भारतीय टीम में कप्तानी को लेकर जो विवाद चल रहा है, वो 16 साल और 3 महीने पहले के इतिहास को दोहरा रहा है। आज जहां विराट कोहली हैं, उस वक्त उसी जगह पर कभी सौरव गांगुली खड़े थे। तब सौरव टीम इंडिया के कप्तान हुआ करते थे। बेकार प्रदर्शन के चलते उन्हें टीम से बाहर होना पड़ा था। कोच ग्रेग चैपल ने बीसीसीआई से शिकायत करते हुए साफ कहा था कि सौरव कप्तानी के लायक नहीं। उनसे टीम को नुकसान हो रहा है। जिसके बाद कैप्टेंसी छीनकर राहुल द्रविड़ को दे दी गई थी। ठीक वैसे ही आज विराट कोहली के साथ हो रहा है। विराट के कप्तानी छीनकर रोहित शर्मा को दी जा रही है।
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संघर्ष और मुश्किल समय में उस वक्त गांगुली ने बीसीसीआई को अपने साथ खड़ा पाया। तब बोर्ड के अध्यक्ष रणबीर सिंह महेंद्र ने संकट में गांगुली के समर्थन में मीडिया को एक बयान जारी किया और कहा कि कोच और क्रिकेटर को प्रोफेशनल रिलेशन कायम रखना चाहिए। बोर्ड के समर्थन और जबरदस्त कोशिशों की वजह से 10 महीने बाद गांगुली ने भारतीय टीम में वापसी की थी। लेकिन विराट कोहली के साथ ऐसा नहीं है। वो खराब फॉर्म, नहीं बल्कि एक फोन कॉल पर कप्तानी से हटाए जाने की वजह से शर्मिंदा होंगे।
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बीसीसीआई और कोहली के बीच कप्तानी में बदलाव को लेकर कोई चर्चा नहीं हुई थी। चैपल और गांगुली मामले को देखते हुए यह कहीं से भी ऑफ द फील्ड अच्छा बिहेवियर नहीं माना जा सकता है। पूरे मामले को करीब से समझने वालों का का कहना है- फिलहाल कोहली को बीसीसीआई की जरूरत है। बोर्ड को जरूरत है कोहली की शर्मिंदगी, गुस्से और हताशा को दूर करे, जिससे वह गुजर रहे होंगे। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या बीसीसीआई अध्यक्ष गांगुली को भी अपने जूनियर क्रिकेटर का उसी तरह साथ नहीं देना चाहिए, जिस तरह कभी बोर्ड उनके साथ खड़ा था।