बिहार में चुनाव परिणाम घोषित होने के साथ ही बिहार की जनता के साथ ही देश के राजनीतिक रूप से सजग लोगों ने भी चैन की सांस ली है। कुछ चैनलों ने अपने एग्जिट पोल में राजद के नेतृत्व वाले विपक्षी महा-गठबंधन को बहुमत मिलने की संभावना दिखाकर बिहार में जंगलराज की वापसी की आशंका को हवा दे दी थी। कांटे की टक्कर के बावजूद जनता ने अपना फैसला एनडीए के पक्ष में सुनाया। हालांकि बिहार में एनडीए की इस बार की जीत थोड़ी फीकी रही है, लेकिन इसके कई कारण रहे हैं।
बिहार के वरिष्ठ पत्रकार और पिछले 40 साल से राज्य की राजनीति पर बारीक नजर रखने वाले सुरेंद्र किशोर का कहना है कि नीतीश कुमार ने राज्य में अपराध, भ्रष्टाचार और निहित स्वार्थी तत्वों पर लगाम लगाने का काम किया। ऐसे तत्व भले ही भाजपा और एनडीए में थे, लेकिन उन्होंने भी इस बार राजद का साथ दिया। क्योंकि पिछले 15 साल से वे भी नीतीश कुमार से लाभ हासिल करने के लिए इंतजार करके थक गए थे।
सुरेंद्र किशोर ने कहा कि "एनडीए की जीत के कमजोर होने का एक कारण चिराग पासवान तो हैं ही, साथ ही युवा भी 10 लाख सरकारी नौकरियों के वादे के झांसे में आ गए। चिराग के कारण जद-यू को निश्चित रूप से नुकसान उठाना पड़ा है। पटना में दलाल प्रवृत्ति के लोग किसी भी मुख्यमंत्री पर दबाव बनाकर मनमाने काम कराते थे, नीतीश कुमार ने इन सब पर रोक लगा दी। अब ये सभी लोग राजद की तरफ शिफ्ट हो गए हैं, लेकिन उनकी ताकत का भी अंदाजा लग गया है। तमाम विरोध के बावजूद एनडीए ने बिहार में सत्ता में वापसी कर ली है। नीतीश कुमार को अब भ्रष्टाचार और अपराध पर और कठोर अंकुश लगाकर बिहार को विकास के रास्ते पर आगे ले जाना है।"
बिहार में जैसे-जैसे चुनाव के नतीजे सामने आते जा रहे थे, कांटे की लड़ाई में सभी की बेचैनी बढ़ती जा रही थी। ऐसे में विपक्षी महागठबंधन के नेताओं ने अपनी हार स्वीकार करने के गरिमापूर्ण तरीके को एक बार फिर नकार कर अपनी वास्तविकता सामने लाने का काम कर दिया। जैसे-जैसे चुनाव नतीजे आ रहे थे और कांटे की टक्कर में एनडीए की सत्ता वापसी साफ दिखने लगी, तो राजद ने निर्वाचन आयोग और मतगणना अधिकारियों पर आरोप लगाने शुरू कर दिया। उनका आरोप था कि करीबी मुकाबले में उनके प्रत्याशियों को हराया जा रहा है और मतगणना में गड़बड़ी की शिकायत भी निर्वाचन आयोग से की गई।
<img class="wp-image-17497" src="https://hindi.indianarrative.com/wp-content/uploads/2020/11/nitish-kumar-1024×680.jpg" alt="Nitish Kumar " width="444" height="295" /> देश के प्रथम शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आजाद की जयंती के अवसर पर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते नीतीश कुमार।लेकिन जब अंतिम चुनाव नतीजे घोषित हो गए तो यह बात स्पष्ट हो गई कि राजद की बौखलाहट का कोई आधार नहीं था। अगर चुनाव नतीजों को देखें तो साफ है कि बिहार में जिन 9 सीटों पर जीत-हार का अंतर दो हजार वोटों से कम रहा है, उनमें से राजद ने तीन कांग्रेस ने एक और भाकपा-माले ने एक सीट पर जीत हासिल की है। इसके विपरीत भाजपा को ऐसी केवल तीन और जेडीयू को एक सीट पर जीत हासिल हुई है।
आरा सीट पर राजद 666 वोटों से विजयी होने में सफल रही, इसी तरह बरौली सीट पर राजद उम्मीदवार केवल 504 वोटों से जीत हासिल करने में सफल रहा। झंझारपुर से भी राजद उम्मीदवार को केवल 834 वोटों से जीत मिली है। इसी तरह कांग्रेस का उम्मीदवार कसबा विधानसभा सीट में 1794 वोट से जीत हासिल करने में सफल हुआ। जबकि तरारी विधानसभा में भाकपा-माले को मात्र 272 वोटों से जीत नसीब हुई है। भाजपा को बनमनखी सीट पर 708 वोटों से, चैनपुर विधानसभा में 671 वोटों से और चहपटिया विधानसभा में 464 वोटों से जीत हासिल हुई है। शिवहर में जद-यू उम्मीदवार 461 वोटों से जीतने में सफल रहा है।
इस तरह साफ है कि विपक्षी महागठबंधन की बौखलाहट केवल हार को छुपाने का एक प्रयास है और इसका कोई आधार नहीं है। इस तरह के आधारहीन आरोपों से निर्वाचन आयोग जैसी संवैधानिक संस्था की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े होते हैं। इसको लेकर किसी राजनीतिक दल को कोई चिंता नहीं है। यही राजनीतिक दल दल जब सत्ता में आ जाते हैं, तो निर्वाचन आयोग के फैसलों पर कभी कोई सवाल नहीं उठाते। जबकि चुनाव में जब जनता उनको नकार देती है, तो अपनी हार का ठीकरा निर्वाचन आयोग के सिर पर फोड़ने की कोशिश करने लगते हैं।.