आज शीतला अष्टमी है। हिंदी पंचाग के मुताबिक, चैत्र, वैशाख और ज्येष्ठ माह के अष्टमी को शीतलाष्टमी मनाया जाता है। शीतलाष्टमी को 'बसौड़ा' भी कहा जाता है। पुराणों में मां शीतला का उल्लेख सबसे पहले स्कन्दपुराण में मिलता है। मां रोगों का निवारण करने वाली देवी के रूप में जानी जाती हैं। मां की सवारी गधा है। मां के हाथों में कलश, सूप, झाड़ू और नीम के पत्ते रहते हैं। मां की उपासना गर्मियों में सबसे ज्यादा की जाती है। मां के हाथों में कलश, सूप, झाड़ू और नीम के पत्ते सफाई के सूचक हैं। जानिये कैसे करें पूजा-
पूजा की विधि- प्रातःकाल सभी नित्यकर्म के बाद स्नान करके पूजा का संकल्प लेते हैं। पूजा की थाली में दही, पूआ, पूड़ी, बाजरा, मीठे चावल और गुड़ का भोग लाया जाता है। मां की पूजा में हल्दी, अक्षत्, लोटे में जल और कलावा रखते है। इसके बाद भोग लगाना चाहिए। अष्टमी के दिन बासी पदार्थ ही देवी को नैवेद्य के रूप में समर्पित किया जाता है और भक्तों के बीच प्रसाद के रूप में बांटा जाता है। इस दिन माता शीतला को दही, रबड़ी, मीठे चावल और पुआ का भोग लगाया जाता है। ये सभी सामान सप्तमी की रात में ही बनाकर रख लिया जाता है।
चलिए आपको इसके पीछे की वजह बताने जा रहे हैं कि आखिर क्यों इस दिन बासी खाने का भोग लगाने की परंपरा है। शीतलाष्टमी से एक दिन पहले सप्तमी को घर पर कई चीजें बनाई जाती है। मान्यता है कि शीतला अष्टमी के दिन घर का चूल्हा नहीं जलता है और न ही घर में खाना बनाया जाता है। इसलिए एक दिन पहले ही यानी शीतला सप्तमी पर ही सारा खाना पका लिया जाता है और शीतला अष्टमी के दिन बासी खाना ही खाते हैं। मां की पूजा करने से व्यक्ति के रोगों का नाश हो जाता है। मां की पूजा बच्चों की दीर्घायु और आरोग्य के लिए की जाती है। मां शीतल की उपासना से व्यक्ति के जीवन में खुशहाली आती है।