अपने दो दशक के कोचिंग करियर में पैरालम्पिक खेलों में देश को कई बेहतरीन प्रतिभा देने वाले कोच विजय मुनिश्वर को इस साल द्रोणाचार्य अवार्ड से नवाजा गया है। 1991 में पैरा पावरलिफ्टिंग की स्थापना करने वाले मुश्विर ने कहा कि उन्हें सम्मान देर से मिला लेकिन वो खुश हैं।
राष्ट्रीय कोच ने भारतीय पैरालम्पिक समिति (पीसीआई) से कहा, "देर आए दुरुस्त आए। एथेंस पैरालम्पिक-2004 में जब राजेंद्र सिंह राहेलू ने कांस्य पदक जीता था तब मैं उम्मीद कर रहा था। वह देश के लिए ऐतिहासिक पल था। कोई बात नहीं, सम्मान इतने लंबे इंतजार बाद मिला है तो यह विशेष है।"
राहेलू के अलावा मुनिश्वर ने फरमान बाशा (एशियाई पैरा खेल-2010 के कांस्य पदक विजेता), शकिना खातुन (राष्ट्रमंडल खेल-2014 में कांस्य पदक), सचिन चौधरी (राष्ट्रमंडल खेल-2018 में कांस्य) और सुधीर (एशियाई पैरा खेल-2018, कांस्य पदक विजेता) को भी ट्रेनिंग दी है।
1992, 1996 और 2000 पैरालम्पिक खेलों में हिस्सा लेने वाले मुनिश्वर से जब पूछा गया कि पावरलिफ्टिंग इतने दिनों में कितनी बदल गई है तो उन्होंने कहा, "किसी भी खेल की तरह, पावर लिफ्टिंग में भी कड़ी ट्रेनिंग की जरूरत है। लेकिन कुछ अन्य पहलू भी हैं, जैसे डाइट, मानिसक मजबूती, इससे भी अंतर पड़ता है। इसलिए मानिसक मजबूती हासिल करने की तैयारी काफी अहम हो गई है।"
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