Hindi News

indianarrative

चीन की अरुणाचल में फिर दादागीरी,भारत ने किया चारो खाने चित्त

अरुणाचल प्रदेश के तवांग सेक्टर में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच हुई झड़प। (फ़ाइल/पीटीआई)

चीन ने अरुणाचल प्रदेश में 11 जगहों के नाम बदल दिए हैं।यह तीसरी बार है जब चीन ने अप्रैल, 2017 और दिसंबर, 2021 में अपनी तरफ़ से अरुणाचल प्रदेश में स्थानों के नाम बदल दिए हैं।

चीन ने अरुणाचल प्रदेश में उन 11 स्थानों के नाम बदल दिए हैं, जिन्हें वह दक्षिण तिब्बत के रूप में दावा करता है। यह एक ऐसा क़दम है,जिससे नई दिल्ली और बीजिंग के बीच जमे अविश्वास को और गहरा करेगा, जबकि दोनों देशों के बीच दशकों से ख़राब द्विपक्षीय सम्बन्ध हैं।

बदले हुए नामों में पर्वत चोटियों, नदियों और आवासीय क्षेत्रों के नाम शामिल हैं।

यह तीसरी बार है जब चीन ने अप्रैल, 2017 और दिसंबर, 2021 में अपनी तरफ़ से एकतरफ़ा कार्रवाई करते हुए अरुणाचल प्रदेश में स्थानों के नाम बदल दिए हैं।

इस घटनाक्रम को लेकर भारतीय अधिकारियों की ओर से तत्काल कोई प्रतिक्रिया नहीं दी गयी। मामले से परिचित लोगों ने कहा कि भारतीय पक्ष इस घटनाक्रम के बारे में जानता है, जो कि हाल के वर्षों में चीन द्वारा उठाए गए इसी तरह के क़दमों की एक कड़ी है।

अतीत में भी इसी तरह नाम बदले गए थे,जिसे भारत द्वारा तुरंत खारिज कर दिया गया था। नई दिल्ली ने फिर से कहा है कि पूर्वोत्तर राज्य हमेशा भारत का एक अभिन्न और “अविभाज्य” हिस्सा रहा है और रहेगा।

चीन के नागरिक मामलों के मंत्रालय ने रविवार को एक संक्षिप्त बयान में कहा, “भौगोलिक नामों के प्रबंधन पर राज्य परिषद (चीन की कैबिनेट) के प्रासंगिक नियमों के अनुसार, हमारे मंत्रालय ने संबंधित विभागों के साथ मिलकर दक्षिणी तिब्बत में कुछ भौगोलिक नामों का मानकीकरण किया है।”

इसका अर्थ यह है कि तिब्बती में स्थानों के नाम अब से चीनी मानचित्रों पर पिनयिन,यानी मंदारिन वर्णों का मानक रोमनीकरण में भी उपलब्ध होंगे।

राज्य द्वारा संचालित टैब्लॉइड, ग्लोबल टाइम्स ने सोमवार को सरकारी अधिसूचना पर एक रिपोर्ट में कहा, “11 स्थानों के आधिकारिक नाम रविवार को मंत्रालय द्वारा जारी किए गए थे, जिसमें दो भूमि क्षेत्र, दो आवासीय क्षेत्र, पांच पर्वत चोटीयां और दो नदियों के नाम थे। इसने स्थानों के नाम और उनके अधीनस्थ प्रशासनिक ज़िलों की श्रेणी को भी सूचीबद्ध किया  गया है।”

इस रिपोर्ट में कहा गया है कि यह नागरिक मामलों के मंत्रालय द्वारा जारी “जंगनान में मानकीकृत भौगोलिक नामों” की तीसरी बारी थी।

राज्य की मीडिया रिपोर्ट में इंस्टीट्यूट ऑफ़ चाइनीज़ बॉर्डरलैंड स्टडीज़, चाइनीज एकेडमी ऑफ़ सोशल साइंसेज के झांग योंगपैन के हवाले से कहा गया है कि इन नामों को मानकीकृत करने का चीन का यहह क़दम “चीन की संप्रभुता के दायरे में आता है”।

बीजिंग में चाइना तिब्बतोलॉजी रिसर्च सेंटर के एक विशेषज्ञ लियान जियांगमिन ने टैब्लॉइड को बताया कि भविष्य में इस क्षेत्र में अधिक “मानकीकृत” स्थानों के नामों की घोषणा की जाएगी।

बीजिंग चीन के तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र (टीएआर) के हिस्से के रूप में ज़ंगनान (चीन के तिब्बत का दक्षिणी भाग) का दावा करता है।

