आज से गणेश चतुर्थी उत्सव शुरु हो चुका हैं, जो 19 सितंबर तक चलेगा। गणेश चतुर्थी को 'कलंक चतुर्थी' भी कहा जाता हैं। हिंदू धर्म के अनुसार, अगर इस दिन चंद्रमा के दर्शन नहीं करना चाहिए, क्योंकि चंद्रमा के दर्शन करने से साल भर में कोई न कोई भद्दा कलंक लगता है। इसलिए इसे कलंक चतुर्थी भी कहते हैं। इसके प्रभाव से खुद भगवान कृष्ण भी नहीं बच पाए थे। इसके पीछे की कहानी हम आपको कथा के जरिए सुनाते हैं।
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एक समय की बात हैं, जब भगवान श्रीकृष्ण पर स्यमन्तक मणि चोरी करने का झूठा कलंक लगा था और वे अपमानित हुए थे। नारद जी ने उनकी ये दुर्दशा देखकर उन्हें बताया कि उन्होंने भाद्रपद शुक्लपक्ष की चतुर्थी को गलती से चंद्र दर्शन किया था, इसलिए वे तिरस्कृत हुए हैं। नारद मुनि ने उन्हें यह भी बताया कि इस दिन चंद्रमा को गणेश जी ने श्राप दिया था। इसलिए जो इस दिन गणेश चतुर्थी के दिन चंद्र दर्शन करता है उसपर साल भर के अदंर कलंक जरुर लगता है। नारद मुनि की सलाह पर श्रीकृष्ण जी ने गणेश चतुर्थी का व्रत किया और दोष मुक्त हुए, इसलिए इस दिन पूजा और व्रत करने से कलंक से मुक्ति मिलती है।
गणेश भगवान सभी देवताओं से पहले पूजे जाते हैं। किसी भी काम को शुरु करने से पहले गणपति बप्पा की पूजा की जाती हैं। कहते हैं जहां भगवान गणेश का वास होता है वहां पर रिद्धि सिद्धि और शुभ लाभ भी विराजते हैं। गणेश पूजा के दौरान कुछ खास बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए। गणपति को दूर्वा अति प्रिय है इसलिए पूजा में उन्हें दूर्वा जरूर चढ़ानी चाहिए। इसके अलावा उन्हें लाल फूल भी अति प्रिय हैं। अगर लाल फूल और मोदक भी बेहद पसंद हैं। पूजा में इन्हें जरुर शामिल करें। गणेश जी की पूजा संपन्न होने पर इस मंत्र का जाप जरुर करें- 'सिन्दूरं शोभनं रक्तं सौभाग्यं सुखवर्धनम। शुभदं कामदं चैव सिन्दूरं प्रतिगृह्यताम॥ ऊँ गं गणपतये नम:।