आज शनि प्रदोष व्रत हैं। हिंदू धर्म में प्रदोष व्रत का विशेष महत्व होता है, लेकिन जब प्रदोष व्रत शनिवार को पड़ा जाए तो उसे शनि प्रदोष व्रत कहते हैं। ऐसे में प्रदोष व्रत का महत्व और अधिक बढ़ जाता है। इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती के साथ शनि देव की पूजा की जाती हैं। शनि देव के बारे में कहा जाता है कि जब ये नाराज हो जाते हैं तो व्यक्ति का जीवन संकट, परेशानी और बाधाओं से भर देते हैं। व्यक्ति राजा से रंक बनने की स्थिति में आ जाता है। शनि देव को ज्योतिष शास्त्र में न्याय का देवता माना गया है। यही वजह है कि हर कोई शनि देव को शांत रखना चाहता है। शनिदेव का प्रसन्न करने के लिए ये व्रत जरुर रखें।
शनि प्रदोश व्रत का शुभ मुहूर्त
शनि प्रदोष व्रत की पूजा प्रदोष काल में करना उत्तम होता है। प्रदोष काल सूर्यास्त के 45 मिनट पहले से शुरू होता है। हिंदी पंचांग के अनुसार ,त्रयोदशी तिथि का प्रारंभ 4 सितंबर को सुबह 8 बजकर 24 मिनट पर शुरू होगा. तथा त्रयोदशी तिथि का समापन 5 सितंबर को सुबह 8 बजकर 21 मिनट पर होगा। प्रदोष व्रत पूजा के लिए कुल 2 घंटा 11 मिनट का समय है।
हिंदू पंचांग के अनुसार आज पुष्य नक्षत्र बना हुआ है, जो शाम 05 बजकर 45 मिनट तक रहेगा। पुष्य नक्षत्र को 27 नक्षत्रों में सबसे शुभ माना गया है। पुष्य नक्षत्र में पूजा और शुभ कार्य करने से अत्यंत अच्छे परिणाम प्राप्त होते हैं। पुष्य नक्षत्र को नक्षत्रों का राजा भी बताया गया है। इस बार शनिवार के दिन बनने वाले विशेष संयोगों के कारण शनि देव की पूजा का महत्व बढ़ जाता है। इस दिन शनि देव की आरती और शनि चालीसा का पाठ करना चाहिए। विशेष बात ये है कि इस नक्षत्र का स्वामी शनि देव को ही माना गया है।
इस तरह करें पूजा विधि
प्रदोष व्रत की पूजा के लिए भक्त को प्रदोष काल के पहले स्नान कर लेना चाहिए। उसके बाद पूजा बेदी पर भगवान शिव, माता पार्वती की प्रतिमा स्थापित करें। उसके बाद उनके समक्ष दीपक जलाएं। अब उन्हें फूल, अक्षत, धतूरा, मदार, गन्ना आदि वे सभी चीजें अर्पित करें जो भगवान शिव को प्रिय होती है। इसके साथ है माता पार्वती को 16 श्रृंगार की चीजें अर्पित करें, उन्हें भोग लगाएं। अब धूप दीप जलाकर आरती करें और क्षमा प्रार्थना के साथ हाथ जोड़कर प्रणाम कर पूजा खत्म करें।