प्रधानमंत्री मोदी के बांग्लादेश दौरे के दौरान और उसके बाद हुई हिंसा के लिए जिम्मेदार हिफाजत-ए-इस्लाम के पीछे बांग्लादेश की बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी और जमात-ए-इस्लामी का समर्थन है। हिंसा की वारदातों का मकसद शेख हसीना की सरकार को कमजोर करना और गिराना था। हिफाजत-ए-इस्लाम बांग्लादेश को एक कट्टरपंथी मुस्लिम देश की शक्ल में देने में कामयाब भी रहा है। यह संगठन बांग्लादेश के कट्टरपंथियों का मुखिया बन चुका है। बांग्लादेश के मीडिया मुगल्स का मानना है कि छत्तीस का आंकड़ा रखने वाले हिफाजत-ए-इस्लाम की ताकत को प्रधानमंत्री शेख हसीना ने कम करके आंका और यही उनकी भूल साबित हुआ है। बांग्लादेश में कट्टरपंथी इस्लामिक संगठन का उभरना ढाका और नई दिल्ली दोनों के लिए एक बड़ी चुनौती है।
बांग्लादेश की आजादी की 50वीं सालगिरह पर पहुंचे पीएम मोदी की यात्रा का विरोध करने वाला 'हिफाजत-ए-इस्लाम' एक दिन में इतना शक्तिशाली नहीं बना है। ऐसा कहा जाता है कि इस संगठन को आईएसआई से फण्ड मिलता है। धार्मिक कट्टरपंथ का सहारा लेकर हिफाजत-ए-इस्लाम पिछले कुछ वर्षों में बांग्लादेश में सियासी दबदबा भी कायम कर चुका है। धर्मनिरपेक्षता की वकालत करने वाली बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना की पार्टी अवामी लीग से इस संगठन का 36 का आंकड़ा रहा है। महिलाओं के अधिकारों को लेकर बिल हो या बांग्लादेश में धर्मनिरपेक्षता की बहाली को लेकर संविधान में संशोधन का मसला, हर मौके पर यह संगठन शेख हसीना की सरकार के फैसलों के विरोध में रहा है।
खुद को इस्लाम का मुहाफिज कहने वाला हिफाजत-ए-इस्लाम अपनी मांगों को लेकर हिंसक विरोध-प्रदर्शनों का सहारा लेता रहा है। सन् 2008 में बांग्लादेश की सरकार ने महिलाओं के संपत्ति में बराबर की हिस्सेदारी,खानदानीविरासत, लोन, जमीन में हिस्सेदारी आदि को लेकर नेशनल विमेन्स डेवेलपमेंट पॉलिसी बिल का मसौदा तैयार किया था. 2008 के चुनावों में सेकुलरिज्म को मानने वाली शेख हसीना की पार्टी अवामी लीग ने चुनावों में जीत हासिल की।
शेख हसीना के बदलावों को लेकर इस्लामिक कट्टरपंथियों को लगा कि सियासत में उनका दायरा सिकुड़ता जा रहा है। बांग्लादेश के कई इस्लामिक संगठन एक बैनर के नीचे आए और उन्होंने 'हिफाजत-ए-इस्लाम' नाम से एक संगठन का गठन किया। फरवरी 2010 में इस संगठन ने चटगांव में महिला बिल के खिलाफ प्रदर्शन का आह्वान किया और संविधान के 50वें संशोधन को बनाए रखने की वकालत की. इस प्रदर्शन के दौरान पुलिस से हिंसक झड़प में दर्जनों लोग घायल हुए और यह वह दिन बन गया जब बांग्लादेश की सियासी जमीन पर नए इस्लामिक गुट ने अपनी पहली दस्तक का अहसास कराया।
