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सोनपुर मेला : एशिया का सबसे बड़ा पशु मेला कोरोना की भेंट चढ़ा

एशिया का सबसे बड़ा विश्व प्रसिद्व सोनपुर पशु मेला भी इस साल कोरोना की भेंट चढ़ गया। कार्तिक पूर्णिमा के बाद एक महीने तक मनोरंजन कार्यक्रमों और देशी-विदेशी पर्यटकों से गुलजार रहने वाला विश्व प्रसिद्ध हरिहर क्षेत्र मेला परिसर में इस साल वीरानगी छाई हुई है। इस साल यहां न पशुओं की खरीद-बिक्री के लिए पशु व्यापारी पहुंचे, न ही मनोरंजन कार्यक्रम के कद्रदान और कलाकार ही पहुंचे हैं। इससे पहले राजगीर का मलमास मेला और गया का विश्व प्रसिद्ध पितृपक्ष मेला भी कोरोना की भेंट चढ़ चुका है।

इस मेले के प्रारंभ होने का लिखित इतिहास तो कहीं नहीं मिलता। लेकिन स्थानीय बुजुर्गों और जानकारों का कहना है कि यह पहला मौका है, जब मेला नहीं लगा है। ऐतिहासिक और पौराणिक स्थल सोनपुर मेले को लेकर पुस्तक लिख चुके और सोनुपर निवासी वरिष्ठ पत्रकार सुरेंद्र मानपुरी कहते हैं कि इतिहास में यह मेला कभी बंद नहीं हुआ।

उन्होंने कहा कि 50 के दशक में एक मौका आया था, जब लगा था कि मेला बंद हो जाएगा, लेकिन तब भी मेला लगा था। लोगों और दुकानदारों की उपस्थिति कम थी। लोग पहुंचे थे। मेले में रौनक कम थी। यह पहला मौका है जब मेला नहीं लगा है और मेला परिसर वीरान है।

हर साल कार्तिक पूर्णिमा (नवंबर-दिसंबर) के दिन से प्रारंभ होकर एक महीने तक लगने वाला यह मेला एशिया का सबसे बड़ा पशु मेला है। यह मेला भले ही पशु मेला के नाम से विख्यात है। लेकिन कहा जाता है कि इस मेले की खासियत यह है कि यहां सूई से लेकर हाथी तक की खरीदारी आप कर सकते हैं। इससे भी बड़ी बात यह कि मॉल कल्चर के इस दौर में बदलते वक्त के साथ इस मेले के स्वरूप और रंग-ढंग में बदलाव जरूर आया। लेकिन इसकी सार्थकता आज भी बनी हुई है।
<h2>विदेशों से आते थे पशुओं के ग्राहक</h2>
कहा जाता है कि इस मेले में कभी अफगानिस्तान, ईरान, इराक जैसे देशों के लोग पशुओं की खरीदारी करने आया करते थे। चंद्रगुप्त मौर्य ने भी इसी मेले से बैल, घोड़े, हाथी और हथियारों की खरीदारी की थी। 1857 की लड़ाई के लिए बाबू वीर कुंवर सिंह ने भी यहीं से अरबी घोड़े, हाथी और हथियारों का संग्रह किया था। अब भी यह मेला एशिया का सबसे बड़ा पशु मेला है। देश-विदेश के लोग अब भी इसके आकर्षण से बच नहीं पाते हैं और यहां खिंचे चले आते हैं।

अंग्रेजों के जमाने में हथुआ, बेतिया, टेकारी तथा दरभंगा महाराज की तरफ से सोनपुर मेला के अंग्रेजी बाजार में नुमाइशें लगाई जाती थीं। बहुमूल्य सामग्रियों में सोने, चांदी, हीरों और हाथी के दांत की बनी वस्तुएं तथा दुर्लभ पशु-पक्षियों का बाजार लगता था। इस मेले में नौटंकी, पारंपरिक संगीत, नाटक, मैजिक शो, सर्कस जैसी चीजें भी लोगों के मनोरंजन के लिए होती हैं।

इस मेले को लेकर एक पौराणिक कथा भी जुड़ी हुई है। मान्यता है कि भगवान के दो भक्त हाथी (गज) और मगरमच्छ (ग्राह) के रूप में धरती पर उत्पन्न हुए। कोणाहारा घाट पर जब गज पानी पीने आया तो उसे ग्राह ने मुंह में जकड़ लिया और दोनों में युद्ध शुरू हो गया। कई दिनों तक युद्ध चलता रहा। इस बीच गज जब कमजोर पड़ने लगा तो उसने भगवान विष्णु से प्रार्थना की। भगवान विष्णु ने कार्तिक पूर्णिमा के दिन सुदर्शन चक्र चलाकर दोनों के युद्ध को खत्म कराया। इसी स्थान पर दो जानवरों का युद्ध हुआ था, इस कारण यहां पशु की खरीदारी को शुभ माना जाता है। इसी स्थान पर हरि (विष्णु) और हर (शिव) का हरिहर मंदिर भी है, जहां प्रतिदिन सैकड़ों भक्त श्रद्धा से पहुंचते हैं।.