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चीन की अंतहीन महत्वाकांक्षा बाइडेन की जीत के लिये सबसे बड़ा खतरा

चीन की अंतहीन महत्वाकांक्षा बाइडेन की जीत के लिये सबसे बड़ा खतरा

आज अमेरिका में सबसे बड़ा सवाल यह है कि जो बाइडेन कैसे चुनाव हार सकते हैं? जबकि दर्जनों राष्ट्रीय और स्विंग स्टेट इलेक्शन पोल्स पिछले दिनों लगातार उनको एक जीतने वाली बढ़त हासिल करता हुआ दिखा रहे हैं। हाल के सभी चुनाव अनुमानों के अनुसार जो बाइडेन के 3 नवंबर के राष्ट्रपति चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप को मात दे देने की पूरी संभावना है। यह इस बात पर भी निर्भर करेगा कि चुनावी रूप से महत्वपूर्ण राज्य कैसे वोट डालते हैं।

अभी के चुनाव सर्वेक्षणों के हिसाब से तो जो बाइडेन और डेमोक्रेटिक पार्टी की एक बड़ी जीत होगी। लेकिन इस बार के चुनावी सर्वेक्षण भी 2016 की तरह ही गलत साबित हो सकते हैं। बाइडेन जिनकी राष्ट्रीय स्तर पर 10% की बढ़त दिख रही है, लोकप्रिय मतों के आधार पर 7% से विजयी होते दिखाए जा रहे हैं। वह पेंसिलवेनिया, फ्लोरिडा और एरीजोना जैसे राज्यों में भी जीतते नजर आ रहे हैं। इन राज्यों में हिलेरी क्लिंटन भी 4 साल पहले अच्छे नतीजे हासिल करने में विफल रहीं थीं।

अभी तक ट्रंप के सभी प्रयासों के बावजूद वह रेस में पिछड़ते दिख रहे हैं। कोविड-19 पर उनके धुआंधार बयानों का लगता है कि कुछ खास असर जनता पर हो नहीं रहा है। अगर चुनाव सर्वेक्षण पूरी तरह सही साबित नहीं हो सके तो बाइडेन के खिलाफ सबसे बड़ी चीज क्या हो सकती है। बाइडेन के खिलाफ उनकी उम्र भी है। बाइडेन अब 77 साल के हो चुके हैं लेकिन यह उनके लिये कोई अयोग्यता नहीं बनती है।

यह भी संभव है कि कुछ राज्यों में चुनाव में धांधली या उसके परिणामों में कोई संदेह होने पर ट्रंप अपनी हार को अस्वीकार कर सकते हैं और सुप्रीम कोर्ट में जीत हासिल कर सकते हैं, जैसा कि जॉर्ज डब्ल्यू. बुश ने सन् 2000 में किया था। लेकिन जो बाइडेन की राह में इसके अलावा जो सबसे बड़ी भीमकाय समस्या आने वाली है, वह है अंतरराष्ट्रीय स्तर पर किसी बड़े संकट का उभरना। ऐसी अवस्था में ट्रंप निश्चित रूप से बाइडेन पर अपना पड़ला भारी कर लेंगे। चीन की गतिविधियां निश्चित रूप से बाइडेन के लिये समस्या खड़ी कर सकती हैं।

चीन की इस समय कठोरता से निगरानी करने की जरूरत है। इसके दंभी तानाशाह और राष्ट्रपति शी जिनपिंग को घरेलू समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। इसलिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वह अपनी आक्रामकता बढ़ा रहे हैं। अपने शासन को सही ठहराने के लिए वह खतरनाक नीतियां अपना रहे हैं। शी जिनपिंग ने बराक ओबामा के साथ सितंबर 2015 में व्हाइट हाउस में मुलाकात की थी और द्विपक्षीय दोस्ती के नए युग का वादा किया था। लेकिन अब वह उससे बहुत आगे निकल चुके हैं और पूरी दुनिया पर चीन की ताकत को स्थापित करना चाहते हैं।

चीन भले ही कहता है कि वह मानव अधिकारों और अंतरराष्ट्रीय कानूनों और राष्ट्रीय संप्रभुता का सम्मान करता है और दक्षिण चीन सागर में सैन्यीकरण बढ़ाना नहीं चाहता है। इसके बावजूद चीन साउथ चाइना सी में लगातार अपनी आक्रामकता बढ़ा रहा है और अंतरराष्ट्रीय कानूनों का लगातार उल्लंघन कर रहा है। जिनपिंग ने भारत के साथ लड़ाई मोल ली है। जिनपिंग ने ऑस्ट्रेलिया और विभिन्न पश्चिमी देशों से साथ संबंधों में कड़वाहट पैदा की है और हांगकांग में लोकतंत्र को कुचल दिया है। उन्होंने घरेलू आजादी में भी कटौती की है और तिब्बत के बौद्धों एवं शिनजियांग के उइगरों का दमन किया है।

