इस बात में जरा भी शक नहीं है कि चीन (China) अपनी चालबाजी से बाज नहीं आने वाला है। कितने भी कोर कमांड की बातें हो जाए या फिर कितनी भी बार विदेश मंत्री से लेकर तमाम बड़े नेता मिलकर बात कर लें। लेकिन, चीन अपनी धोखेबाजी और चालबाजी वाली भूमिका नहीं छोड़ने वाला है। चीन एक दो देशों नहीं बल्कि अपने साथ सीमा साझा करने वाले हर एक देश से उलझा हुआ है। ऐसे में दूसरी तरफ पूरी दुनिया को इन्फ्रास्ट्रक्चर जाल में बांधकर विश्व पर वर्चस्व जमाने निकला चीन अब बुरी तरह से खुद उलझ गया है।
दरअसल, चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने दुनिया में अपनी बादशाहत कायम करने के लिए बेल्ट एंड रोड परियोजना शुरू की थी। इसके तहत मालदीव, श्रीलंका, पाकिस्तान, कंबोडिया जैसे देशों को चीन ने बहुत बड़े पैमाने पर कर्ज दिया। ये देश आर्थिक संकट की वजह से चीन का कर्ज नहीं लौटा पाए और हालत यह हो गई है कि इन्हें उबारने के लिए जिनपिंग को फिर से कर्ज देना पड़ रहा है। एक शोध रिपोर्ट के मुताबिक साल 2008 से 2021 के बीच 22 विकासशील देशों को बेलआउट देने के लिए चीन को 240 अरब डॉलर खर्च करने पड़े हैं। रायटर्स के अनुसार 22 देश अपने यहां बेल्ट एंड रोड परियोजना (Belt and Road Initiative) के तहत हुए निर्माण पर आए खर्च को लौटाने में विफल रहे। वर्ल्ड बैंक, हावर्ड केनेडी स्कूल के शोधकर्ताओं की रिपोर्ट के मुताबिक साल 2016 से 2021 के बीच में चीन ने इन देशों को 240 अरब डॉलर में से 80 फीसदी कर्ज दिया। इन देशों में मध्यम आय वाले देश जैसे आर्जेंटीना, मंगोलिया और पाकिस्तान शामिल हैं।
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चीनी बैंक बेल्ट एंड रोड के चक्कर में फंसे
दरअसल, चीन ने श्रीलंका के कर्ज नहीं लौटा पाने पर उसका हंबनटोटा बंदरगाह ही 99 साल के लिए ले लिया। लेकिन साल 2016 में चीन ने कर्ज देना कम कर दिया। इसकी वजह यह थी कि चीन को इस निवेश का उतना फायदा नहीं हो रहा था जितना की उसने उम्मीद की थी। विश्व बैंक के मुख्य अर्थशास्त्री रह चुके कार्मेन रेइनहार्ट ने कहा कि चीन आखिरकार अपने बैंकों को बचाने की कोशिश कर रहा है।
शोध में बताया गया चीन के कर्ज की वजह से इन देशों का विदेशी कर्ज साल 2010 के 5 प्रतिशत से बढ़कर साल 2022 में 60 फीसदी पहुंच गया। चीन को सबसे ज्यादा कर्ज आर्जेंटीना को 111.8 अरब डॉलर देना पड़ा। इसके बाद पाकिस्तान को 48.5 अरब डॉलर और मिस्र को 15.6 अरब डॉलर देना पड़ा है। वहीं नौ देशों को 1 अरब डॉलर से कम की राशि देनी पड़ी है। इसमें श्रीलंका भी शामिल है। इन देशों के कर्ज नहीं लौटा पाने की वजह से चीनी बैंकों का बैलंस डूब रहा था।