आज ऋषि पंचमी हैं। हरतालिका तीज के दो दिन और गणेश चतुर्थी के एक दिन बाद ऋषि पंचमी मनाई जाती हैं। हिंदू पंचाग में भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी को ऋषि पंचमी पड़ती हैं। हिंदू धर्म में ऋषि पंचमी का विशेष महत्व होती हैं। इस दिन सप्त ऋषियों की पूजा-अर्चना की जाती है। ऋषि पंचमी त्योहार नहीं बल्कि व्रत के रूप में मनाई जाती है। जाने-अनजाने हुई गलतियों और भूल से मुक्ति पाने के लिए लोग ये व्रत जरूर करते हैं। मान्यता है कि इस दिन जो भी व्यक्ति ऋषियों की पूजा-अर्चना और स्मरण करता है उन्हें पापों से मुक्ति मिल जाती है। चलिए आपको बताते हैं कि शुभ मूहूर्त, पूजा और कथा
ऋषि पंचमी शुभ मुहूर्त
ऋषि पंचमी का शुभ मुहूर्त 11 सितंबर सुबह 6 बजकर 7 मिनट से शुरू होकर अगले दिन 12 सितंबर 6 बजकर 7 मिनट पर ही समाप्त होगा।
ऋषि पंचमी के इन सात ऋषियों की होती हैं पूजा
पारंपरिक रूप से ऋषि पंचमी के दिन सप्त ऋषियों की पूजा की जाती है। इन सात ऋषियों के नाम हैं- ऋषि कश्यप, ऋषि अत्रि, ऋषि भारद्वाज, ऋषि विश्वमित्र, ऋषि गौतम, ऋषि जमदग्नि और ऋषि वशिष्ठ। कहते हैं सामज के उत्थान और कल्याण के लिए इन ऋषियों ने अपना सहयोग दिया था। उनके इस महत्वपूर्ण योगदान के प्रति सम्मान जताने के लिए ऋषि पंचमी के दिन व्रत और पूजा-अर्चना की जाती है।
ऋषि पंचमी पर मंत्र
कश्यपोत्रिर्भरद्वाजो विश्वामित्रोय गौतम:।
जमदग्निर्वसिष्ठश्च सप्तैते ऋषय: स्मृता:।।
गृह्णन्त्वर्ध्य मया दत्तं तुष्टा भवत मे सदा।।
ऋषि पंचमी कथा
भविष्यपुराण के अनुसार, एक उत्तक नाम का ब्राह्म्ण अपनी पत्नी सुशीला के साथ रहता था। उसके एक पुत्र और पुत्री थी। दोनों ही विवाह योग्य थे। पुत्री का विवाह उत्तक ब्राह्मण ने सुयोग्य वर के साथ कर दिया, लेकिन कुछ ही दिनों के बाद उसके पति की अकालमृत्यु हो गई। इसके बाद उसकी पुत्री मायके वापस आ गई। एक दिन विधवा पुत्री अकेले सो रही थी, तभी उसकी मां ने देखा की पुत्री के शरीर पर कीड़े उत्पन्न हो रहे हैं। अपनी पुत्री का ऐसा हाल देखकर उत्तक की पत्नी व्यथित हो गई।
वो अपनी पुत्री को पति उत्तक के पास लेकर आई और बेटी की हालत दिखाते हुए बोली कि, 'हे प्राणनाथ, मेरी साध्वी बेटी की ये गति कैसे हुई'? उत्तक ब्राह्मण ने ध्यान लगाने के बाद देखा कि पूर्वजन्म में उनकी पुत्री ब्राह्मण की पुत्री थी, लेकिन राजस्वला (महामारी) के दौरान उसने पूजा के बर्तन छू लिए थे और इस पाप से मुक्ति के लिए ऋषि पंचमी का व्रत भी नहीं किया था। इस वजह से उसे इस जन्म में शरीर पर कीड़े पड़े। फिर पिता के बातए अनुसार पुत्री ने इस जन्म में इन कष्टों से मुक्ति पाने के लिए पंचमी का व्रत किया। इस व्रत को करने से उत्तक की बेटी को अटल सौभाग्य की प्राप्ति हुई।