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Corona-Oxygen Crisis: टोपीबाज केजरीवाल सरकार! और कोरोना के कहर से दम तोड़ती दिल्ली

'Topibaj' Chief Minister Arvind Kejriwal?

दिल्ली देश की राजधानी है। पूरी दुनिया की निगाह दिल्ली पर रहती हैं। दिल्ली में होने वाली घटना के आधार पर विदेशी नेता और मीडिया भारत के बारे में अपनी राय बनाते हैं। विदेशी मीडिया में भारत के बारे में सुर्खियां बनती हैं तो दिल्ली पहले लिखा होता है। इसका एक कारण यह भी है कि विदेशी मीडिया की दिल्ली में एक्सेस ज्यादा है। बस इसी बात का फायदा उठाकर केजरीवाल जैसे लोग पूरे भारत को बदनाम करने में लगे हुए हैं।

ऐसा लग रहा है कि केजरीवाल और कांग्रेस तक पूरा विपक्ष पिछले सात सालों में जो नहीं कर पाया वो इस बार के कोरोना ने कर दिया। केजरीवाल ने लालची मीडिया (माफ कीजिए, विज्ञापन की आड़ में दिल्ली सरकार की खामियों मीडिया के एक बड़े वर्ग ने न दिखाया और न छापा। एडिटर्स गिल्ड, पता नहीं कौन सी गुफा में सोया हुआ है) ने दिल्ली सरकार के कालाबाजारी मंत्रियों और विधायकों के बारे में खबर दिखाए जाने की औपचारिकता भर पूरी की। इतने संवेदनशील मामले में जहां हाईकोर्ट-सुप्रीमकोर्ट स्वतः संज्ञान ले रहा है वहां खुदमुख्तार मीडिया केंद्र सरकार के पीछे लाठी लेकर पीछे पड़ा है लेकिन दिल्ली सरकार और केजरीवाल का नाकारापन कहीं दिखाई नहीं दे रहा।

क्या किसी चैनल या अखबार ने अभी तक यह देखने और पता करने की कोशिश की दिल्ली सरकार का एक मंत्री ही ऑक्सीजन सिलेंडरों की कालाबाजारी में शामिल है या केजरीवाल के कुछ और लाड़ले मंत्री और विधायक ऑक्सीजन सिलेंडरों और रेमडेसिविर की कालाबाजारी में शामिल हैं या नहीं। ट्वीटर और यू-ट्यूब पर सोकॉल्ड बड़े-बड़े पत्रकार और सम्पादक-पूर्व सम्पादकों की कलम और कैमरा को लकवा मार गया है। किसी में साहस है जो केजरीवाल से पूछ सके कि पहले ऑक्सीजन की और अब वैक्सीन की कमी दिल्ली में एकदम कहां से आ गई। दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल, उपमुख्यमंत्री सिसोदिया और स्वास्थ्यमंत्री केवल केंद्र सरकार के खिलाफ रणनीति बनाने में ही मशगूल रहे या उन्होंने दिल्ली की पब्लिक के स्वास्थ्य के बारे में भी कुछ सोच-विचार किया?  मीडया के किसी वर्ग ने केजरीवाल, सिसोदिया और उनके कैबिनेट के मंत्रियों की हेल्थ और चेहरे-मोहरे के बारे में भी चर्चा करने की कोशिश की है क्या? पहली बार शपथ ग्रहण के समय के फोटो से आजकल के इनलोगों के फोटो वीडियोज का मिलान करो इन्हें पहचानना मुश्किल हो जाता है। इनके ‘गाल’ मोटे पड़ गए हैं। जनता के हिस्से का सारा माल दबा कर खा रहे हैं?  जिस प्रदेश में कोरोना से जनता का इतना बुरा हाल हो उनके मुख्यमंत्री-उप मुख्यमंत्री के गाल रसगुल्ले की तरह फूल रहे हैं?

खैर छोड़िए, अरविंद केजरीवाल नौ मई की दोपहर 12 बजे एक बार फिर टीवी चैनलों पर नमूदार हुए। इस बार भी वो डाइरेक्टली-इनडाइरेक्टली केंद्र सरकार को दोष देने से बाज नहीं आए। बोले कोरोना कर्फ्यू (लॉकडाउन) बढ़ाना मजबूरी है। दिल्ली सरकार के पास वैक्सीन नहीं है। हम वैक्सीन नहीं लगा पा रहे। कभी किसी ने जानने की कोशिश की है कि केंद्र से दिल्ली को राजस्व का कितना बड़ा हिस्सा मिलता है। अरविदं केजरीवाल ने कभी यह नहीं बताया कि दिल्ली की जनसंख्या कितनी है, और उस जनसंख्या की तुलना में कितने संसाधन अभी तक मिले हैं? क्या जनसंख्या के अनुरूप जितने संसाधन केजरीवाल को मिल चुके हैं, क्या उतने ही बाकी राज्यों को भी मिले हैं?

कोरोना खत्म नहीं हुआ है, दूसरी लहर आने की आशँका पहले से थी तो फिर केजरीवाल ने ऑक्सीजन प्लांट्स को शुरू करने के बजाए बंद क्यों करवा दिए? ‘सबसे आगे’रहने वाले चैनल लेकर सबसे विश्वसनीय खबर देने वाले चैनलों तक किसी ने दिल्ली सरकार के फैसलों और ऑक्सीजन प्लांट्स पर अभियान चलाया? दिल्ली को दी गई वैक्सीन में से कितने फीसदी वैक्सीन बर्बाद हुई, क्यों बर्वाद हुई, किसी ने जानने की जरूरत की नहीं की!

लोगों की खुद की लापरवाही ही नहीं बल्कि दिल्ली सरकार में बैठे लालची और भ्रष्टाचारियों की वजह से कोरोना ने विकराल रूप धारण कर लिया। दिल्ली हाई कोर्ट ने दिल्ली के भ्रष्ट ऑक्सीजन डीलरों के नाम उजागर किए थे। ऑक्सीजन प्लांट्स को सरकारी नियंत्रण में लेने के निर्देश दिए थे, कितने ऑक्सीजन प्लांट्स को दिल्ली सरकार ने अपने कब्जे में लिया? उस डीलर का क्या हुआ जिसने प्लांट में ऑक्सीजन होने के बावजूद एक अस्पताल को ऑक्सीजन नहीं दी और कुछ सीरियस मरीजों की मौत ऑक्सीजन के अभाव में हो गई?

ऐसा लग रहा है कि सारे रिपोर्टर्स और संपादक, एडिटर गिल्ड, एनबीए सबके सब अरविंद केजरीवाल की कांव-कांव से मंत्रमुग्ध हैं। उन्हें दिल्ली पर बरपा हो रहे कोरोना के कोहराम के पीछे केजरीवाल सरकार का कोई कसूर दिखाई नहीं दे रहा है? स्पेशलिस्ट बोल रहे हैं कि ऑक्सीजन सप्लाई कंट्रोल और प्रॉपर डिस्ट्रीब्यूशन नहीं हुआ, लेकिन किसी को यह दिखाई नहीं दिया कि इसके दोषी कौन है? वही हाल अब वैक्सीन का है?

(ये लेखक के अपने विचार हैं)