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West Bengal Election 2021: प. बंगाल में मुसलमान नहीं ये समुदाय है ‘वोट का बादशाह’, 205 सीटों पर तय करते हैं जीत-हार

West Bengal Election 2021: दलित समुदाय- वोट के बादशाह!

देश में चुनाव कहीं भी हो रहे हों लेकिन मुस्लिम वोटर्स के तुष्टिकरण के आगे वाकी जाति और समुदायों की उपेक्षा कर दी जाती है। मुस्लिम समुदाय के तुष्टिकरण का एक मनोवैज्ञानिक कारण है। वो यह है कि एक राज्य में मुस्लिम वोटर्स को महत्ता देने से दूसरे राज्यों में अपने आप उन्हें महत्ता मिलने लगती है। सरकार बनाने में अपना सबकुछ लगाने वाले समुदाय मुस्लिम तुष्टिकरण के आगे मार खाने लगते हैं। गैर भाजपाई दल की ऐसी मानसिकता है कि हिंदु जाति और समुदाय का कुछ न कुछ तो वोट उन्हें मिलेगा ही , क्यों कि हिंदू केवल जातियों में ही नहीं राजनीतिक तौर पर भी बंटा हुआ है। लेकिन मुस्लिम वोटर्स को सिर पर बिठा कर चलने से ने केवल उन्हें इकट्ठा वोट मिलेगा बल्कि बीजेपी खुलकर या सीधे तौर उसका विरोध भी नहीं कर सकेगी। अगर करेगी तो सांप्रदायिकता का ठप्पा और गहरा हो जाएगा। अभी तक होता भी ऐसा ही रहा है।

मुसलमान वोटर्स को सिर पर बैठाया, दलितों को चूना लगाया

प. बंगाल के चुनावों में रंगत बदली हुई है। बीजेपी ने पिछले कई सालों से लगातार घर-घर जाकर यह बताने की कोशिश की है कि सरकारें हिंदू वोटर्स को किस तरह चूना लगाती रही हैं। इसमें चाहे पहले लेफ्ट की सरकारें रही हों या फिर पिछले 10 साल से ममता बनर्जी की तृणमूल सरकार। पश्चिम बंगाल में तो ये कहा जाता रहा है कि मुसलमान जिसे वोट देगा वही सरकार बनाएगा। मगर सच्चाई अब कुछ और है। सच्चाई यह है कि 294 सीटों में से 127 सीटों पर हिंदू दलित वोट 25 से 35 फीसदी तक है। और ये वोट प्रतिशित जिस पार्टी के साथ होगा उसका मुख्यमंत्री बनना तय है। चाहे मुख्य मंत्री बना दे।

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इन 127 विधानसभाओं के अलावा 78 विधान सभा में 20 से 25 दलित वोट हैं। जो जीत-हार का फासला घटाने और बढ़ाने में अहम भूमिका रखते हैं। कहने का मतलब है कि पश्चिम बंगाल की 294 में से 205 सीटों पर तो केवल हिंदू दलितों का कब्जा है। लेकिन हौव्वा ऐसा खड़ा किया जाता है कि मुसलमान को खुश नहीं रखा गया तो सरकार नहीं बनेगी। ये हौव्वा सिर्फ इसलिए खड़ा किया जाता है कि अनुसूचित जाति बहुल्य हिंदू वोटर्स मनोवैज्ञानिक दबाव में आ जाएं और जिधर जालीदार टोपी-लुंगी का वोट जा रहा हो उसी को अपना वोट भी दे आएं।

बीजेपी  ने बंगाल में पकड़ी नब्ज

ममता शासनकाल में बीजेपी ने प. बंगाल की नब्ज पकड़ी और 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने 42 में से 18 लोकसभा सीटों पर जीत हासिल की थी। अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित 68 में से 33 विधानसभा क्षेत्रों में उसे बढ़त मिली थी। इन 33 में से 26 विधानसभा मतुआ बहुल थीं। पश्चिम बंगाल में संघ और बीजेपी की मेहनत का नतीजा था कि अनुसूचित जाति बड़े हिस्से के वोट तृणमूल से कमल की तरफ घूम गए। तब से ऐसी हवा चली है कि प. बंगाल के दलित वोटर्स को पता चल गया है कि मुसलमान नहीं बंगाल के वोट के ‘असली बादशाह’ तो वो खुद हैं।

