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बिहार में राजनेता नई पीढ़ी को 'राजनीतिक विरासत' सौंपने की तैयारी में जुटे 

बिहार में राजनेता नई पीढ़ी को 'राजनीतिक विरासत' सौंपने की तैयारी में जुटे 

आगामी विधानसभा चुनावों को लेकर बिहार में सरगर्मी अब दिखने लगी है। पार्टी कार्यालयों से लेकर वरिष्ठ नेताओं के आवासों तक टिकट चाहने वालें की भीड़ जुट रही है। अब तो सभी दलों के कई नेता अपने राजनीतिक भविष्य को सुरक्षित करने के लिए दल-बदल करने से भी संकोच नहीं कर रहे हैं। सभी बड़े और स्थापित दलों के कई राजनेता इस बीच अपनी अगली पीढ़ी को राजनीतिक विरासत सौंपने को लेकर जोड़-तोड़ में जुट गये हैं।

ऐसा करने में किसी एक दल के नेता ही शामिल नहीं हैं बल्कि सभी दलों के नेता इसमें बराबर के हिस्सेदार हैं। बिहार के करीब-करीब सभी प्रमुख दलों में कई ऐसा नेता हैं, जो अपनी राजनीतिक विरासत अपने पुत्रों को सौंपने की जुगाड़ में लगे हैं।

कुछ राजनेता तो ऐसे भी हैं जो अपने रिश्तेदारों को भी टिकट देकर उसे सत्ता में स्थापित कर देना चाहतो हैं। ऐसे नेता  सभी दलों में भले ही हैं, लेकिन इसकी सबसे लंबी सूची कांग्रेस पार्टी के पास है। अपना नाम नहीं प्रकाशित करने की शर्त पर कांग्रेस के एक नेता कहते हैं कि पार्टी के कई वरिष्ठ नेता हैं, जो अपने बेटों को सत्ता में स्थापित करने के लिये दिल्ली की दौड़ लगा रहे हैं। जबकि यह कसरत क्षेत्रीय कार्यकर्ताओं को पसंद नहीं आ रही है।

सूत्रों का कहना है कि पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष मदन मोहन झा जहां अपने पुत्र माधव झा को बेनीपुर से टिकट दिलाने की जोड़तोड़ करने में लगे हैं। कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता सदानंद सिंह अपने पुत्र शुभानंद मुकेश को कहलगांव से अपना सियासी उतराधिकारी बनाने के लिए नई चालें चल रहे हैं।

पार्टी के ही एक अन्य नेता डॉ. अशोक कुमार अपने पुत्र अतिरेक को दलसिंहसराय से पार्टी के चुनाव चिह्न पर चुनावी मैदान में उतारने की कवायद में जुटे हैं। जबकि अपने दिवंगत पिता पूर्व विधायक रामदेव राय की विरासत संभालने के लिए गरीबदास बछवाड़ा सीट से टिकट पाने की उम्मीद पाल कर बैठे हुए हैं।

आईएएनएस ने जब इस संबंध में कांग्रेस के बुजुर्ग नेता और पूर्व विधायक नरेंद्र कुमार से  बात की तब उन्होंने कहा, "अगर कोई नेता खुद को सेवानिवृत्त कर अपनी आने वाली पीढ़ी को राजनीति में लाना चाहता है, तो इसमें कोई बुराई नहीं हैं। आखिर पार्टी खड़ी भी तो युवाओं के आगे आने से ही होगी।"

उन्होंने हालांकि यह भी कहा कि ऐसा नहीं होना चाहिए, खुद भी टिकट के दावेदार हैं और बेटा या बेटी के लिए अन्य क्षेत्रों से भी टिकट मांग रहे हैं। ये गलत बात है।

वैसे, ऐसा नहीं कि ऐसी स्थिति केवल कांग्रेस में ही है। भाजपा में भी कई नेता अपने पुत्रों को टिकट दिलवाने की रेस में शामिल हैं। केंद्रीय मंत्री अश्विनी चौबे अपने पुत्र अर्जित शाश्वत के लिए भागलपुर से टिकट के लिए प्रयासरत बताए जा रहे हैं तो भाजपा सांसद छेदी पासवान अपने पुत्र रवि पासवान को इस चुनाव में मैदान में उतारने की इच्छा रखे हुए हैं।

राजद में तो पार्टी के अध्यक्ष लालू प्रसाद के दोनों पुत्र तेजस्वी यादव और तेजप्रताप यादव का चुनावी मैदान में उतरना तय माना जा रहा है। वैसे राजद के सूत्रों का कहना है कि पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह अपने पुत्र सुधाकर सिंह को रामगढ़ विधानसभा से टिकट के लिए प्रयास कर रहे हैं।

इधर, जदयू में भी कई नेता ऐसे हैं जो अपनी अगली पीढ़ी को चुनावी मैदान में उतारने की इच्छा पाले हुए हैं। वैसे, यह कोई नई बात नहीं है कि राजनेता अपनी राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाने के लिए आने वाली पीढ़ी को चुनावी मैदान में उतारेंगे।

बहरहाल, कमोबेश सभी पार्टियों में ऐसे राजनेता की भरमार है, जो अपनी आने वाली पीढ़ी को इस चुनाव में सियासी मैदान में उतारने की इच्छा रखे हुए हैं, लेकिन देखने वाली बात होगी इसमें कितने राजनेता सफल होते हैं और मतदाता किन्हें पसंद करते हैं।.