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Farmers Protest 2020: ये है 'काले' कृषि कानूनों के पीछे का सच- पढ़ो और जानो!

Farmers Protest 2020: ये है 'काले' कृषि कानूनों के पीछे का सच- पढ़ो और जानो!

कषि कानूनों को लेकर हंगामा बरपा हुआ है। दिल्ली के बॉर्डर्स पर घेराव है। कतिपय एग्रो इकोनॉमिस्ट को छोड़कर अधिकांश का कहना कि संशोधित कृषि कानून छोटे किसानों (Farmers) को फसल की उचित कीमत वसूलने का अधिकार देते हैं और <a href="https://hindi.indianarrative.com/krishi/farmer-movement-farmers-across-the-country-should-not-fall-prey-to-exploitation-like-bihar-19570.html"><strong><span style="color: #000080;">कृषि बाजार</span></strong></a> व्यवस्था को मजबूत बनाते हैं। लोगों में भ्रम फैला दिया गया है कि कृषि कानून से किसान की जमीन छीन ली जाएगी। एमएसपी खत्म कर दी जाएगी और मंडी समितियां खत्म कर दी जाएंगी। जब कि सच्चाई यह है कि एसएसपी का फायदा केवल 6 से 7 फीसदी किसान (Farmers) ही उठाते हैं। 93 फीसदी किसान (Farmers) खुले बाजार में फसलों को बेचते हैं। कोविड काल में मंडियां बंद थीं। फिर भी सरकारी एजेंसियों ने किसान (Farmers) से सबसे ज्यादा खरीद की। सरकार की ओर से प्रधानमंत्री, कृषिमंत्री चुके हैं कि न किसान (Farmers) की <a href="https://en.wikipedia.org/wiki/Minimum_support_price_(India)"><strong><span style="color: #000080;">एमएसपी</span> </strong></a>खत्म होगी और मंडी समितियां ही बंद की जाएंगी। कांट्रेक्ट फार्मिंग एक वैकल्पिक व्यवस्था है। जो किसान (Farmers) के मालिकाना हक को प्रभावित नहीं करती है। इस व्यवस्था में किसान किसान (Farmers) को फसल की कीमत पहले ही तय हो जाती है और कुल अनुमानित कीमत का कुछ पैसा फसल बोने से पहले ही मिल जाता है। किसान किसान (Farmers) को अपनी फसल बाजार में लेजाने या खरीददार के पास पहुंचाने की भी जरूरत नहीं रहती। खरीददार खेत पर पहुंचकर ही फसल उठा लेता है। नए कानूनों से किसान किसान (Farmers) को मंडी समितियों में तोल, तुलाई, सेम्पल और टैक्स-भाड़ा के नाम पर होने वाले आर्थिक शोषण से भी मुक्ति मिल जाती है।

इन कानूनों से और क्या-क्या फायदें हैं, इसकी क्रमवार जानकारी दे रहे हैं  <strong>भारतीय किसान मोर्चा के  उपाध्यक्ष नरेश सिरोही</strong>-

1- भारत सरकार द्वारा बनाए गए वर्तमान में तीनों कानून देश के किसानों हित देश की 138 करोड़ आबादी को प्रभावित करने वाले हैं।

2- देश की आजादी के बाद कृषि क्षेत्र में किसानों की बुवाई क्षेत्र का विस्तार , सिंचाई के संसाधनों में वृद्धि और भूमि सुधार कानूनों में बदलाओ एवं हरित क्रांति सहित कई दौर के सुधार हुए हैं। जिससे किसानों के सामाजिक परिस्थितियों में बड़ा बदलाव किया है।

3- वैश्विक स्तर पर नब्बे के दशक में कृषि क्षेत्र में हुए बदलाव के बाद, वर्तमान में बनाए गए तीनों क़ानूनों को कृषि क्षेत्र में सुधारों की बड़ी पहल माना जाना चाहिए।

4- इन कानूनों से केवल किसान ही नहीं , उपभोक्ता सहित कृषि का व्यापार करने वाले बड़े कॉरपोरेट ,खाद्य प्रसंस्करण में लगी इंडस्ट्री ,थोक विक्रेता, सामान्य खुदरा विक्रेता सहित सभी लोग प्रभावित होंगे।

5-ये तीनों कानून देश में उत्पादित लगभग 30 करोड़ टन खाद्यान्न, लगभग 32 करोड़ टन फल सब्जी , लगभग 19 करोड़ टन दूध सहित लगभग एक अरब टन से ऊपर कृषि उत्पादों के बाजार वाली कृषि क्षेत्र से जुड़ी अर्थव्यवस्था ही नहीं, समस्त 12 हजार अरब रुपए की खुदरा बाजार की अर्थव्यवस्था को प्रभावित करने वाले हैं।

