पाकिस्तान की मिलिटरी ने भारत के साथ सीज फायर एग्रीमेंट आतंकियों को रास नहीं आ रहा है। आतंकियों के एक गिरोह ने इस पर ऐतराज जताते हुए एक चिट्ठी भी जारी की है। हालांकि, इस चिट्ठी को लेकर भी कई बातें हो रही हैं। कुछ लोगों का कहना है कि कश्मीर में जो आतंकी गिरोह सक्रिए हैं वो सब आईएसआई की सरपरस्ती में हैं। आईएसआई जो चाहती है वही ये गिरोह करते हैं। इन हालातों में आतंकी गिरोह की इस चिट्ठी पर भी शक की सुई घूम रही है।
बहरहाल, इस्लामिक एमीरेट्स ऑफ कश्मीर, मुजाहिद्दीन गजवातुल हिंद के कमाण्डर खालिद की ओर से एक चिट्ठी जारी की गई है। इस चिट्ठी में लिखा है कि परवेज मुशर्रफ के जमाने से पाकिस्तान सरकार उनके पीठ में छुरा घोंपने का काम कर रही है। इस चिट्ठी के मजमून को इस तरह से बनाया गया है जिससे यह लगे कि कश्मीर में जो आतंकी सक्रिए हैं उनका पाकिस्तान सरकार या पाकिस्तानी फौज से सीधा-सीधा कोई सरोकार नहीं हैं। पाकिस्तान सरकार उन्हें मोरल सपोर्ट भी नहीं दे रही है। बल्कि कश्मीर में भारत के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह को दबा रही है। आखिर में इस बात को दोहराया गया है कि वो कश्मीर घाटी में जिहाद की आवाज बुलंद करते रहेंगे। कोई भी सीज फायर, कोई भी समझौता कश्मीर में भारत के खिलाफ जंग से उन्हें नहीं रोक सकता।
साउथ एशिया की राजनीति और रणनीति में दखल रखने वालों का मानना है कि यह चिट्ठी पाकिस्तान की एक सोची समझी चाल है। अफगानिस्तान में तालिबान आतंकियों को खड़ा करने के बाद कहता है कि तालिबान पर उसका कोई कंट्रोल नहीं है। सारे तालिबानियों के परिवार पाकिस्तान में पाकिस्तान की मिलिटरी के सेफ हाउसेस में रहते हैं। खाने-पीने से लेकर उनकी सुरक्षा का जिम्मा पाकिस्तान सरकार उठा रही है। फिर भी जब अफगानिस्तान में आतंकी हमलों को रोकने की बात आती है तो पाकिस्तान की ओर से कहा जाता है कि वो तालिबान से वार्ता करेंगे लेकिन वो मानें या न मानें ये उनकी मर्जी है।
पाकिस्तान कश्मीर में अफगान तालिबान मॉडल लागू कर रहा है। ताकि वो दुनिया के सामने कह सके कि कश्मीर के आतंकियों से उसका कोई लेना-देना नहीं है। एक पूर्व सुरक्षा विशेषज्ञ का कहना है कि सरकार, खुफिया-सुरक्षा एजेंसियों और भारत की मीडिया को भी ऐसी चिट्ठियों और सूचनाओं से सावधान रहना चाहिए।