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Chaudhary Ajit Singh: ‘दलबदलू’ और ‘घाट-घाट का पानी’ पी-पी कर जाटलैण्ड की राजनीति को जिंदा रखा चौधरी अजित सिंह ने!

जाट राजनीति का अवसान!

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में चौधरी चरण सिंह की जाट राजनीति के झण्डाबरदार अजित सिंह भी नहीं रहे। जाटों के लिए अपनी विश्सनीयता को दांव पर लगाने का साहस केवल अजित सिंह में ही था। अजित सिंह ने अपनी पार्टी बनाई। अलग-अलग समय पर अलग-अलग सत्ताधारी दलों को समर्थन देकर अजित सिंह जाटों की भलाई के लिए काम करते रहे। हालांकि कहने वाले अजित सिंह को दल बदलू, सत्ता लोलुप और पता नहीं किस-किस विशेषणों से नवाजते रहे। अजित सिंह और उनके परिवार खासतौर पर जयंत को उसका व्यक्तिगत लाभ भी मिला, लेकिन अजित सिंह ने अपनी जाति से ऊपर कभी खुद को नहीं रखा। वो यूपीए के साथ रहे हों या एनडीए के साथ या कभी दोनों के खिलाफ उन्होंने अपने हितों से पहले जाटलैण्ड के हितो को ध्यान में रखा। यही कारण है कि उनका दबदबा कायम रहा।

अजित पहली बार 5 दिसंबर 1989 को तत्कालीन प्रधानमंत्री वीपी सिंह के मंत्रीमण्डल में शामिल हुए थे। उनका यह कार्यकाल लगभग 11 महीने का रहा। इसके बाद फरवरी 1995 तक अजित सिंह सत्ता से बाहर रहे लेकिन दमखम बना रहा। फरवरी 1995 में नरसिंहाराव सरकार फिर कैबिनेट मंत्री बने। इस बार भी लगभग सवा साल सरकार के साथ रहे। ये दो पीरियड अजित सिंह को या यूं कहें कि जाट राजनीति के लिए दो जैकपॉट साबित हुए। इसके बाद जब अटल बिहारी बाजपेई की सरकार बनी तो अजित सिंह एनडीए के साथ चले गए और कृषि मंत्री बन गए।

काफी आगे तक की राजनीतिक परख रखने वाले अजित सिंह ने 24 मई 2003 को एनडीए से नाता तोड़ लिया। लगभग आठ साल तक जाट राजनीति को बिना सत्ता सुख के चालने वाले अजित सिंह एक बार फिर यूपीए के साथ हो लिए और 18 दिसंबर 2011 को मनमोहन सिंह सरकार में उड्डयन मंत्री बन गए। यूपीए के अवसान के साथ तय हो चुका था कि अजित सिंह अब एनडीए के साथ न जाएं, और वो एनडीए के साथ नहीं गए। जयंत को उन्होंने अपना राजनीतिक उत्तराधिकारी घोषित कर दिया, लेकिन जयंत अजित सिंह जैसा करिश्माई नेता नहीं बन सके।

थोड़ा और फ्लैशबैक में जाएं को पता चलता है कि 1987 में चौधरी चरण सिंह का देहांत हुआ तो उनके लोकदल के 84 विधायक थे और उनके ‘मजगर’यानी मुसलमान, जाट, गूजर व राजपूत समीकरण की तूती बोलती थी। अजित सिंह के हाथ में राजनीतिक विरासत आई तो उन्होंने पश्चिमी उप्र में ही बल्कि पूरे देश में अपनी मजबूत पहचान बनाई। 1990 में जब देश में जनता दल की सरकार बनी तो अजित सिंह ने उसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

चौधरी अजित सिंह  बागपत सीट से वह 7 बार सांसद रहे। 1989 में उन्होंने पहली बार लोकसभा चुनाव जीता। वीपी सिंह की सरकार में दिसंबर 1989 से नवंबर 1990 तक इंडस्ट्रीज मिनिस्टर थे। 1991 में एक बार फिर लोकसभा चुनाव जीतकर संसद पहुंचे और पीवी नरसिम्हा राव की कैबिनेट में खाद्य मंत्री बने। 1996 में लोकसभा चुनाव जीते लेकिन 1998 में वह हार गए। इसके बाद उन्होंने अपनी पार्टी राष्ट्रीय लोकदल का गठन किया। 1999, 2004 और 2009 में लोकसभा चुनाव जीतकर फिर संसद पहुंचे। अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में वह कृषि मंत्री रहे जबकि यूपीए सरकार में दिसंबर 2011 से 2014 तक वह नागरिक उड्डयन मंत्री के पद पर रहे। 2014 में बीजेपी के संजीव बालियान ने 6 हजार से कुछ ज्यादा जाट वोट हासिल कर चौधरी अजित सिंह की जाट राजनीति पर विराम लगा दिया।

चौधरी चरण सिंह जिस राजनीति को पश्चिमी उत्तर प्रदेश से लेकर चले थे अजित सिंह ने उसे पूरे देश के फलक तक फैला दिया। अजित सिंह ने एक 1989 में मुलायम सिंह के लिए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पद को ठोकर मार दी थी। कुछ लोग कहते हैं कि ये उनकी बहुत बड़ी भूल थी। वीपी सिंह ने अजित सिंह को यूपी का चीफ मिनिस्टर घोषित कर दिया था। चौधरी चरण सिंह, मुलायम सिंह को अपना मानस पुत्र कहते थे। बस इसीलिए अजित सिंह ने चीफ मिनिस्टर की कुर्सी पर लात मार दी।

चौधरी अजित सिंह के साथ जाट राजनीति में जो अभाव पैदा हुआ है, वो पता नहीं कभी भरेगा भी या नहीं!