आखिर वही हुआ जिसके बारे में लंबे समय से शक किया जा रहा था और अब सच सामने आ ही गया। रविवार को एक खुलासा हुआ है कि चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के 20 लाख कार्ड होल्डर दुनिया भर की जासूसी कर रहे हैं। ये कार्ड होल्डर सदस्य विभिन्न देशों के कांउसुलेट्स और मल्टीनेशनल कंपनियों में घुसपैठ कर चुके हैं। आस्ट्रेलियाई अखबार (द आस्ट्रेलियन) ने चीन की चालबाजियों का भंडाफोड़ किया गया है। चीन के व्यापारिक केन्द्र शंघाई में करीब 50 से भी ज्यादा देशों के वाणिज्य दूतावास हैं। अमेरिका, ब्रिटेन, आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, साउथ अफ्रीका और भारत सहित कम से कम 15 देशों के कांउसुलेट हैं। जिनमें चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्य क्लर्क से लेकर सलाहकार तक के पदों पर पिछले 10 सालों से काम कर रहे हैं। मल्टी नेशनल कंपनियां, करोना की वैक्सीन बना रही फाईजर, हवाई जहाज बनाने वाली कंपनी बोइंग, बैंकिग कंपनी एएनजेड और एचएसबीसी में भी इनकी घुसपैठ हो चुकी है। इन कंपनियों में चीनी नागरिकों की भर्ती चीन की सरकारी एजेंसी शंघाई फॉरेन एजेंसी सर्विस डिपार्टमेंड के जरिए की गईं थीं।
अखबार 'द आस्ट्रेलियन' के मुताबिक, यह डेटाबेस 2016 में एक चीनी व्हिसिल ब्लोअर ने शंघाई के (सर्वर) से गुप्त तरीके से (हासिल) कर, इंटर पार्लियामेंट एलायंस ऑल चाईना संस्था को सौंपी थी जिसके सदस्यों में प्रजातांत्रिक देशों के 150 सांसद हैं जो चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की नीतियों का विश्लेषण करते हैं। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले कई सालों से चीन की कम्युनिस्ट पार्टी सीपीसी (CPC) ने एक योजना के तहत चीन के दूतावासों और कांसुलेट दफ्तरों, बड़े बड़े कॉरपोरेट ऑफिस, यूनिवर्सिटी और सांस्कृतिक संस्थानों में पार्टी के सदस्यों को तैनात कर रखा है और यह सभी सीसीपी को रिपोर्ट करते हैं।
सीसीपी, चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग को सीधा रिपोर्ट करती है। रिपोर्ट में 79,000 ब्रांच का जिक्र है और उनमें से कई कंपनियों, विश्वविद्यालयों और सरकारी एजेंसियों का जिक्र है जहां चीनी जसूसों ने बड़ी तादाद में घुसपैठ कर रखी है। इस साल जुलाई में अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिका के ह्यूस्टन में स्थित चीन के कांसुलेट जनरल के आफिस को फौरन बंद करने का आदेश दिया था। अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पोंपियो ने चीन पर जासूसी का आरोप लगाए हुए कहा था कि टेक्सास राज्य के शहर ह्यूस्टन में चाइनीज कांसुलेट जासूसी का अड्डा था। अमेरिका के मुताबिक (चीन अवैध और ग़ैरक़ानूनी तरीकों से जासूसी कर रहा है और हमारे कामकाज को प्रभावित करने की कोशिश कर रहा है)। अमेरिका के मुताबिक चीनी जासूस अमेरिकी विश्वविद्यालयों में घुसपैठ कर चुके है। यह जासूस, चीन के छात्र हैं जो अमेरिकी शिक्षण संस्थानों में स्टूडेंट वीजा पर आए हैं। कई चीनी नागरिक, मल्टी नेशनल कंपानियों में विभिन्न पदों पर काम कर रहे हैं। यह सभी चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्य हैं और चीन के लिए जासूसी कर रहे हैं।