मतुआ मतदाताओं को जिसने साधा, सत्ता उसी दल के पास

बंगाल की दलित आबादी में नामशूद्र समुदाय की तादाद 17.4 प्रतिशत है। 18.4 फीसदी आबादी वाले राजबंशी समुदाय के बाद नामशूद्र समुदाय राज्य में दूसरे नंबर पर है। नामशूद्र समूह में मतुआ समुदाय का सबसे बड़ा हिस्सा है। 1.5 करोड़ आबादी के साथ 42 विधानसभा सीटों पर मतुआ समाज की मौजूदगी है। बीजेपी इस वोट बैंक को पक्ष में करने के लिए पूरा जोर लगा रही है। अपनी बांग्लादेश यात्रा के दौरान पीएम मोदी ने जोशेश्वरी काली मंदिर में दर्शन किए थे। मतुआ समुदाय के बीच इस मंदिर की काफी मान्यता है। उसी दौरान बंगाल में पहले चरण की वोटिंग हो रही थी। मतुआ समाज के आध्यात्मिक गुरु हरिचंद ठाकुर की जन्मस्थली ओराकांडी में भी पीएम गए थे।

लोकसभा चुनावों में बीजेपी की बढ़त का कारण मतुआ

मतुआ समुदाय मूल रूप से पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) का रहने वाला है। 1971 में बांग्लादेश बनने के बाद बड़ी तादाद में मतुआ भारत विस्थापित हुए। हालांकि उनमें से एक बड़ी आबादी को अभी नागरिकता नहीं मिल पाई है। बीजेपी ने सीएए के जरिए दूसरे देशों से आए कुछ तबकों को भारतीय नागरिकता का वादा किया है। 2019 के चुनाव में मतुआ समाज के बीजेपी के प्रति झुकाव की एक बड़ी वजह यह भी रहा।

ओराकांडी में छुपी है बंगाल जीत की कुंजी

बांग्लादेश के ओराकांडी में 1812 में हरिचंद ठाकुर का एक दलित किसान परिवार में जन्म हुआ था। ठाकुर का परिवार वैष्णव था। वैष्णव हिंदुओं के एक नए मत का उनके परिवार ने आगाज किया, जिसे मतुआ नाम से जाना जाता है। इस संप्रदाय को नामशूद्र समुदाय के लोगों ने अपना लिया। उस वक्त नामशूद्रों को चांडाल कहा जाता था। 'जगत माता' के रूप में चर्चित शांति माता से हरिचंद ठाकुर का विवाह हुआ। उनके दो बच्चे थे। 1878 में बांग्लादेश के फरीदपुर में उनका निधन हो गया। बाद में उनके पुत्रों ने एक ब्रिटिश मिशनरी की मदद से चांडाल समुदाय को नामशूद्र के रूप में नई पहचान दिलाई।

बंगाल के दलितों के साधने में संघ ने 10 साल लगाए

ऐसी जानकारी मिली है कि बीजेपी और संघ के कार्यकर्ताओं ने पिछले 10 साल दिन-रात लग कर प. बंगाल के इन वोटर्स में जनजागरण की लहर पैदा की है। उन्हें उनके वोट की महत्ता समझाई है। उन्हें बताया है कि सरकारें उनके वोट से बनती है। इसलिए किसी का पिछलग्गू बनकर वोट देने के बजाए सोच-समझ कर वोट डाला जाए। पहले चरण में हुए भारी मतदान को बीजेपी और संघ के कार्यकर्ताओँ की मेहनत का सकारात्मक परिणाम माना जा रहा है। इसीलिए बीजेपी के नेता फूल के कुप्पा हो रहे हैं और तृणमूल सुप्रीमो ममता बनर्जी की हवा निकली हुई दिखाई दे रही है।