यह स्पष्ट तो नहीं हो पाया कि चीन ने अब इन नए नामों को जारी करने का फ़ैसला क्यों किया, लेकिन संबंधों की स्थिति को देखते हुए यह आश्चर्य की बात नहीं है कि बीजिंग ने नई दिल्ली को चिढ़ाने के लिए इस तरह की एक चाल चली है।

सूचीबद्ध 11 नामों में इन परिवर्तनों से अरुणाचल प्रदेश के स्थानों पर कोई सीधा प्रभाव नहीं पड़ेगा।

2017 में नामों में इस तरह के परिवर्तन तिब्बती आध्यात्मिक नेता दलाई लामा के नौ-दिवसीय उच्च प्रोफ़ाइल यात्रा के बाद अरुणाचल प्रदेश छोड़ने के एक दिन बाद 13 अप्रैल को भी किए गए थे। बीजिंग दलाई लामा को अलगाववादी कहता है और उसका यह भी कहना है कि दलाई लामा तिब्बत को एक स्वतंत्र देश बनाना चाहते हैं।

जनवरी, 2021 में एक नए सीमा सुरक्षा क़ानून के प्रभावी होने से पहले बीजिंग ने अरुणाचल प्रदेश में 15 स्थानों का नाम बदल दिये थे। भारत ने 2021 में उस चीनी क़दम को ख़ारिज कर दिया था और कहा था कि इस तरह की कार्रवाइयों से इस क्षेत्र की स्थिति देश के अभिन्न अंग के रूप में नहीं बदलेगी।

विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने उस समय कहा था: “यह पहली बार नहीं है, जब चीन ने अरुणाचल प्रदेश राज्य में इस तरह के स्थानों का नाम बदलने का प्रयास किया है…अरुणाचल प्रदेश हमेशा से भारत का अभिन्न अंग रहा है, और हमेशा रहेगा।”   अरुणाचल प्रदेश में स्थानों को इस तरह से नया  नाम दे देने से यह सचाई नहीं बदल जाती है।

मई 2020 की शुरुआत से ही लद्दाख सेक्टर में भारत और चीन के बीच क़रीब तीन साल से गतिरोध जारी है, जिससे द्विपक्षीय संबंध दशकों में सबसे ख़राब स्थिति में पहुंच गए हैं।

दोनों पक्षों ने वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर हज़ारों सैनिकों और भारी हथियारों को तैनात किया है।

जून 2020 में गालवान घाटी में एक घातक संघर्ष में 20 भारतीय सैनिक और कम से कम चार चीनी सैनिक मारे गए थे। 1975 के बाद एलएसी पर इस तरह की मौत की पहली घटना थी।

यह तीसरी बार है जब चीन ने अप्रैल, 2017 और दिसंबर, 2021 में अपनी तरफ़ से अरुणाचल प्रदेश में स्थानों के नाम बदल दिए हैं।

अरुणाचल प्रदेश के तवांग सेक्टर में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच हुई झड़प। (फ़ाइल/पीटीआई)

चीन ने अरुणाचल प्रदेश में उन 11 स्थानों के नाम बदल दिए हैं, जिन्हें वह दक्षिण तिब्बत के रूप में दावा करता है। यह एक ऐसा क़दम है,जिससे नई दिल्ली और बीजिंग के बीच जमे अविश्वास को और गहरा करेगा, जबकि दोनों देशों के बीच दशकों से ख़राब द्विपक्षीय सम्बन्ध हैं।

बदले हुए नामों में पर्वत चोटियों, नदियों और आवासीय क्षेत्रों के नाम शामिल हैं।

यह तीसरी बार है जब चीन ने अप्रैल, 2017 और दिसंबर, 2021 में अपनी तरफ़ से एकतरफ़ा कार्रवाई करते हुए अरुणाचल प्रदेश में स्थानों के नाम बदल दिए हैं।

इस घटनाक्रम को लेकर भारतीय अधिकारियों की ओर से तत्काल कोई प्रतिक्रिया नहीं दी गयी। मामले से परिचित लोगों ने कहा कि भारतीय पक्ष इस घटनाक्रम के बारे में जानता है, जो कि हाल के वर्षों में चीन द्वारा उठाए गए इसी तरह के क़दमों की एक कड़ी है।

अतीत में भी इसी तरह नाम बदले गए थे,जिसे भारत द्वारा तुरंत खारिज कर दिया गया था। नई दिल्ली ने फिर से कहा है कि पूर्वोत्तर राज्य हमेशा भारत का एक अभिन्न और “अविभाज्य” हिस्सा रहा है और रहेगा।

चीन के नागरिक मामलों के मंत्रालय ने रविवार को एक संक्षिप्त बयान में कहा, “भौगोलिक नामों के प्रबंधन पर राज्य परिषद (चीन की कैबिनेट) के प्रासंगिक नियमों के अनुसार, हमारे मंत्रालय ने संबंधित विभागों के साथ मिलकर दक्षिणी तिब्बत में कुछ भौगोलिक नामों का मानकीकरण किया है।”

