बांग्लादेश की आजादी के लिए सर्वस्व लुटाने वाले शहीदों की शान में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कलम से लिखे दो शब्द बांग्लादेश की मीडिया की सुर्खियां बने हुए हैं। बांग्लादेश की मीडिया ने लिखा है कि यूं तो राष्ट्रीय शहीद स्मारक कई देशों के राष्ट्राध्यक्ष आए और उन्होंने शहीदों को सलाम किया, लेकिन भारतीय प्रधान मंत्री मोदी ने जो लिखा उसने बांग्लादेशियों के दिल को छू लिया।
पचास साल पहले दरिंदे अत्याचारी और निरंकुश पाकिस्तानियों ने लाखों बांग्लादेशियों को मौत के घाट उतार दिया था। बांग्लादेश में आजादी के दीवाने अपनी जानों की परवाह किये बिना पाकिस्तानियों के खिलाफ आवाज बुलंद कर रहे थे। बांग्लादेशी बहन-बेटियों के साथ बलात्कार और हत्या जैसी असंख्य जघन्य वारदात हुई। मासूम बांग्लादेशियों को पाकिस्तानी पिशाचों से मुक्ति दिलाने के लिए मुक्ति वाहनी के योद्धाओं ने जम कर लोहा लिया। अंत में भारतीय सेना को बांग्लादेशियों के साथ आना पड़ा और पाकिस्तानी नर पिशाचों से बांग्लादेश को मुक्ति मिली।
उन्हीं असंख्य शहीदों की याद में सावर में शहीद स्मारक बनाया गया है। यहां आने के बाद हर कोई राष्ट्राध्यक्ष कुछ न कुछ लिखता है। बांग्लादेश की आजादी की 50वीं सालगिरह पर जब भारतीय प्रधानमंत्री मोदी यहां पहुंचे और अतिथि पंजिका (विजिटर बुक) में स्लैन बट नॉट साइलेंस्ड (Slain But Not Silennced)। मतलब यह कि अपने हक और आजादी के लिए शहीद कर दिए गए मगर चुप नहीं बैठे। भारतीय प्रधानमंत्री मोदी की ये लाइनें फैज अहमद फैज की उन लाइनों से मेल खाती हैं जिसमें उन्होंने अपने हक के लिए बलिदान का आह्वान किया है- ‘कटते भी चलो, बढ़ते भी चलो, बाज़ू भी बहुत हैं सर भी बहुत, चलते भी चलो कि अब डेरे मंज़िल ही पे डाले जाएँगे।‘ बांग्लादेशी बहादुरों ने इस बात को साबित भी कर दिखाया। और पाकिस्तानी पिशाचों से अपनी मातृ भूमि को आजाद करवाया।