद्ध घी, दूध, शक़्कर, शहद, दही आदि से करें। शिवलिंग पर बेलपत्र, धतूरा और श्रीफल चढ़ाएं।
अब आप भगवान शिव की धुप, दीप, फल और फूल आदि से पूजा करें। शिव पूजा करते समय आप शिव पुराण, शिव स्तुति, शिव अष्टक, शिव चालीसा और शिव श्लोक का पाठ करें। इसके बाद शाम के समय फल खा सकते हैं लेकिन व्रती को अन्न ग्रहण नहीं करना चाहिए। अगले दिन भगवान शिव की पूजा करें और दान आदि करने के बाद अपना व्रत खोलें।
मासिक शिवरात्रि कथा-
पौराणिक कथा के अनुसार, पूर्व काल में चित्रभानु नामक एक शिकारी जानवरों की हत्या करके अपने परिवार का पालन पोषण करता था। वह एक साहूकार का कर्जदार था। समय पर ऋण न दे पाने के कारण साहूकार ने शिकारी को बंदी बनाकर शिवमठ में डाल दिया। संयोग वश इस दिन शिवरात्रि थी। मठ में हो रही शिवरात्रि व्रत कथा को उसने बहुत ध्यान से सुना। जब शाम को साहूकार ने शिकारी से ऋण के बाबत पूछा तो उसने अगले दिन सारा ऋण देने की बात कही। तो साहूकार ने शिकारी को बंधन मुक्त कर दिया। बंदी होने के कारण शिकारी बहुत भूखा था।
शिकार की तलाश में जब अंधकार हो गया तो उसने रात जंगल में ही बिताने का फैसला किया। वह तालाब के किनारे शिवलिंग के पास एक बेल के पेड़ पर चढ़ कर रात बीतने का इंतजार करने लगा। पड़ाव बनाते समय शिवलिंग पर ढेर सारे बेलपत्र टूटकर शिवलिंग पर गिरते गए। इस प्रकार अनजाने में दिन भर से भूख-प्यास से व्याकुलशिकारी का व्रत भी हो गया और शिवलिंग पर बेलपत्र भी चढ़ गया और उसका रात्रि जागरण भी होता रहा। एक पहर रात्रि बीत जाने पर सबसे पहले एक गर्भिणी हिरणी, उसके बाद ऋतु से निवृत्त हिरणी और फिर अपने बच्चों के साथ हिरणी के निवेदन पर शिकारी ने इन सबका शिकार न करके इन्हें मुक्त कर दिया।
इस प्रकार शिकारी का रात्रि के तीनों पहर का व्रत हो गया. सुबह उसने एक मृग देखा, शिकारी ने इसका शिकार करने का फैसला लिया। इस पर मृग ने कहा हे शिकारी यदि तुम मुझे से पहले तीनों हिरणियों क शिकार किया होता तो मेरा भी शिकार कर लेते. परंतु आपने जैसे उनको जीवन दान दिया है, वैसे मुझे भी जीवनदान देने की कृपा करो। शिकारी ने मृग को भी छोड़ दिया। इस प्रकार सुबह हो गई। उपवास, रात्रि-जागरण तथा शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ने से अनजाने में ही पर शिवरात्रि की पूजा पूर्ण हो गई। इससे शिकारी को मोक्ष की प्राप्ति हुई।