इसका अर्थ यह है कि तिब्बती में स्थानों के नाम अब से चीनी मानचित्रों पर पिनयिन,यानी मंदारिन वर्णों का मानक रोमनीकरण में भी उपलब्ध होंगे।

राज्य द्वारा संचालित टैब्लॉइड, ग्लोबल टाइम्स ने सोमवार को सरकारी अधिसूचना पर एक रिपोर्ट में कहा, “11 स्थानों के आधिकारिक नाम रविवार को मंत्रालय द्वारा जारी किए गए थे, जिसमें दो भूमि क्षेत्र, दो आवासीय क्षेत्र, पांच पर्वत चोटीयां और दो नदियों के नाम थे। इसने स्थानों के नाम और उनके अधीनस्थ प्रशासनिक ज़िलों की श्रेणी को भी सूचीबद्ध किया  गया है।”

इस रिपोर्ट में कहा गया है कि यह नागरिक मामलों के मंत्रालय द्वारा जारी “जंगनान में मानकीकृत भौगोलिक नामों” की तीसरी बारी थी।

राज्य की मीडिया रिपोर्ट में इंस्टीट्यूट ऑफ़ चाइनीज़ बॉर्डरलैंड स्टडीज़, चाइनीज एकेडमी ऑफ़ सोशल साइंसेज के झांग योंगपैन के हवाले से कहा गया है कि इन नामों को मानकीकृत करने का चीन का यहह क़दम “चीन की संप्रभुता के दायरे में आता है”।

बीजिंग में चाइना तिब्बतोलॉजी रिसर्च सेंटर के एक विशेषज्ञ लियान जियांगमिन ने टैब्लॉइड को बताया कि भविष्य में इस क्षेत्र में अधिक “मानकीकृत” स्थानों के नामों की घोषणा की जाएगी।

बीजिंग चीन के तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र (टीएआर) के हिस्से के रूप में ज़ंगनान (चीन के तिब्बत का दक्षिणी भाग) का दावा करता है।

यह स्पष्ट तो नहीं हो पाया कि चीन ने अब इन नए नामों को जारी करने का फ़ैसला क्यों किया, लेकिन संबंधों की स्थिति को देखते हुए यह आश्चर्य की बात नहीं है कि बीजिंग ने नई दिल्ली को चिढ़ाने के लिए इस तरह की एक चाल चली है।

सूचीबद्ध 11 नामों में इन परिवर्तनों से अरुणाचल प्रदेश के स्थानों पर कोई सीधा प्रभाव नहीं पड़ेगा।

2017 में नामों में इस तरह के परिवर्तन तिब्बती आध्यात्मिक नेता दलाई लामा के नौ-दिवसीय उच्च प्रोफ़ाइल यात्रा के बाद अरुणाचल प्रदेश छोड़ने के एक दिन बाद 13 अप्रैल को भी किए गए थे। बीजिंग दलाई लामा को अलगाववादी कहता है और उसका यह भी कहना है कि दलाई लामा तिब्बत को एक स्वतंत्र देश बनाना चाहते हैं।

जनवरी, 2021 में एक नए सीमा सुरक्षा क़ानून के प्रभावी होने से पहले बीजिंग ने अरुणाचल प्रदेश में 15 स्थानों का नाम बदल दिये थे। भारत ने 2021 में उस चीनी क़दम को ख़ारिज कर दिया था और कहा था कि इस तरह की कार्रवाइयों से इस क्षेत्र की स्थिति देश के अभिन्न अंग के रूप में नहीं बदलेगी।

विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने उस समय कहा था: “यह पहली बार नहीं है, जब चीन ने अरुणाचल प्रदेश राज्य में इस तरह के स्थानों का नाम बदलने का प्रयास किया है…अरुणाचल प्रदेश हमेशा से भारत का अभिन्न अंग रहा है, और हमेशा रहेगा।”   अरुणाचल प्रदेश में स्थानों को इस तरह से नया  नाम दे देने से यह सचाई नहीं बदल जाती है।

मई 2020 की शुरुआत से ही लद्दाख सेक्टर में भारत और चीन के बीच क़रीब तीन साल से गतिरोध जारी है, जिससे द्विपक्षीय संबंध दशकों में सबसे ख़राब स्थिति में पहुंच गए हैं।

दोनों पक्षों ने वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर हज़ारों सैनिकों और भारी हथियारों को तैनात किया है।

जून 2020 में गालवान घाटी में एक घातक संघर्ष में 20 भारतीय सैनिक और कम से कम चार चीनी सैनिक मारे गए थे। 1975 के बाद एलएसी पर इस तरह की मौत की यह पहली घटना थी।