इस तरह दक्षिण चीन सागर को लेकर किए गए उनके वादे अर्थहीन हैं। उनका रुख भी बहुत तेजी से आक्रामक होता जा रहा है। ट्रंप ने चीन के साथ व्यापार युद्ध शुरू करके उसको कुछ नुकसान पहुंचाया है और कुछ प्रतिबंध लगाए हैं। ट्रंप ने कोविड-19 को बार-बार चाइना वायरस की संज्ञा देकर चीन को रक्षात्मक रुख अपनाने के लिए मजबूर किया है। अमेरिका लगातार ताइवान को राजनीतिक, कूटनीतिक और सैनिक समर्थन बढ़ाता जा रहे हैं। इसे शी जिनपिंग उकसावे की कार्रवाई बताते हैं।

अमेरिका अब अपनी 40 साल पुरानी रणनीतिक दुविधा से उबर गया है और उसने निश्चय कर लिया है कि ताइवान पर किसी भी हमले को रोकने के लिए वह अपनी सेना उतारेगा। इस बात को लेकर अभी संदेह है कि शी जिनपिंग अपने सपनों को पूरा करने के लिए किस हद तक जाएंगे। लेकिन इस बात में किसी को भी संदेह नहीं है कि अगर अमेरिका ने कड़ा कदम नहीं उठाया तो ताइवान अगला हांगकांग साबित हो सकता है। ताइवान को लेकर चीन का इरादा खतरनाक है। चीन लगातार आक्रामकता और अंतहीन महत्वाकांक्षा प्रदर्शित कर रहा है। ताइवान अब अमेरिका के लिए क्यूबा के मिसाइल संकट के बाद सबसे प्रमुख संकट के रूप में उभर सकता है।

चीन लगातार ताइवान के समुद्र के ऊपर सैन्य अभ्यास कर रहा है और उसके लड़ाकू विमान बार-बार ताइवान की वायु सीमा का उल्लंघन कर रहे हैं। इन सब बातों को लेकर कुछ विशेषज्ञों का साफ मानना है कि चीन की इस तरह की घटनाएं केवल एक प्रोपेगेंडा वॉर तक ही सीमित नहीं रहेंगी और आगे चलकर एक वास्तविक युद्ध में भी बदल सकती हैं। इस संभावना को खारिज नहीं किया जा सकता। अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पॉम्पियो ने भी पिछले हफ्ते टोक्यो में क्वाड की बैठक में चाइना के खतरे को खत्म करने की बात कही है।

अमेरिका में प्रशासन भले ही 2021 के लिए अपनी तैयारी कर रहा है, लेकिन शी जिनपिंग का इरादा इस बीच अमेरिका को ज्यादा से ज्यादा नुकसान पहुंचाने का है। ऐसे समय में जब पेंटागन के चीफ अलग-थलग पड़े होंगे और ट्रंप का व्यवहार भी कुछ तय नहीं होगा, ऐसे समय में बाइडेन की ढुलमुल नीति से अमेरिका को नुकसान हो सकता है। शी जिनपिंग इस समय कोई भी ऐसा काम नहीं करना चाहेंगे जिससे कि ट्रंप को फिर से चुनाव जीतने में मदद मिले और 3 नवंबर से पहले वह कोई खतरनाक  कदम उठाने से बचेंगे। लेकिन आंतरिक दबाव और उनके 2015 के बाद के लगातार आक्रामकता के रिकॉर्ड को देखते हुए कहा नहीं जा सकता कि वह कब लड़ाई में कूद जाएंगे।

जिनपिंग ने यह अंदाजा लगा लिया है कि यह समय ताइवान के ऊपर सबसे ज्यादा दबाव डालने का है। ट्रंप लंबे समय से बाइडेन पर आरोप लगाते हैं रहे हैं कि वह चीन को लेकर नरम है। यदि बीजिंग के साथ अचानक कोई समस्या उभरती है तो वह शायद ही कोई कठोर रुख अपना पाएंगे। इसलिए बाइडेन भगवान से यही प्रार्थना करेंगे कि 3 नवंबर से पहले कोई जंग या उस तरह की परिस्थिति न पैदा हो।.