कोरोना पर विजय हासिल करने की योजना में मंत्रियों से ज्यादा अफसरों पर निर्भर रहने वाले पीएम मोदी के साथ बड़ा धोखा हो गया है। अफसरों ने पीएम मोदी को ईमानदार फीडबैक नहीं दिया गया। मतलब यह है कि अपनी पीठ थपथपाने के लिए कुछ अफसरों ने कोरोना की सही तस्बीर सामने नहीं ऱखी जिसका खामियाजा पूरे देश को उठाना पड़ रहा है। पीएम मोदी को अफसरों के इस धोखे से नाराज और दुखी दोनों हैं।
ऐसा कहा जा रहा है कि पीएम मोदी को नृपेंद्र मिश्रा और पीके सिन्हा की कमी महसूस हो रही है। पीएम मोदी की टीम में जब तक ये दोनों अफसर थे तब शायद ही ऐसा हुआ हो कि पीएम मोदी को सही फीडबैक या जानकारी न दी गई हो। हर परिस्थिति में मोदी को सही जानकारी दी गई। जिसका परिणाम था कि पहले कार्यकाल पीएम मोदी का सक्सेस रेट 90 परसेंट के आस-पास था। मोदी के दूसरे कार्यकाल में पहले नृपेंद्र मिश्रा ने अवकाश लिया और उसके बाद पीके सिन्हा भी अलग हो गए।
कहा तो यह भी जा रहा है कि बंगाल के बारे में पीएम मोदी के पास जो सूचनाएं भेजी गईं वो भी जमीनी असलीयत से कोसों दूर साबित हुई। नतीजा सामने है। बंगाल में 2004 की तरह बीजेपी 'फील गुड' का शिकार हो गई। गलत फीडबैक के कारण पीएम ने बंगाल के लिए जो रणनीति बनाई वो बेइंताह मेहनत के बाद भी नाकाम हो गई। बंगाल की हार ने केवल बीजेपी को नहीं बल्कि पीएम मोदी को झटका दिया है। कोरोना की दूसरी लहर और बंगाल दोनों मोर्चों पर पराजित पीएम मोदी अपनी टीम में बड़ा बदलाव कर सकते हैं- ऐसा माना जा रहा है।
इसी तरह कोरोना को लेकर जो फीडबैक दिए गए उनसे भी पीएम मोदी की रणनीति को झटका लगा है। पीएम मोदी ने कोरोना नियंत्रण में खामी को पकड़ लिया और अंतिम मीटिंग में उन अफसरों को खूब लताडा जो गलत फीडबैक दे रहे थे। इसके बाद पीएम मोदी ने कैबिनेट के मंत्रियों को जिम्मेदारी दी है कि वो कोरोना नियंत्रण पर निगाह रखें और लगातार फीडबैक लेते रहें। सूत्रों से जानकारी मिली है कि पीएमओ ने ऐसे अफसरों की खोज शुरू कर दी है जो नृपेंद्र मिश्रा और पीके सिन्हा से भी बेहतर विकल्प साबित हों सकें।