शनि देव को सभी ग्रहों में खास जगह प्राप्त है। ज्योतिष शास्त्र में शनि को सबसे प्रभावी ग्रह माना जाता है। शनि नवग्रहों के न्यायाधीश है। ये उपाधि उन्हें खुद भगवान शिव ने प्रदान की। दरअसल, शनि देव ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कड़ी तपस्या की थी, तब प्रसन्न होकर शिव ने उन्हें वरदान दिया था कि शनि की दृष्टि से कोई नहीं बच सकता है। फिर चाहे वो मनुष्य हो या देवता… शनि देव व्यक्ति के कर्मों के आधार पर ही उसे अच्छे और बुरे फल प्रदान करते हैं। जरा सी चूक हो जाने पर शनि देव अपना प्रकोप बरसाते है। इसलिए शनि देव की पूजा बेहद ध्यान से करना चाहिए।
शनि देव अपनी महादशा, साढेसाती और ढैय्या के दौरान व्यक्ति को अधिक प्रभावित करते हैं। फिलहाल, मिथुन और तुला राशि पर शनि की ढैय्या और धनु, मकर और कुंभ राशि पर शनि की साढ़ेसाती चल रही है। इसलिए इन राशि वालों को शनि को विशेष रूप से शांत रखने की कोशिश करनी चाहिए। आषाढ़ मास को धार्मिक कार्य और पूजा पाठ के लिए अच्छा माना गया है। इस मास में शनिवार के दिन शनि देव की पूजा करने से शनि की अशुभता कम होती है। पंचांग के अनुसार, शनिवार को आषाढ़ मास की अष्टमी तिथि है। इस दिन शनि देव की पूजा का विशेष संयोग बना हुआ है।
शनि देव के प्रकोप से बचने के लिए इन कामों से रहे दूर-
कमजोर व्यक्ति को कभी न सताएं।
किसी के साथ धोखा न करें।
दूसरे के धन को हड़पने का प्रयास न करें।
नशा नहीं करना चाहिए।
गलत संगत से दूर रहें।
परिश्रम करने वालों का कभी अपमान न करें।