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शोधकर्ता के दावे से मची खलबली, बताया इंसानों की जिंदगी और लंबी कर सकते हैं क्लोन?

इंसानों की जिंदगी और लंबी कर सकते हैं क्लोन

Human Clones: इंसान की बनावट ऐसी है कि, जन्म लेने के बाद वो धीरे-धीरे उम्र की ओर बढ़ता है, जवान होता है और फिर बूढ़ा जाता है। शायद ही कोई ऐसा शख्स हो जो अपने आप को हमेशा जवान न देखना चाहता हो। कई लोग तो जड़ी-बूटियों की भी खोज करते हैं कि जिससे वो जवान बने रहे। लेकिन, क्या वाकई में ऐसा हो सकता है। एक खोज की माने तो ऐसा हो सकता है। यानी आप बूढ़ा होकर फिर से जवान हो सकते हैं। कई अध्ययन और बड़े पैमाने पर रिसर्च के बाद भी वैज्ञानिकों के लिए ‘अमरता’ एक सपना बनी हुई है। लेकिन एक एंटी-एजिंग शोधकर्ता का मानना है कि हम ‘वहां तक पहुंच सकते हैं’ या कम से कम मानव जीवन को मौजूदा सीमाओं से आगे बढ़ा सकते हैं, वह भी बिना किसी चमत्कारिक गोली या इंजेक्शन की मदद से। बायोटेक कंपनी इंसिलिको मेडिसिन के प्रमुख डॉ. एलेक्स झावोरोंकोव का कहना है कि ह्यमन क्लोन यानी इंसानों के क्लोन ‘अनंत जीवन’ में बड़ी भूमिका निभा सकते हैं।

डेलीमेल की खबर के मुताबिक, थ्योरी कहती है कि लैब में शारीरिक अंगों के निर्माण का साइंटिफिक कॉन्सेप्ट लोगों को ‘अतिरिक्त’ अंदरूनी अंग प्रदान करेगा, जब इंसान बीमार होगा या मौत के करीब होगा। जानवरों के क्लोन पहले ही वैज्ञानिक प्रयोगों के हिस्से के रूप में लैब में तैयार किए जा चुके हैं। वहीं पौधे हजारों साल से इसी प्रक्रिया से गुजर रहे हैं। अमरता की तलाश में जुटे शिक्षाविदों को लगता है कि इंसानों में भी यह उपलब्धि संभव है।

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अब क्लोन देगा नया जीवन

हांगकांग स्थित फर्म के डॉ झावोरोंकोव का मानना है कि यह तकनीक आज के बच्चों के जीवनकाल में इंसानों के लिए उपलब्ध हो जाएगी। यह इंसानों को अस्वस्थ होने पर ‘अतिरिक्त’ अंदरूनी अंग प्रदान करेगी, जैसे हृदय, लीवर या फेफड़े। इन अंगों को क्लोन से निकालकर इंसानों के शरीर में ट्रांसप्लांट किया जाएगा। झावोरोंकोव का मानना है कि आगे चलकर यह एक कार या आईफोन की तरह ही सुलभ हो जाएगा। हालांकि मानव क्लोन का आइडिया वैज्ञानिक कठिनाइयों के कारण बेहद विवादास्पद है। जानवरों के क्लोन में उच्च मृत्यु दर और शारीरिक विकृति देखी गई है। मानव को आनुवांशिक रूप से किसी अन्य व्यक्ति, जो वर्तमान में मौजूद हो या पहले कभी रहा हो, के समान बनाने को लेकर कुछ नैतिक चिंताएं भी हैं। यूएस नेशनल ह्यूमन जीनोम रिसर्च इंस्टीट्यूट के अनुसार यह व्यक्तिगत स्वतंत्रता और पहचान के सिद्धांतों का उल्लंघन कर सकता है।