Hindi News

indianarrative

Parivartini Ekadashi 2021: परिवर्तिनी एकादशी आज, इन चीजों के बिना अधूरा हैं व्रत, श्रीकृष्ण द्वारा बताई गई ये कथा जरुर सुनें

courtesy google

आज परिवर्तिनी एकादशी हैं। हिंदू पंचांग के अनुसार, भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को परिवर्तनी एकादशी कहते हैं। इसके अलावा इसे जलझूलनी यानी डोल ग्यारस भी कहा जाता हैं। इसके अलावा, इसे वामन और पद्मा एकादशी भी कहते हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार, इस तिथि को भगवान विष्णु चतुर्मास के शयन के दौरान अपने करवट बदलते हैं। यानी भगवान विष्णु की शयन अवस्था में परिवर्तन होता है। इसलिए इसे परिवर्तिनी एकादशी कहा जाता है। चलिए आपको परिवर्तिनी एकादशी व्रत से जुड़ी जानकारी-

 

परिवर्तनी एकादशी शुभ मुहूर्त-

पुण्य काल- सुबह 06 बजकर 07 मिनट से दोपहर 12 बजकर 15 मिनट तक।

पूजा की कुल अवधि- 06 घंटे 08 मिनट तक रहेगी।

17 सितंबर को सुबह 06 बजकर 07 मिनट से सुबह 08 बजकर 10 मिनट तक महापुण्य काल रहेगा।

इसकी अवधि 02 घंटे 03 मिनट की है।

 

इस सामग्रियों को पूजा में जरुर करें शामिल-

भगवान विष्णु जी की मूर्ति या प्रतिमा, पुष्प, नारियल, सुपारी,

फल, लौंग, धूप, दीप, घी, अक्षत, पंचामृत, भोग, तुलसी दल और चंदन

 

परिवर्तिनी एकादशी की पूजा विधि

प्रातःकाल स्नान करके सूर्य देवता को जल अर्पित करें। इसके बाद पीले वस्त्र धारण करके भगवान विष्णु और गणेश जी की पूजा करें। सबसे पहले घर या मंदिर पर भगवान विष्णु व लक्ष्मीजी की मूर्ति को चौकी पर स्थापित करें। इसके बाद गंगाजल पीकर आत्मा शुद्धि करें। फिर रक्षासूत्र बांधे। इसके बाद शुद्ध घी से दीपक जलाकर शंख और घंटी बजाकर पूजन करें। व्रत करने का संकल्प लें। इसके बाद विधिपूर्वक प्रभु का पूजन करें और दिन भर उपवास करें। सारी रात जागकर भगवान का भजन-कीर्तन करें। सभी को प्रसाद देने के बाद स्वयं भोजन ग्रहण करें।

 

परिवर्तिनी एकादशी व्रत-कथा

हिंदू पंचाग में एकादशी के व्रत का काफी महत्व है। महाभारत में भी श्रीकृष्ण ने अर्जुन को एकादशी के व्रत के महामात्य के बारे में बताते हुए, व्रत की कथा सुनाई थी और साथ ही एकादशी का व्रत रखने को भी कहा था। कथा के अनुसार त्रेतायुग में बलि नाम का असुर था। असुर होने के बावजूद वे धर्म-कर्म में लीन रहता था और लोगों की काफी मदद और सेवा करता था। इस करके वो अपने तप और भक्ति भाव से बलि देवराज इंद्र के बराबर आ गया। जिसे देखकर देवराज इंद्र और अन्य देवता भी घबरा गए। उन्हें लगने लगा कि बलि कहीं स्वर्ग का राजा न बन जाए।

ऐसा होने से रोकने के लिए इंद्र ने भगवान विष्णु की शरण ली और अपनी चिंता उनके सम्मुख रखी। इतना ही नहीं, इंद्र ने भगवान विष्णु से रक्षा की प्रार्थना की। इंद्र की इस समस्या के समाधान के लिए भगवान विष्णु ने वामन रूप धारण किया और राजा बलि के सम्मुख प्रकट हो गए। वामन रूप में भगवान विष्णु ने विराट रूप धारण कर एक पांव से पृथ्वी, दूसरे पांव की एड़ी से स्वर्ग और पंजे से ब्रह्मलोक को नाप लिया। अब भगवान विष्णु के पास तीसरे पांव के लिए कुछ बचा ही नहीं। तब राजा बलि ने तीसरा पैर रखने के लिए अपना सिर आगे कर दिया। भगवान वामन ने तीसरा पैर उनके सिर पर रख दिया। भगवान राजा बलि की इस भावना से बेहद प्रसन्न हुए और उन्हें पाताल लोक का राजा बना दिया।

 

 

Parivartini Ekadashi, Ekadashi fasting, Dol Gyaras, Krishna, Vishnu, Padma Ekadashi, परिवर्तिनी एकादशी, एकादशी का व्रत, डोल ग्यारस, कृष्ण, विष्णु, पद्मा एकादशी