सिर्फ अमेरिका में ही नहीं, दुनिया के तमाम देशों में इनका जाल फैला हुआ है। जानकारों के मुताबिक, सीपीसी से जुड़ी एजेंसी यूनाईटेड फ्रंट वर्क डिपार्टमेंट राष्ट्रपति शी जिनपिंग की आंख और कान की तरह हैं जो चीन के अंदर और बाहर दोनों पर नजर रखती हैं। चीन में इसके सदस्यों में स्कूल और कालेज के शिक्षक और छात्र, व्यापारी, वकील, जज, सरकारी कर्मचारी जैसे लोग शामिल हैं जबकि विदेशों में, चीनी दूतावासों के राजदूत और दूसरे कर्मचारी, विदेशों में पढ़ रहे चीनी छात्र, बड़ी कंपनियों में काम कर रहे चीनी कर्मचारी शामिल हैं जिनका काम राष्ट्रपति शी के लिए जासूसी करना है। इनमें उन लोगों को भी शामिल किया गया है जिन्होंने दशकों पहले चीन से भाग कर दूसरो देशों में शरण ली थी। यूनाईटेड फ्रंट वर्क डिपार्टमेंट के सदस्य राष्ट्रपति शी के बनाए गए एजेंडे के तहत काम करते हैं। भारत के पड़ोसी देश, पाकिस्तान, नेपाल, बांगलादेश और म्यांमार के मौजूदा चीन के राजदूत यूनाईटेड फ्रंट वर्क डिपार्टमेंट से जुड़े हैं ।
इस साल सितंबर में, भारत और चीन की सीमा पर तनाव के बीच चीन की नापाक साजिश का पता चला था। चीन की टेक्नॉलजी कंपनी 'ज़ेन्हुआ' किस तरह भारत के प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति से लेकर मुख्यमंत्रियों, सांसदों, राजनीतिक नेताओं खिलाड़ियों, बॉलीवुड कलाकारों और उद्योगपतियों तक हजारों लोगों की जासूसी करा रही थी। चीनी इंटेलिजेंस, मिलिट्री और सिक्यॉरिटी एजेंसियों के साथ काम करने का दावा करने वाली कंपनी 'ज़ेन्हुआ' सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म्स और अन्य डिजिटल माध्यमों से डेटा जुटाती है और इन्फॉर्मेशन लाइब्रेरी तैयार करती है, जिनमें न केवल न्यूज सोर्स, बल्कि फोरम, पेपर, पेटेंट, बिडिंग डॉक्यूमेंट्स और यहां तक की रिक्रूटमेंट का कॉटेंट शामिल होता है। कंपनी एक 'रिलेशनल डेटाबेस' तैयार करती है, जो व्यक्तियों, संस्थाओं और सूचनाओं के बीच संबंधों को रिकॉर्ड करती है और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के जरिए व्याख्या करती है। जेनहुआ का मकसद ऐसी प्रक्रिया के तहत निगरानी करना है जिसे 'हाइब्रिड वॉरफेयर' नाम दिया गया है। इसके तहत एक नॉन-मिलिट्री टूल का प्रयोग कर नुकसान पहुंचाया जाता है। प्रोपेगंडा इसी टूल (tool) का एक अहम हिस्सा है। भारतीय एजेंसियों के मुताबिक चीनी एप्स भी डाटा एकत्र करने का काम करती थीं। चीन ने गोपनीय सूचनाएं एकत्रित करने के लिए विशेषज्ञों का जाल बिछा रखा है। हालांकि, अब इन पर नियंत्रण भी लग रहा है। एप बैन होने के बाद इनके विशेषज्ञ परेशान हो गए हैं।
जानकारों का कहना है कि वुहान वॉयरस के बाद चीन अलग थलग पड़ गया है। इसके बाद राष्ट्रपति शी की नीतियों से भारत समेत विश्व के कई देशों के साथ चीन का संबध तनाव और तकरार के स्तर तक गिर गया है। निहित स्वार्थ के लिए दूसरे देशों में टांग अड़ाने की शी जिनपिंग की नीतियों की वजह से भारत समेत 30 से ज्यादा देशों के साथ चीन का विवाद चल रहा है।
सीपीसी की बैठक में राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने 2035 के लक्ष्य का ब्लूप्रिंट बनाया जिसमें सबसे पहले चीनी सेना को 2027 तक विश्व की सबसे आधुनिक सेना बनाने का टारगेट रखा गया है । वन वर्ल्ड, वन ड्रीम ) शी जिनपिंग ने (ग्रेट चाइना ड्रीम) को अपना लक्ष्य बनाया हुआ है और दुनिया का दादा बनने का सपना देख रहा है और यह विश्व शांति के लिए खतरे की घंटी है।.