अमेरिका में हुए चुनाव ने साबित कर दिया है कि ब्लैक लाइफ मायने रखती है लेकिन अश्वेतों का वोट उससे भी ज्यादा मायने रखता है। अमेरिका में 2020 के राष्ट्रपति चुनाव में जिस तरह से अश्वेतों ने मतदान किया, उससे साफ हो गया है कि उनकी राजनीतिक ताकत उनकी आर्थिक और सामाजिक हैसियत से बहुत ही ज्यादा है। चुनाव परिणाम ने साफ साबित कर दिया है कि बहुत हद तक अश्वेतों ने ही यह तय किया कि अमेरिका के अगले राष्ट्रपति अब डोनाल्ड ट्रंप नहीं रहेंगे और उनकी जगह डेमोक्रेटिक उम्मीदवार जो बाइडन अमेरिका के सबसे उम्रदराज राष्ट्रपति बन जाएंगे।
अमेरिकी चुनाव में अश्वेतों के इस तरह एकतरफा ढंग से डेमोक्रेटिक पार्टी के पक्ष में वोट डालने के पीछे कुछ वजहें भी हैं। डोनॉल्ड ट्रंप के शासन काल में सभी समुदायों को तकलीफें झेलनी पड़ीं हैं, लेकिन उसका सबसे बड़ा भार अश्वेतों को ही उठाना पड़ा है। ट्रंप प्रशासन ने कोरोनावायरस से निपटने में जिस लापरवाही का परिचय दिया, उससे अश्वेतों को सबसे ज्यादा नुकसान उठाना पड़ा है। अमेरिका में कोरोना वायरस से हर 1000 में से 1 अश्वेत अमेरिकी की मौत हुई है और उन्होंने श्वेतों की तुलना में दोगुना रोजगार खोना पड़ा है। जो बाइडन की व्हाइट हाउस तक पहुंचने की सारी कसरत इसी अश्वेत समुदाय के वोटों को पूरी तरह डेमोक्रेटिक पार्टी के पाले में लाने पर निर्भर थी।
अमेरिका में दशकों से डेमोक्रेटिक पार्टी को रिपब्लिकन पार्टी की तुलना में अश्वेत समुदाय का ज्यादा समर्थन हासिल रहने का लाभ पहले से ही था। लेकिन बराक ओबामा के अंतिम कार्यकाल में इस में थोड़ी गिरावट देखी गई। बहरहाल इस बार डेमोक्रेटिक पार्टी ने तीन करोड़ अश्वेत मतदाताओं के वोट को हासिल करने में कोई कसर नहीं उठा रखी और इसके लिए एक तरह के हिंसक आंदोलन को भी अपना समर्थन देने में परहेज नहीं किया। इस बार अश्वेत समुदाय ने भी आपस में किसी भी विभाजन का प्रदर्शन नहीं किया और डेमोक्रेटिक पार्टी को खुलकर समर्थन दिया।
अमेरिका के जिन राज्यों में अश्वेत मतदाता सबसे ज्यादा है, उनमें ज्यार्जिया (32%), नार्थ कैरोलिना (22%), फ्लोरिडा (14%), मिशिगन (13%), ओहायो (12%), पेंसिलवेनिया (10%), विंस्कोसिन (6%) और एरिजोना (5%) हैं। अमेरिका में जैसे-जैसे ब्लैक लाइव्स मैटर आंदोलन बढ़ता गया, डेमोक्रेटिक पार्टी के नेता पुलिस और न्याय व्यवस्था में सुधारों को लेकर बहुत ज्यादा प्रगतिशील कदम उठाने की तरफदारी करते देखे जाने लगे। इसके अलावा बराक ओबामा के शासनकाल की याद ने भी अश्वेत समुदाय को डेमोक्रेटिक पार्टी के प्रति वफादारी निभाने के लिए प्रेरित किया। हर 10 में से 9 अश्वेत युवा मतदाताओं ने चुनाव सर्वेक्षणों में खुलकर साफ कर दिया था कि वे डोनाल्ड ट्रंप को वोट देंगे ही नहीं।
<img class="wp-image-17232" src="https://hindi.indianarrative.com/wp-content/uploads/2020/11/JoeBidenKamalaHarris-1.jpg" alt="" width="525" height="351" /> जो बाइडन की व्हाइट हाउस तक पहुंचने की सारी कसरत अश्वेतों के वोटों को पूरी तरह अपने पाले में लाने पर निर्भर थी।अमेरिका में अश्वेत मतदाताओं को वोटिंग अधिकार से वंचित रखने की एक लंबी परंपरा रही है। अमेरिका में अश्वेत पुरुषों को 1860 के दशक में पहली बार वोट देने का अधिकार मिला था और महिलाओं को उसकी एक सदी के बाद यह अधिकार मिला। लेकिन अश्वेत मतदाताओं को दबाने का काम लगातार जारी रहा है और इसने एक संस्थागत तरीका अख्तियार कर लिया। लेकिन अब अमेरिकी अश्वेत मतदाताओं को वोटिंग अधिकार से वंचित रखना थोड़ा कठिन हो गया। इसका सबसे बड़ा कारण सुप्रीम कोर्ट द्वारा 1965 के<strong> वोटिंग राइट एक्ट</strong> के कुछ हिस्सों को रद्द करने के पक्ष मे दिया गया निर्णय है।
इसके कारण अब रिपब्लिकन गवर्नर वाले राज्यों के इलेक्शन बोर्ड, वोटिंग प्रक्रिया में बहुत कम हस्तक्षेप में सक्षम हो पाते हैं। जिससे अश्वेत लोग ज्यादा से ज्यादा संख्या में वोट डाल पाते हैं। सितंबर के अंत में <strong>चैनल 4</strong> ने एक डेटा लीक को उजागर किया था। जिसमें बताया गया कि ट्रम्प प्रशासन ने 35 लाख अश्वेत मतदाताओं को चुनाव के दिन वोट डालने के वंचित करने की एक योजना बनाने की कोशिश की है। बहरहाल महामारी और ब्लैक लाइव्स मैटर आंदोलन की पृष्ठभूमि मतदान करने वाले अश्वेत अमेरिकियों की बढ़ती संख्या को चुनाव नतीजे के बाद अपनी क्षमताओं की ताकत जरूर महसूस हुई होगी।.