हिफाजत-ए-इस्लाम' का बांग्लादेश के चटगांव में हेडक्वार्टर है जिनका कौमी मदरसा, छात्रों और सुन्नी मौलवियों का बड़ा नेटवर्क है। 2010 में हिफाजत-ए-इस्लाम ने महिला बिल के खिलाफ प्रदर्शन किया तो 2013 में अपनी 13 सूत्रीय मांगों को लेकर इसके समर्थक फिर ढाका की सड़कों पर उतर आए। उनकी मांगों में एक ईशनिंदा विरोधी कानून को लागू करना शामिल था जिसमें मौत की सजा का प्रावधान है। इस संगठन महिला बिल को रद्द करने की भी मांग की थी। उनकी मांग थी कि सार्वजनिक रूप से मर्दों और महिलाओं के मिलने पर रोक लगाई जाए और बांग्लादेश के अहमदिया समुदाय को "गैर-मुस्लिम" घोषित किया जाए जैसे कि पाकिस्तान में है।
शेख हसीना की सरकार हालांकि शुरुआत में इन विरोध-प्रदर्शनों की अनदेखी करती रही, लेकिन हिफाजत के सदस्यों ने बांग्लादेश की राजधानी ढाका में कई मार्च निकाले. जब इनका दबाव बढ़ने लगा तब सरकार ने तेजी दिखाई और इनसे निपटने में सक्रियता से काम लिया। 6 मई 2013 को सुरक्षा बलों ने ढाका की घेराबंदी कर चुके हिफाजत के सदस्यों को खदेड़ने के लिए एक्शन लिए। इस ऑपरेशन में कम से कम 11 लोगों की मौत हो गई थी।
"ढाका की घेराबंदी" विफल होने के बाद से हिफाजत ने कभी सरकार या सत्तारूढ़ पार्टी से सीधी टक्कर नहीं ली थी। लेकिन इस संगठन ने बांग्लादेश में प्रमुख इस्लामिक संगठन के तौर पर अपना दबदबा बनाए रखा और इस्लामिक एजेंडा लागू कराने के लिए सरकार पर दबाव डालने की कोशिश भी करता रहा। इनके असर को इस बात से समझा जा सकता है कि बांग्लादेश में संविधान के 50वें संशोधन को निरस्त कर दिया गया।
हिफाजत-ए-इस्लाम ने इस्लाम का राजधर्म का दर्जा खत्म करने पर हिंसक आंदोलन की धमकी दी थी। बांग्लादेश की सरकार हिफाजत के दबाव में आकर स्कूलों के पाठ्यक्रमों में बदलाव कर चुकी है। बांग्लादेश के जाने-माने अखबार डेली स्टार के संपादक अनम का मानना है कि हिफाजत-ए-इस्लाम को शेख हसीना की तुष्टिकरण की नीति ने ही मजबूत बनाया। और इस संगठन की वजह से बांग्लादेश की छवि एक कट्टरपंथी मुस्लिम देश की बन चुकी है।
बांग्लादेश 2015-16 में, जब बांग्लादेश धर्मनिरपेक्ष ब्लॉगरों और कार्यकर्ताओं के खिलाफ हिंसा की चपेट में था, तब हिफाजत ने ऐसे लेखकों के खिलाफ एक्शन की मांग की थी. 2017 में हिफाजत की मांग पर सरकार ने सुप्रीम कोर्ट परिसर से ग्रीक देवी थेमिस की मूर्ति हटावा दी थी।हिफाजत में शामिल कुछ इस्लामिक गुटों ने 1994 में लेखिका तस्लीमा नसरीन के खिलाफ अभियान चलाया और उन्हें बांग्लादेश छोड़ना पड़ा।
शेख हसीना की सरकार जमात-ए-इस्लामी की तुलना में हिफाजत को बड़ी समस्या के तौर पर नहीं देखती है, लेकिन यह भी सच है कि यह संगठन इन कुछ सालों में धीरे-धीरे मजबूत हुआ है…और भारतीय प्रधानमंत्री की यात्रा के खिलाफ उन्होंने जो विरोध प्रदर्शन किया, वह ऐसे समय में हुआ है जब भारत और बांग्लादेश दोनों अपने रिश्तों को मजबूत करने की कोशिश कर रहे है।