Hindi News

indianarrative

Shani Pradosh Vrat: शनि प्रदोष व्रत आज, इस करह करें पूजा भगवान शिव के साथ मिलेगा शनि देव का आशीर्वाद, गरीबी होगी दूर

courtesy google

आज शनि प्रदोष व्रत हैं। हर माह में दो बार प्रदोष व्रत शुक्ल और कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को आता है। इस समय भाद्रपद माह का शुक्ल पक्ष चल रहा है। शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी शनिवार को पड़ रही हैं, इसलिए इसे शनि प्रदोष व्रत कहते हैं। प्रदोष व्रत में भगवान शिव और मां पार्वती की आराधना की जाती है। जबकि शनि प्रदोष व्रत में शिव-पार्वती की पूजा के साथ-साथ शनि देव की भी पूजा का विधान है। ऐसा करने से शनि दोष से मुक्ति मिलती है। ये व्रत भगवान शिव के साथ चंद्रदेव से भी जुड़ा है।

मान्यता है कि प्रदोष का व्रत सबसे पहले चंद्रदेव ने ही किया था। माना जाता है श्राप के कारण चंद्र देव को क्षय रोग हो गया था। तब उन्होंने हर माह में आने वाली त्रयोदशी तिथि पर भगवान शिव को समर्पित प्रदोष व्रत रखना शुरु किया था। जिसके शुभ प्रभाव से चंद्रदेव को क्षय रोग से मुक्ति मिली थी। मान्यता हैं कि इस व्रत को रखने वाले भक्तों के जीवन से दरिद्रता दूर होती है।

 

शनि प्रदोष व्रत का शुभ मुहूर्त

भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि 18 सितंबर दिन शनिवार को सुबह 06 बजकर 54 मिनट पर शुरू हो रही है. इसका समापन अगले दिन 19 सितंबर को सुबह 05 बजकर 59 मिनट पर होगा. व्रत रखने वाले जातकों को शिव जी और माता पार्वती की पूजा के लिए शाम के समय 02 घंटे 21 मिनट का शुभ समय मिलेगा. इस दिन शाम 06 बजकर 23 मिनट से रात 08 बजकर 44 मिनट तक प्रदोष व्रत की पूजा कर सकते हैं।

 

शनि प्रदोष व्रत की पूजा विधि

सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और हाथ में जल लेकर व्रत का संकल्प करें। शिव मंदिर में जाकर शिवलिंग पर अथवा घर पर ही बेलपत्र, अक्षत, दीप, धूप, गंगाजल आदि से भगवान शिव की पूजा करें। शिवजी की कृपा पाने के लिए भगवान शिव के मन्त्र ॐ नमः शिवाय का मन ही मन जप करते रहें। प्रदोष बेला में फिर से भगवान शिव का पंचामृत से अभिषेक करने के बाद गंगाजल मिले हुए शुद्ध जल से भगवान का अभिषेक करें। शिवलिंग पर शमी, बेल पत्र, कनेर, धतूरा, चावल, फूल, धूप, दीप, फल, पान, सुपारी आदि अर्पित करें। इसके बाद शुद्ध घी का दीपक प्रज्वलित करें एवं शिव चालीसा का पाठ करें। तत्पश्चात कपूर प्रज्वलित कर भगवान की आरती कर भूल-चूक की क्षमा मागें।

 

प्रदोष व्रत की कथा

प्राचीन समय में एक नगर में एक सेठ अपने परिवार के साथ निवास करता था। विवाह के काफी समय बाद भी उसे संतान सुख नहीं मिला। इससे सेठ और सेठानी दुखी थे। एक दिन दोनों ने तीर्थ यात्रा पर जाने का फैसला किया। शुभ मुहूर्त में दोनों तीर्थ यात्रा पर निकल पड़े। रास्ते में एक महात्मा मिले। दोनों ने उस महात्मा से आशीष लिया। ध्यान से विरक्त होने के बाद उस साधु ने दोनों की बातें सुनीं। फिर दोनों को शनि प्रदोष व्रत करने का सुझाव दिया। तीर्थ यात्रा से आने के बाद उन दोनों ने विधि विधान से शनि प्रदोष का व्रत किया। भगवान शिव की पूजा की। कुछ समय बाद सेठानी मां बनी और उसने एक बच्चे को जन्म दिया। शनि प्रदोष व्रत के प्रभाव से उन दोनों को संतान की प्राप्ति हुई।