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जमीअत उलेमा हिंद के मौलाना अरशद मदनी के तालिबानी बोल, Co-Education से बिगड़ जाती हैं गैर मुस्लिम लड़कियां!

मौलाना अरशद मदनी के तालिबानी सुर!

अफगानिस्तान में तालिबान के काबिज होते ही भारत में भी तालिबानी स्वर मुखर होने लगे हैं। समान मानवाधिकार और समान स्त्री अधिकारों के पैरोकार भारत में अब ऐसे लोगों की जुबान खुलने लगी है जो खुद तो निरंकुश रहना चाहते हैं मगर दूसरों शरिया लागू करना चाहते हैं। ऐसा ही एक अनावश्यक और गंदा बयान जमीयत उलेमा हिंद के चीफ मौलाना अरशद मदनी ने दिया है। मदनी ने कहा है कि गैर मुस्लिमों को अपनी लड़कियों को को-एजूकेशन नहीं देनी चाहिए। मदनी का कहना है कि को-एजूकेशन से लड़कियां अनैतिकता की चपेट में आ जाती हैं। मदनी ने तथाकथित धर्मनिरपेक्ष सियासी दलों को भी उकसाया है। उन्होंने कहा है कि ऐसे दल खुलकर सामने आएं और मॉब लिंचिंग के खिलाफ कानून बनाने की मांग करें।

तालिबानी स्वरों में मदनी ने कहा कि अनैतिकता और अश्लीलता किसी भी धर्म की शिक्षा नहीं है। इनकी हर धर्म में निंदा की गई है क्योंकि इनसे समाज में कदाचार फैलता है। अरशद मदनी ने एक बयान में कहा कि, ‘मैं अपने गैर-मुस्लिम भाइयों से कहना चाहूंगा कि वे बेटियों को सह-शिक्षा देने से परहेज करें ताकि वो अनैतिकता से दूर रहें। उनके लिए अलग शिक्षण संस्थान स्थापित किए जाएं।‘  शारीरिक ही नहीं बल्कि मानसिक रूप से बूढ़े हो चुके अरशद मदनी को सलाह है कि अब वो तस्बीह लेकर अल्लाह-अल्लाह करें, बाकी सरकार और सामाजिक संगठनों पर छोड़ दें।

देश के विकास और सांप्रदायिक सौहार्द्र के बावजूद मदनी को देश में अराजकता दिखाई दे रही है। वो भी सिर्फ अल्पसंख्यक के खिलाफ। मदनी संभवतः मुसलमान को ही अल्पसंख्यक मानते हैं। अपने दिमाग में उपजे फितूर को मदनी पूरे देश की समस्या मान बैठे हैं। इसलिए कह रहे हैं कि देश में वैचारिक मतभेद बढ़ रहा है। अल्पसंख्यक होंगे तो विकास भी पूरी तरह से ठप हो जाएगा। मदनी शायद भूल गए हैं या उम्र ज्यादा होने की वजह से उनकी याददाश्त कम हो गई है। भारत के रक्षा प्रतिष्ठानों से लेकर सिविल एडमिनिस्ट्रेशन तक मेरिट के आधार पर अधिकारियों की नियुक्तियां होती है। देश के ढांचे को सांप्रदायिकता से मुक्त रखने के लिए संविधान में विशेष प्रावधान किए गए हैं। भारत ही एक ऐसा देश है जहां मुसलमानों की शिक्षा के लिए स्पेशल यूनिवर्सिटीज कॉलेज और स्कूल हैं। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड है।

दरअसल, दुनिया की बदलती हवा में अरशद मदनी भारत को बदनाम करने की अनावश्यक चेष्टा कर रहे हैं। मदनी को को-एजूकेशन पसंद नहीं है तो उन्हें वहां की नागरिकता ले लेनी चाहिए जहां को-एजूकेशन नहीं है। मदनी जैसे दूषित विचारों से देश के वातावरण को गंदा करने की इजाजत नहीं देनी चाहिए। यह ठीक है कि भारत में अभिव्यक्ति की आजादी है लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि जिसके दिमाग में जैसे विचार आएं उन्हें वैसे समाज के सामने रख दे। मदनी के तालिबानी स्वरों पर अंकुश लगाने की जरूरत है। अरशद मदनी के विचारों से गैर मुस्लिमों की आड़ में मुस्लिम लड़कियों और महिलाओं की आजादी पर रोक लगाने की मंशा जाहिर होती है। भारत सरकार बड़ी मुश्किल से तीन तलाक की कुप्रथा से मुक्ति दिला पाई है। ऐसा न हो कि अरशद मदनी जैसे संकीर्ण विचार समाज में फिर से पनपने लगें, इसलिए ऐसे विचारों समय रहते ही खत्म कर देना जरूरी है। अरशद मदनी का मानसिक स्वास्थ्य थोड़ा भी ठीक हो तो समझ लें तालिबान अफगानिस्तान में आया है। अरशद मदनी, अरशद मदनी ही रहें। इस देश ने उन्हें जो सम्मान दे रखा है उसे संभाल कर रखें। तालिबान पसंद जमीयत-उलेमा-ए-पाकिस्तान के मौलान फजल-उर-रहमान न बनें। एक बात और, अरशद मदनी पाकिस्तान के पीएम इमरान खान की तरह मुंगेरी लाल के सपने देखने बंद कर दें। जिस्मानी और दीमागी तौर पर बुजुर्ग हो चुके मौलाना अरशद मदनी को सलाह है कि दुनियादारी छोड़ें और तस्बीह लेकर अल्लाह-अल्लाह करें।