अफगानिस्तान ने पूरी दुनिया का ध्यान फिर से अपनी ओर खींचा है। अफगानिस्ता ने हर दिन कुछ न कुछ घट रहा है। ये घटनाएं इतनी तेजी से घट रही हैं कि उन्हें फॉलो कर पाना मुश्किल हो रहा है। जब तक ये लेख छपेगा तब तक अफगानिस्तान में कई और दिलचस्प घटनाएं हो रही होगीं। तालिबान के कब्जे में आने के बाद अफगानिस्तान में घटनाक्रम तेजी से बदल रहे हैं। काबुल पर तालिबान के कब्जे का प्रारंभिक विश्लेषण जरूरी लगता है कि आखिर चूक कहां हुई।
ये बात साफ हो चुकी है कि अफगान-तालिबान के पूरे घटाक्रम के दौरान सुपर पावर अमेरिका बेनकाब हुआ है। जिस तरह से पिछले 20 साल से अमेरिकी सेना अफगानिस्तान में थी और स्थिति को भांपने में नाकाम रही वो पूरे दुनिया के लिए निराशाजनक है। अमेरिकी सेना का अफगानिस्ता छोड़कर जाना अफगान नागरिकों के साथ दुनिया के और भी देशों के लोगों को खल रही है। ऐसे समय में जब तालिबान लगातार हमले कर रहा है अफगानिस्तान की कमजोर सेना को अमेरिका और नाटो सेना की जरुरत थी।
अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए ने भी कम निराश नहीं किया है। नागरिकों को निकालने के लिए उनके पास न कोई प्लान दिखा न कोई योजना। हालांकि अमेरिका चिल्ला रहा था कि वह 31 अगस्त से पहले सैनिकों को वापस ले लेगा। चीजों को ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में रखने के लिए, स्कॉट्समैन सर अलेक्जेंडर बर्न्स के बारे में उल्लेख करना उचित हो सकता है, जो एक जासूस सह राजनयिक बने और 1839 की शुरुआत में देशी दोस्तों को जासूसी करने और अफगानिस्तान में गतिविधियों के बारे में ब्रिटिश साम्राज्य को रिपोर्ट करते रहे। यह दुख की बात है कि 1841 में उनकी हत्या कर दी गई थी, वे जानकारी जुटाने एक सक्षम व्यक्ति थे। अगर कम तकनीक होते हुए भी वो ऐसा कर सकते थे तो आज के दौर जब टेक्नोलॉजी इतना एडवांस हो गया है तब सीआईए के पास जानकारी क्यों नहीं थी? अमेरिका को अपने खुफिया इकाईयों से इस बारे में सवाल करना चाहिए। सीआईए से पूछना चाहिए की हमें अफगानिस्तान की सही स्थिति से अवगत क्यों नहीं कराया गया। वरना तालिबान के सत्ता में आने के बाद अमेरिका ने जो अराजक दृश्य अफगानिस्ता में छोड़ है वो पूरी दुनिया ने देखा। बाइडेन के नेतृत्व और अधिक विशेष रूप से, पेंटागन और सीआईए को इसका जवाब देना होगा।
तालिबान को फिर जगाने में पाकिस्तान का बड़ा हाथ है। पाकिस्तान पहला देश है जिसने अफगान मसले पर अमेरिका को दरकिनार करना शुरू किया। इसका सीधा संबध चीन का पाकिस्तान पर बढ़ते दबदबे से है। चीन पूरी तरह से पाकिस्तान का कंट्रोल कर रहा है। यह अमेरिका विरोधी और खुले तौर पर तालिबान समर्थक बयानबाजी में अधिक मुखर है। चीन, रूस और ईरान के साथ लगातार बढ़ती निकटता के अलावा, अमेरिका ने पाकिस्तान के रुप में एक लंबे समय से सहयोगी खो दिया है क्योंकि तालिबान के प्रभुत्व के बाद विश्वास की कमी अब पूरी हो गई है। तालिबान को चीन के खुले समर्थन और इसके अस्तित्व की 'मान्यता' के साथ, चीन ईरान और रूस के साथ तालिबान शासित अफगानिस्तान के साथ अपने संबंधों को मजबूत करने के लिए तैयार है।
