इसरो (ISRO) ने चंद्रयान-3 को लॉन्च करने के बाद अब एक और कमाल करने की दिशा में अपना कदम बढ़ा लिया है। इसरो ने पीएसएलवी की जबरदस्त सफलता के बाद अब परमाणु ऊर्जा से चलने वाले रॉकेट के लिए इंजन बनाने पर काम करना शुरू कर दिया है। इसरो ने इसके लिए देश की अग्रणी परमाणु एजेंसी भाभा एटामिक रीसर्च सेंटर या बार्क के साथ हाथ मिला लिया है। वहीं विशेषज्ञों के अनुसार केमिकल से चलने वाले इंजन एक सीमा तक ही ठीक हैं। अगर आप एक स्पेसक्राफ्ट को अनंत अंतरिक्ष में भेजना चाहते हैं या एक ग्रह से दूसरे ग्रह की यात्रा करना चाहते हैं तो इसके लिए परमाणु ऊर्जा से चलने वाले यान ही कारगर साबित हो सकते हैं।
द हिंदू की रिपोर्ट के अनुसार केमिकल से चलने वाले रॉकेट में इतना ईंधन नहीं भरा जा सकता है जिसकी मदद से वे अंतरिक्ष में बहुत लंबी दूरी तक सफर कर पाएं। वहीं अगर सोलर पावर की बात करें तो अंतरिक्ष में बहुत लंबी दूरी तय करने पर सूरज की रोशनी भी नहीं आएगी जिससे रॉकेट का चलना मुश्किल हो जाएगा। इसी वजह से अब इसरो ने परमाणु ऊर्जा से चलने वाले इंजन पर काम करना शुरू कर दिया है।
परमाणु रॉकेट कैसे करेगा काम?
एक सूत्र के हवाले से मिल रही जानकारी के मुताबिक इस पर काम पहले ही शुरू हो चुका है और इसे प्रमुख चुनौती के रूप में लिया गया है जिसे जल्द ही पूरा किया जाएगा।’ परमाणु इंजन को उस तरह का नहीं माना जाता है, जैसे परमाणु विखंडन वाले रिएक्टर होते हैं जिससे बिजली पैदा होती है। रेडियो थर्मोइलेक्ट्रिक जनरेटर के अंदर रेडियोएक्टिव मटीरियल जैसे प्लूटोनियम-238 या स्ट्रोन्टियम-90 का इस्तेमाल किया जाता है। ये जब नष्ट होते हैं तो गर्मी पैदा करते हैं। इस इंजन में दो हिस्से होंगे पहला-द रेडियोआइसोटोप हीटर यूनिट जिससे गर्मी पैदा होगी और दूसरा रेडियो थर्मोइलेक्ट्रिक जनरेटर होंगे जो इस गर्मी को इलेक्ट्रिसिटी में बदल देंगे। यह गर्मी इसके बाद ‘थर्मोकपल’ में बदल जाएगी। यह एक ऐसा मटीरियल है जो वोल्टेज पैदा करता है। अगर आसान भाषा में कहें तो एक रॉड की कल्पना करिए जिसका एक सिरा बहुत गरम होता है तो दूसरा सिरा नहीं होता है। लेकिन पूरे रॉड के अंदर ही वोल्टेज होगा। इस वोल्टेज का इस्तेमाल बैटरी को चार्ज करने में किया जा सकता है जो सैटलाइट को जरूरी ताकत मुहैया कराएगी।
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NASA पहले से कर रही परमाणु इंजन का इस्तेमाल
बताया जा रहा है इससे वैज्ञानिकों को लॉन्च विंडो की जरूरत बहुत कम होगी। रेडियो थर्मोइलेक्ट्रिक जनरेटर हालांकि कोई नहीं बात नहीं हैं। अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के स्पेसक्राफ्ट वोयागेर, कैसिनी और क्यूरिसिटी भी इसी तरह के इंजन से चलते हैं। नासा अब नए परमाणु थर्मल प्रपल्शन तकनीक पर काम कर रही है जिसे साल 2027 तक शामिल किए जाने की योजना है। इस नई तकनीक की मदद से अंतरिक्षयात्री बहुत तेजी से सुदूर अंतरिक्ष में यात्रा कर सकेंगे। इससे नासा के अंतरिक्षयात्रियों के मंगल ग्रह और चांद पर आसानी से जाने का रास्ता साफ होगा। यही नहीं अंतरिक्षयात्रियों के लिए समय कम लगेगा और खतरा भी कम होगा। चीन भी ऐसा ही कुछ करने में जुटा हुआ है।