6- इसलिए इन कानूनों से सबसे ज्यादा प्रभावित होने वाला वर्ग किसान और इस देश का उपभोक्ता है । इसलिए हमें दोनों के हितों को सर्वोपरि रखकर इन कानूनों के विषय में विस्तृत और तथ्यात्मक विश्लेषण करना जरूरी है।

6 वास्तविकता यह है कि ये तीनों कानून राज्य सरकारों द्वारा कृषि क्षेत्र के व्यापार में पैदा की गई तमाम तरह की विसंगतियों को दूर करेंगे और कृषि व्यापार के लिए एक सरल और सुदृढ़ मार्ग प्रशस्त करेंगे । अब कोई भी व्यापारी किसी भी प्रदेश में बिना रोक टोक , बिना किसी भी तरह के टैक्स दिये किसानों से कृषि उत्पादों की सीधे खरीदारी कर सकेंगे तथा आवश्यक वस्तु अधिनियम द्वारा जो जमाखोरी के खिलाफ था , उसके समाप्त होने के बाद व्यापारी अपने गोदामों में जितना चाहे कृषि उत्पादों का भंडारण भी कर सकेंगे। तथा अब व्यापारी कांटेक्ट फार्मिंग कानून के माध्यम से वैश्विक स्तर पर जो माल चाहिए, उसी के आधार पर किसानों से सीधे कांटेक्ट करके मनचाही पैदावार करा सकेंगे।
संभावित सुधार आपेक्षित है:–

किसानों की एपीएमसी मंडियां बंद होने की आशंका निर्मूल नहीं है। वर्तमान मंडियों में फसलों की खरीद पर अलग-अलग राज्यों में छ प्रतिशत से लेकर साढे़ आठ प्रतिशत तक टैक्स लगाया जा रहा है। परंतु नई व्यवस्था में मंडियों के बाहर कोई टैक्स नहीं लगेगा , इससे मंडियों के अंदर और बाहर कृषि व्यापार में विसंगति पैदा होंगी । जिसके कारण इस तरह की परिस्थितियां निर्माण होगी कि मंडियां बिना कानून के स्वत: ही बंद होती चली जाएंगी । एक तरफ सरकार संपूर्ण देश में एक देश -एक टैक्स व्यवस्था को लागू करने के लिए जीएसटी जैसा मजबूत कानून लेकर आती है तो दूसरी ओर कृषि उत्पादों के व्यापार में विसंगतियां पैदा होने के खतरे को पैदा कर रही है। इसलिए कृषि व्यापार में स्वस्थ प्रतिस्पर्धा पैदा करने के लिए मंडियों के अंदर और बाहर एक समान टैक्स व्यवस्था तथा मंडियों के अंदर व्याप्त विसंगतियों को दूर कर उन्हें सुदृढ़ करने के लिए अपेक्षित उपाय किए जाने चाहिए।

•  किसान यह भी चाहते हैं कि मंडियों के बाहर कृषि का कारोबार करने वाले किसी भी व्यक्ति का केवल पैन कार्ड ही नहीं उसका पंजीकरण भी अवश्य होना चाहिए।

•  यह भी सर्वविदित है कि आज देश का किसान घाटे की खेती कर रहा है इसलिए किसानों की मांग है कि निजी क्षेत्र द्वारा भी कम से कम एमएसपी पर खरीद की वैधानिक गारंटी चाहते हैं , एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य )से नीचे फसलों की खरीद कानूनी रूप से वर्जित हो।

•  किसानों और व्यापारी के बीच में विवाद निस्तारण के लिए एसडीएम कोर्ट की स्थान पर कृषि न्यायालय बनाए जाने चाहिए ।

•  कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग में भी एमएसपी से नीचे किसी भी समझौते को मानता नहीं मिलनी चाहिए । एमएसपी ( न्यूनतम समर्थन मूल्य )के दायरे में आई हुई फसलों के अलावा , बाकी फल सब्जियों सहित अन्य फसलों के लिए भी C2 प्लस 50% फार्मूले के तहत बाकी फसलों की लागत का भी आकलन व्यवस्था होनी चाहिए।

•  आवश्यक वस्तु अधिनियम में संशोधन करते हुए सरकार में अनाज ,खाद्य तेल, तिलहन, दलहन, आलू और प्याज सहित सभी खाद्य पदार्थों को अब नियंत्रण मुक्त किया है । कुछ विशेष परिस्थितियों के अलावा अब स्टॉक की सीमा समाप्त हो गई है। लेकिन उपभोक्ताओं के हितों को ध्यान में रखते हुए सरकार ने परिस्थितियों के हिसाब से कुछ नियंत्रण अपने पास रखें हैं। लेकिन इसमे और पारदर्शिता लाने के हिसाब से एक केंद्रीय स्तर पर एक पोर्टल बनाने की आवश्यकता है जिसमें व्यापारी द्वारा खरीद और गोदामों में रखे गए और गोदामों से निकाले गए खाद्य पदार्थों का का विवरण दिन प्रतिदिन अपडेट होता रहे।.