पाकिस्तान अरशफ गनी को लेकर हमेशा चिंतित था, क्योंकि गनी भारत के करीब थे। अब जब गनी देश छोड़कर भाग गए हैं, पाकिस्तान राहत की सांस ले रहा है। यह तत्कालीन उत्तरी गठबंधन के नेताओं, अहमद शाह मसूद के भाइयों के बीच हालिया बैठक में स्पष्ट है, जो पहले तालिबान शासन में पाकिस्तान के शत्रु थे, लेकिन अब दोस्त बन गए है। भारत को अपनी अफगान नीति पर विचार करना होगा। भारत को पाकिस्तान और चीन के तालिबान पर बढ़ते प्रभाव से भी सतर्क रहे की जरुरत है।
ताजा स्थिति को देंखे तो पाकिस्तान ने तालिबान को लुभाने के आगे कदम बढ़ा दिए हैं। वो फिलहाल भारत से आगे है। हाल ही में एक समारोह में प्रधानमंत्री इमरान खान ने तालिबान की नीतियों का समर्थन करते हुए कहा कि यह विदेशी शासन से गुलामी की बेड़ियों से मुक्त है। यह बयान ऑक्सफोर्ड में पढ़े-लिखे क्रिकेटर से राजनेता बने के लिए अशोभनीय था। निश्चित रूप से तालिबानी मानसिकता को वश में करने की आवश्यकता है क्योंकि इमरान खान और उनका देश धार्मिक उग्रवाद और एक प्रतिगामी सामाजिक और राजनीतिक शासन का समर्थन कर रहे हैं।
भारत को तालिबान पर कड़ी नजर रखनी होगी। तालिबान अब कश्मीर पर टारगेट कर सकता है। हालांकि अभी ये दूर की कौड़ी लगता है पर आगे चलकर पाकिस्तान की सह पर तालिबान और पाकिस्तान प्रयोजित आतंकी ग्रुप कश्मीर को अस्थिर करने की कोशिश कर सकते हैं।
साउथ एशिया के और देशों के लिए तालिबान एक खतरा बनकर उभरा है। बांग्लादेश में कई कट्टरपंथी संगठन हैं जो तालिबान को सपोर्ट करते हैं। बांग्लादेश से कई हजार लड़के तालिबान में भर्ती हुए हैं और वो अब देश के लिए खतरा बन गए हैं। भारत-बांग्लादेश को इस मुद्दे पर मिलकर काम करने की जरुरत है। भारत-बांग्लादेश को संयुक्त आतंकवाद विरोधी उपायों पर काम करना होगा। स्थिति काफी गंभीर है, क्योंकि भारत, बांग्लादेश, इंडोनेशिया, मालदीव, मलेशिया आदि में धार्मिक कट्टरता की एक नई लहर देखी जा सकती है जो इस क्षेत्र के लिए एक गंभीर नुकसान होगा।
तालिबान के आतंकी पूरे अफगानिस्तान में तांडव कर रहे है। जो लोग तालिबान को सही मान रहे हैं वो खुलकर सामने आ रहे हैं। तालिबान द्वारा सत्ता पर कब्जा करने से उत्साहित होकर, लाहौर में प्रतिष्ठित सिख शासक महाराजा रणजीत सिंह की प्रतिमा को तोड़ दिया गया। पाकिस्तान से यह संकेत है कि तालिबान के समर्थकों के मन में एक चुनी हुई सरकार के लिए बहुत कम सम्मान बचा है।
(लेखक एक सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी हैं, जो मॉरीशस के प्रधान मंत्री के पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार रह चुके हैं।)