China का BRI दुनिया के लिए कारागार नहीं तो कर्जागार जरूर बन गया है। क्योंकि इसके कर्जजाल में फंसकर जहां श्रीलंका डिफाल्टर घोषित हो चुका है, वहीं,पाकिस्तान आर्थिक तंगी से जूझ रहा है। औऱ तो और चीन के बीआरआई में फंसकर कई अफ्रिकन देश गरीबी और भूखमरी की समस्या से जूझ रहे हैं।
दुनिया के लिए China का BRI किसी कारागार से कम नहीं है। इसके कर्ज जाल कहे जाने वाले बेल्ट एंड रोड परियोजना को लेकर ड्रैगन महासम्मेलन करने जा रहा है। इस सम्ममेलन में रूसी राष्ट्रपति पुतिन हिस्सा लेने वाले हैं। बता दें कि चीन के बीआरआई के कर्जजाल में फंसकर श्रीलंका डिफॉल्ट हो चुका है और पाकिस्तान आर्थिक तबाही से जूझ रहा है।
China के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के ड्रीम प्रॉजेक्ट बेल्ट एंड रोड परियोजना के 10 साल पूरे हो गए हैं और अब ड्रैगन इस मौके पर अक्टूबर में एक भव्य सम्मेलन करने जा रहा है। चीन की सरकार ने ऐलान किया है कि 90 देशों ने बीआरआई सम्मेलन में हिस्सा लेने की स्वीकृति दी है। भारत में हुए जी 20 कार्यक्रम और दक्षिण अफ्रीका में हुए ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेने नहीं गए थे। चीन जहां बीआरआई को दुनिया को जोड़ने का प्रॉजेक्ट बता रहा है, वहीं विशेषज्ञों का मानना है कि यह दुनिया को ‘कर्ज के जाल में फंसाने की कूटनीति’ है।
अमेरिकी विशेषज्ञ माइकल बेनोन और फ्रांसिस फुकयामा ने अपने लेख में कहा कि चीन के कर्जजाल का उदाहरण श्रीलंका है। वे भारत के पड़ोसी देश श्रीलंका का उदाहरण देते हैं जहां चीन ने साल 2017 में हंबनटोटा बंदरगाह को लोन नहीं चुकाने पर 99 साल के लिए अपने ‘कब्जे’ में लिया। इस डील के बाद अमेरिका से लेकर पश्चिमी देशों की राजधानियों में खलबली मच गई और चीन का असली इरादा दुनिया के सामने आ गया।
BRI दुनिया में हुई फेल?
अमेरिकी विशेषज्ञों ने कहा कि पिछले कुछ वर्षों में बीआरआई की एक अलग ही तस्वीर सामने आई है। दुनिया में चीन(China) के वित्तपोषण वाले कई प्रॉजेक्ट फेल साबित हो रहे हैं। उनसे कोई लाभ उस देश को नहीं हो रहा है। वहीं ये देश चीन के भारी ब्याज वाले कर्ज जाल में फंस गए हैं। वे भविष्य के निवेश को तो छोड़िये वर्तमान में जो कर्ज है, उसका ब्याज तक नहीं दे पा रहे हैं। चीन के कर्ज का यह संकट केवल श्रीलंका तक नहीं है। इसके लपेटे में आर्जेंटीना, केन्या, मलेशिया, मोंटेनेग्रो, पाकिस्तान, तंजानिया और कई ऐसे देश हैं।चीन ने बीआरआई के तहत पिछले 10 साल में 1 ट्रिलियन डॉलर का कर्ज 100 देशों को दिया है। यह पश्चिमी देशों के विकासशील देशों में होने वाले खर्च से बहुत ज्यादा है।
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